संपादकीय

सिखों के लिए दस्तार शरीर का अभिन्न अंग

Shera Rajput

सिखों के लिए दस्तार कोई गज मात्र कपड़ा नहीं है बल्कि यह हर सिख के लिए उसके शरीर का अभिन्न अंग है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा सजाने के समय सिख के लिए पांच ककार अनिवार्य किये तो उसमें केशों को भी रखा व उन्हें संभालने हेतु उन पर पगड़ी बांधना अनिवार्य किया। इतिहास गवाह है कि उस समय मुगल हुकूमत का शासन था और किसी भी व्यक्ति को सिर पर कपड़ा रखने की सख्त मनाही हुआ करती थी। पगड़ी केवल राजा महाराजा ही पहना करते। गुरु साहिब ने इसी के चलते हर सिख को पगड़ी बांधकर राजा-महाराजा की तरह शान से जीने की प्रेरणा दी। विश्व युद्ध से लेकर सारागढ़ी की लड़ाई और देश की आजादी के बाद से जितनी भी जंग हुई सिख सैनिकों ने सिर पर दस्तार सजाकर ही लड़ी और विजय भी प्राप्त की। मगर पिछले कुछ समय से साजिश के तहत जिस तरह से सिखों की दस्तार पर हमले हो रहे हैं, गैर सिखों के द्वारा सिखों की दस्तार उतारे जाने की घटनाओं में बढ़ौतरी देखी जा रही है यह गंभीर चिन्ता का विषय है जिस पर सभी सिख जत्थेबंदीयों को पार्टीवाद से ऊपर उठकर विचार करने की आवश्यकता है। बीते समय में जब फ्रान्स के स्कूलों में सिखों के दस्तार पहनकर जाने पर पाबंदी लगी तो भारत में बैठकर सिख जत्थेबं​िदयों ने एक होकर आवाज बुलन्द की जिसके चलते फ्रान्सिसी हुकूमत को अपना फैसला बदलना पड़ा। हाल ही में अमरीका में रागी जत्था भाई बलदेव सिंह वडाला को हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच के नाम पर उत्पीड़न सहना पड़ा जहां उन्हंे पगड़ी उतारकर ट्रे में रखकर स्कैन करवाने को कहा गया तब उन्होंने ऐसा करने के बजाए यात्रा नहीं करने का फैसला लिया और अमरीका की सिख जत्थेबंदीयों ने हाई अर्थाटी को इसकी जानकारी दी तो अगले दिन उन्हें बिना दस्तार उतारे जांच करते हुए यात्रा की मन्जूरी मिली, ऐसा ही वाकया अकाली नेता मनजीत सिंह जीके के साथ भी हो चुका है। सिख बुद्धिजीवी कुलमोहन सिंह का मानना है कि मौजूदा समय में तो ऐसे अनेक यन्त्र सुरक्षा एजेन्सियों के पास मौजूद रहते हंै जिससे वह कपड़ों के भीतर भी बिना उन्हंे निकाले जांच कर सकते हैं फिर जानबूझकर सिखों को दस्तार और ककार उतारने के लिए क्यों कहा जाता है। कैनेडा के क्यूबिक शहर में सिखों को दस्तार पहनकर अपनी ड्यूटी करने पर लगी पाबंदी पर अमरीका के सिख सांसदों के साथ कुछ एक जत्थेबं​िदयों ने अब आवाज उठाई है जबकि यह पाबन्दी साल 2019 से लागू है मगर अफसोस कि आज तक सब चुप्पी साधे हुए थे। और तो और खालिस्तान के नाम पर निरन्तर हौ हल्ला करने वाले कट्टरपंथियों की बोलती भी बन्द है जो कि आए दिन भारत के टुकड़े कर खालिस्तान की मांग करते हुए विदेशों में बैठे युवकों को उकसाते रहते हैं।
हिन्दुओं ने जलाया – मुस्लिम ने दफनाया
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी जो केवल सिखों के ही गुरु नहीं थे बल्कि हिन्दू और मुसलमान भी अपने रीति रिवाज के हिसाब से उनकी पूजा किया करते हैं क्यांेकि गुरु साहिब ने ''अव्वल अल्लाह नूर उपाया'' का सन्देश दिया। गुरु नानक देव जी ने अपना आखिरी समय करतारपुर साहिब जो कि अब पाकिस्तान में है रहकर ''किरत करो'' भाव मेहनत करते हुए अपना जीवन बसर करने की समूची मानवता को प्रेरणा दी। उन्होंने जीवन के अन्तिम क्षणों में अपनी धर्म पत्नी माता सुलखनी जी, दोनों पुत्रों और संगत को अपने पास बिठाया और परमात्मा भक्ति में लीन हो गए। इससे पूर्व वह गुरता गद्दी गुरु अंगद देव जी को दे चुके थे। गुरु जी के अन्तिम दर्शनों के लिए दूर दराज से हिन्दू-मुस्लिम सभी लोग पहुंचने लगे। गुरु जी ने प्रमात्मा भक्ति करते हुए एक चादर ओड़ ली और जब चादर हटाई तो नीचे से फूल निकले जिस पर चादर के दो हिस्से करते हुए आधी का हिन्दुओं ने अपने रिवाज के अनुसार अन्तिम संस्कार किया और मुस्लिम ने आधी चादर को वहीं दफना दिया। आज भी इस स्थान पर गुरु जी की याद में समाधि और मकबरा एक ही परिसर में बने हुए हैं जिसके दर्शन संगत कर सकती है। गुरु नानक देव जी का ज्योति ज्योति पर्व उस समय आता है जब हिन्दू भाईचारा अपने पूर्वजों को याद करते हुए श्राद्ध के रुप में मना रहा होता है और दसवें श्राध वाले दिन ज्योति ज्योति पर्व आने के कारण कई लोग उस दिन को गुरु नानक देव जी के श्राद्ध का नाम भी देते हैं जबकि ऐसा नहीं है, गुरु जी ने तो उन लोगों को भी जागरुक करने की कोशिश की थी जो लोग अपने बड़े बजुर्गों की याद में इन दिनों ब्राहम्णों को भोजन कराया करते। गुरु जी ने समझाया था कि अगर आप वास्तव में अपने माता-पिता बड़े बुजुर्गों को प्यार करते हैं उनका सत्कार करते हैं तो उनके जीवन काल में जितनी हो सके उनकी सेवा करें, उनका ख्याल रखें।
सिखों के वकील बनकर सिख मसलें हर करवाने का आश्वासन
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन सः इकबाल सिंह लालपुरा जो कि इन दिनों बिहार के दौरे पर हैं जहां उन्होंने बौद्ध गया होते हुए गुरु गोबिन्द सिंह जी की जन्मस्थली तख्त पटना साहिब पहुंचकर ना सिर्फ माथा टेका बल्कि बिहार के सिखों की आवाज सरकार तक उठाने की बात करते हुए यहां तक कह दिया कि वह सिखों के वकील के तौर पर कार्य करते हुए सिख मसलों के समाधान हेतु केन्द्र और राज्य की सरकार से बात करेंगे। इतना ही नहीं उसी दिन उन्हांेने बिहार के उप मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें सिख मसलों से अवगत भी करवाया।
सः इकबाल सिंह लालपुरा को तख्त पटना साहिब कमेटी के अध्यक्ष जगजोत सिंह सोही, उपाध्यक्ष गुरविन्दर सिंह, सचिव हरबंस सिंह के द्वारा जानकारी दी गई कि बिहार में सिखों का आनंद मैरिज एक्ट लागू करवाना, सिखों को अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र, सरकारी नौकरियों में सिखों की भागीदारी, सिख संस्थानों की जमीनों पर शरारती अंसारों द्वारा कब्जा जैसे अनेक मसले हैं जिनका समाधान सरकारों को करना चाहिए। वैसे देखा जाए तो बिहार में हजारों एकड़ जमीन ऐसी है जिसे पूर्व समय के अन्दर गुरु नानक देव जी यां नानकशही संगत के नाम किया गया था और बाद में इन स्थानों की सेवा संभाल बाबा श्रीचन्द जी के शिष्यों के द्वारा की जाती रही है। मगर आज बहुत से स्थान ऐसे हैं जिन पर भूमाफिया यां फिर महंतों का कब्जा हो चुका है, जहां कई तरह के नाजायज कार्य भी होते हैं। अगर सरकार गंभीरतापूर्वक इस ओर ध्यान दे तो इन जगहों को खाली करवाकर तख्त पटना साहिब कमेटी और सिख संगत मिलकर अनेक स्कूल, अस्पताल आदि खुलवा सकती है जिससे मानवता की सच्ची सेवा हो सकती है। बिहार सिख फैडरेशन के संस्थापक त्रिलोक सिंह निषाद का कहना था कि दूसरे राज्यों की तर्ज पर बिहार में पंजाबी अकादमी खुलनी चाहिए, बिहार अल्पसंख्यक आयोग में एक पद सिख को अवश्य मिलना चाहिए, 1984 कत्लेआम का मुआवजा भी ज्यादातर लोगों को बिहार में नहीं मिला।
इस जैसे अनेक मुददों के बारे में उन्होंने भी सः इकबाल सिंह लालपुरा को अवगत करवाया जिस पर उन्होंने कहा कि इन्हंे हल करवाने की पूर्णतः कोशिश करेंगे।

– सुदीप सिंह