संपादकीय

डिजिटल अरेस्ट का डर

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देशवासियों को डिजिटल अपराधों के बारे में सचेत करना समयानुकूल ही नहीं बल्कि समय की पुकार है, क्योंकि वीडियो कालों के जरिये आम नागरिकों को गिरफ्तारी का डर दिखा कर ये अपराधी लाखों करोड़ों रुपये डकार चुके हैं।

Aditya Chopra

प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देशवासियों को डिजिटल अपराधों के बारे में सचेत करना समयानुकूल ही नहीं बल्कि समय की पुकार है, क्योंकि वीडियो कालों के जरिये आम नागरिकों को गिरफ्तारी का डर दिखा कर ये अपराधी लाखों करोड़ों रुपये डकार चुके हैं। इन अपराधियों का पूरा गिरोह काम करता है, जो सामान्य नागरिकों से लेकर पढे़-लिखे और बाइज्जत लोगों तक को अपने जाल में फंसा कर डिजिटल अरेस्ट का खौफ दिखाता है और मामला रफा–दफा करने के नाम करोड़ों रुपयों तक की मांग करता है। सबसे पहले यह गिरोह लोगों में डर पैदा करता है और फिर उनकी बैंक या वित्त सम्बन्धी निजी जानकारी हासिल कर लेता है और फिर लाखों करोड़ों रुपये मनचाहे बैंक खातों में जमा करा लेता है। ये बैंक खाते भी इस गिरोह के ही कुछ सदस्यों के होते हैं। इस वर्ष जनवरी महीने से अप्रैल महीने तक के दौरान ही 120 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि ये जालसाज डकार चुके हैं।

वीडियो काल करके पहले ये जालसाज नागरिकों को पुलिस या सरकारी जांच एजेंसी जैसे सीबीआई आदि का डर दिखाते हैं और फिर धन की मांग करते हैं। सामान्य लोग पुलिस या सीबीआई के नाम से ही खौफ में आ जाते हैं और अपना सब कुछ लुटा बैठते हैं। मगर अब इससे भी एक कदम और आगे बढ़ कर ईमेल पर भी इस प्रकार की जालसाजी शुरू हो गई है, जिसमें उल्टी–पल्टी पुलिस या सीबीआई दफ्तर जैसी दिखने वाली ईमेल के फर्जी पते से नागरिकों के पास किसी साइबर अपराध करने की ईमेल आती है और फिर गिरफ्तारी का डर दिखाया जाता है। डिजिटल अपराधियों का जाल बहुत बड़ा होता है। ये इंटरनेट टैक्नोलॉजी का लाभ उठाकर अपराध करते हैं और लोगों से धन एंठते हैं।

दरअसल हर टैक्नोलॉजी के उजले और काले दो पक्ष होते हैं। अपराधी प्रवृत्ति के लोग इसका इस्तेमाल गलत लक्ष्य के लिए करते हैं, जबकि सज्जन पुरुष मानवता के लाभ के लिए इसका उपयोग करते हैं। प्रधानमन्त्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में साइबर अपराधियों के काम करने के तरीके का उदाहरण देते हुए लोगों को समझाने का प्रयास किये कि वे जालसाजों की ऐसी हरकतों से डरे नहीं और धैर्य के साथ उनका मुकाबला करें। ये जालसाज भारत की पुलिस समेत जांच एजेंसियों की छवि को भी खराब करते हैं, क्योंकि वीडियो काल अफसरों की वेशभूषा में करते हैं। पुलिस या जांच एजेंसी के अफसर की वेशभूषा में अधिकारी बनकर जब कोई व्यक्ति किसी सामान्य नागरिक को वीडियो काल करता है तो उनका खौफ में आना स्वाभाविक है। इसी प्रकार जब कोई ई-मेल किसी फर्जी पुलिस के पते से आती है तो कोई भी कानून परस्त नागरिक एकबारगी घबरा जाता है और इस घबराहट में अपनी निजी जानकारियां साझा कर बैठता है। इसका कारण मनोवैज्ञानिक होता है। जिस व्यक्ति ने जीवन में कभी कोई अपराध न किया हो, उसे यदि कोई पुलिस वाला या जांच एजेंसी का अधिकारी कानून तोड़ने की धमकी देता है तो उसका दबाव में आना बहुत स्वाभाविक है।

वह व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत डर जाता है। प्रधानमन्त्री ने यही ढांढस बंधाया है कि लोग ऐसे अपराधियों से डरे नहीं बल्कि साहस व घैर्य के साथ उनका मुकाबला करें औऱ यथोचित पुलिसकर्मियों को सूचित करें, जिससे अपराधियों को पकड़ा जा सके। भारत सरकार का गृहमन्त्रालय साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए बाकायदा अभियान चलाये हुए हैं और इसने एक विशेष संभाग इस बाबत बनाया हुआ है। इस सन्दर्भ में एक साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (अपराधों को दर्ज करने का इंटरनेट मंच) भी काम कर रहा है। इस पोर्टल पर 1 जनवरी से लेकर 30 अप्रैल 24 तक कुल सात लाख 40 हजार मामले दर्ज किये गये, जबकि 15 लाख 56 हजार शिकायतें विगत वर्ष 2023 में दर्ज हुईं थीं। इसी प्रकार वर्ष 2022 में कुल मामले नौ लाख 66 हजार शिकायतें दर्ज हुई थीं। इस प्रकार साल दर साल ऐसी शिकायतों की संख्या बढ़ ही रही हैं जिसे देखते हुए प्रधानमन्त्री का संज्ञान लेना जरूरी भी हो गया था।

समाज जिस प्रकार नई–नई वैज्ञानिक खोजों से सम्पन्न होता जाता है उसी प्रकार अपराधी भी अपराध करने के नये–नये तरीके खोजने लगते हैं। अपराध का भी अपना एक विज्ञान होता है। एक जमाना था जब जेबकतरे किसी व्यक्ति के कपड़े देखकर उसकी जेब काटते थे मगर अब उन्होंने जेब मोटी होने का अन्दाजा लगाने का अपना तरीका बदल लिया है। अब जेब कतरे किसी व्यक्ति के महंगे जूतों से उसकी जेब का अंदाजा लगाते हैं। पहले कम्प्यूटर आया तो बेरोजगारी का अन्देशा बढ़ा मगर यह डर बेकार साबित हुआ और कम्प्यूटर अब जरूरत बन गया, मगर इंटरनेट के आने से जहां सारी दुनिया किसी व्यक्ति के स्मार्ट मोबाइल फोन में समा गई तो अपराधियों ने इसी टैक्नोलॉजी में अपने लिए रास्ता बनाया और ईमेल व वीडियो कालों के जरिये अपराध करने लगे। अतः टैक्नोलॉजी उन्नयन का रास्ता हमेशा दाेतरफा होता है, मगर साइबर अपराधियों को रोकने के लिए हमें इसी टैक्नोलॉजी में ही रास्ता खोजना होगा और गृहमन्त्रालय यह कार्य कर भी रहा है।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com