हमारे राष्ट्रीय इतिहास में एक संघर्षी, समर्थक, और स्वतंत्रता संग्राम के वीर सावरकर का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनके योगदान और विचार ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया, बल्कि आज भी हमें उनके अद्वितीय विचारों और दृष्टिकोण का संदेश देते हैं। "स्वतंत्रता वीर सावरकर" नामक चित्रपट उनके जीवन और कार्य को सार्थकता के साथ प्रस्तुत करता है। वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के भगनगर में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर था, जो एक संस्कृत पंडित और धर्मगुरु थे। उनका परिवार धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति गहरी श्रद्धा रखता था। बचपन से ही सावरकर जी ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया।
सावरकर जी का जीवन एक अद्वितीय संघर्ष और समर्पण की कहानी है। उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को राष्ट्रभक्ति और सेवा में समर्पित किया। उनकी भावनाओं और दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता बना दिया। "स्वतंत्रता वीर सावरकर" चित्रपट उनके जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों को साक्षात्कार कराता है। यह फिल्म उनके बचपन से लेकर उनके स्वतंत्रता संग्राम की यात्रा को दर्शाती है। उनके विचार, उनकी दृढ़ता और उनकी परिश्रमशीलता को प्रस्तुत किया गया है जो एक प्रेरणास्त्रोत बनता है।
इस चित्रपट में रणदीप हुडा ने सावरकर जी का किरदार उत्कृष्टता से निभाया है। उनकी अद्वितीय अभिनय कला और प्रेरणादायक रूप से सावरकर जी के चरित्र को जीवंत किया है। फिल्म के अन्य कलाकार भी अपनी भूमिकाओं को उत्कृष्टता से निभाते हैं। "स्वतंत्रता वीर सावरकर" एक चित्रपट नहीं, बल्कि एक अद्वितीय कहानी है जो हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और उनके विचारों की महत्वपूर्णता को समझने के लिए प्रेरित करती है। यह एक उत्कृष्ट कलात्मक अनुभव है जो हमें हमारे राष्ट्रीय इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं को जानने और समझने में सहायक होता है।
"स्वतंत्रता वीर सावरकर" चित्रपट को देखना एक संदेश है जो हमें अपने राष्ट्रीय उत्कृष्टता की महत्वपूर्णता को समझने और समर्थन करने के लिए प्रेरित करता है। यह एक अद्वितीय अनुभव है जो हमें हमारे वीर योद्धाओं के शौर्य और बलिदान का सम्मान करने की आवश्यकता को समझाता है।
सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग,
सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व,
सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य,
सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार,
सावरकर माने तिलमिलाहट…
'सागरा प्राण तड़मड़ला…
तड़मड़ाती हुई आत्मा'
सावरकर माने तितीक्षा,
सावरकर माने तीखापन, सावरकर माने तिखट,
कैसा बहुरंगी व्यक्तित्व..!
-श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी
मां भारती के वीर सपूत, प्रखर राष्ट्रवादी नेता, ओजस्वी वक्ता व समर्पित समाज सुधारक विनायक दामोदर सावरकर जी को कोटि-कोटि नमन। जब आज अपने परिवार के साथ स्वतंत्रता वीर सावरकर पर बनी फिल्म देखने का अवसर मिला तो बहुत सी बातों का खुलासा हो गया। मेरे प्रश्नों के तो उत्तर विस्तृत रूप से मिले ही अपितु बिटिया के प्रश्न, काला पानी की सजा कहना और उसको झेलना। कोल्हू, और वहां से भी क्रांति की चिंगारी को जलाए रखना।
बौद्धिक क्षमता से परिपूर्ण, स्वतन्त्र भारत में भी जेल जाना, हिंदुत्व की सही परिभाषा को देना । अखंड भारत की परिकल्पना, वर्ण व्यवस्था से ऊपर सोचना, अंतर जातीय विवाह को बढ़ावा देना। ऐसे कितने ही दृश्यों को परिदर्शित किया है इस फिल्म ने।
अंग्रेज जाते-जाते काले अंग्रेज छोड़ गए थे और वो आज भी जहां कही भी सांस ले रहे हैं ..फूट डालते हुए ही। हममें से ही बहरूपीये बने हुए …आज भी राज कर रहें हैं। जिसने विरोध किया उसको अलग कर दो, उसकी छवि पर वार कर दो। जिसने क्रांति को जन्म दिया बस उनके विचार ना मिल रहे हों तो उनका नामों-निशान मिटा दो, यही तो हुआ है सावरकर जी के साथ। क्योंकि कुछ लोगों के हिस्से मात्र संघर्ष आता है। मात्र तीन घंटे में जितना संभव हो सकता था एक बेहतरीन प्रतिभा की झलक है रणदीप हुडा द्वारा। अच्छी पटकथा, बेहतर डायलॉग, पिक्चराइजेशन, सभी कलाकारों ने बड़े ही मन से काम किया है। शाम का शो और हाल भरा हुआ। आपका मन अवश्य झकझोर देगा। हृदय को मजबूत बनाकर एक बार इस प्रस्तुति को देखने अवश्य आना चाहिए।
आचार्य देशबंधु महाविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय