राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आज याद करते हुए हम भारतवासियों को गर्व की अनुभूति होती है। गांधी जी ऐसे व्यक्ति हैं जिनके विचारों की प्रासंगिकता गुजरते समय के साथ और भी प्रासंगिक हो रही है। आज पूरी दुनिया को उनके दिखाए रास्ते पर चलने की जरूरत महसूस हो रही है। अलग-अलग मुद्दों से जूझते हुए विश्व को गांधी विचारों में ही समाधान मिलता प्रतीत हो रहा है।
शिक्षा समाज को दिशा प्रदान करती है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य के अंधकारपूर्ण जीवन में रोशनी उत्पन्न होती है। भारत में शिक्षा की प्राचीन परम्परा रही है। अंग्रेजों के आगमन से हमारी शिक्षा की समृद्ध परंपरा टूट गई। उसके बाद से हम अंग्रेजों द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति पर चलते रहे। राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का उदय होता है। गांधीजी एक तरफ स्वतंत्रता के लिए अहिंसक संघर्ष कर रहे थे तो दूसरी तरफ वे अपने रचनात्मक कार्यक्रमों के जरिए भारतीय समाज के बिखरे ताने-बाने को सहेजने की कोशिश कर रहे थे। गांधी जी शिक्षा को प्रमुख कारक मानते थे, बेहतर समाज निर्माण के लिए।
गांधी जी की इसी परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 । प्रधानमंत्री मोदी इसके जरिए बापू के मनोनुकूल शिक्षा व्यवस्था लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करना इसकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इसके साथ ही प्राथमिक स्तर पर ही बच्चों को हुनरमंद बनाने की कोशिश की जाती है। अर्थात अक्षर ज्ञान के साथ-साथ बुद्धि और श्रम का समन्वय। यह गांधी जी के सपनों को साकार करने में सार्थक होगा।
गांधी जी कहते थे कि स्वदेशी के जरिए ही भारत आत्मनिर्भर और मजबूत देश बन पाएगा। यहां गांधी जी के कथन पर गौर करना आवश्यक है- ''स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना जो हमें दूर को छोड़कर अपने समीपवर्ती प्रदेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है…। अर्थ के क्षेत्र में मुझे अपने पड़ोसियों द्वारा बनाई गई वस्तुओं का ही उपयोग करना चाहिए और उन प्रयोगों की कमियां दूर करके उन्हें ज्यादा सम्पूर्ण और सक्षम बनाकर उनकी सेवा करनी चाहिए। मुझे लगता है कि यदि स्वदेशी को व्यवहार में उतारा जाए तो मानवता के स्वर्णयुग की अवतारणा की जा सकती है।"
गांधी जी चाहते थे कि स्वदेशी के जरिए देश स्वावलंबी बने। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में उस दिशा में हमने लंबे अरसे बाद कदम बढ़ा दिया है। जिसके सकारात्मक परिणाम हमारे सामने आने शुरू हो गए हैं। आज स्वदेशी के लिए लोगों में जागृति आयी है, यह अत्यंत संतोषजनक है। महात्मा गांधी के सपनों के भारत में स्वच्छ भारत की कल्पना थी। जिसमें चारों तरफ स्वच्छता हो, ताजगी हो। आजादी के सात दशक बाद भी हम अपने गांव को स्वच्छ और स्वस्थ नहीं बना पाएं हैं लेकिन गांधीजी को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत 2 अक्तूबर 2014 को गांधी जयंती के अवसर पर की। स्वच्छ भारत अभियान की अवधारणा के अनुसार शौचालय, कचरा प्रबंधन, गांवों की सफाई एवं प्रचूर मात्रा में पेयजल सुविधा सुलभ होनी चाहिए।
आज विश्व में पर्यावरण संरक्षण बहस का मुद्दा बना हुआ है। पर्यावरण की चिंताजनक स्थिति को लेकर दुनिया के कई भागों में बुद्धिजीवियों और पर्यावरण कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे हैं और वातावरण के प्रदूषण पर विराम लगाने की बातें उन्होंने की हैं। धरती, आसमान और जल सबको हमने गंदा कर दिया है। यदि हम भारत के पौराणिक ग्रंथों, विभूतियों की जीवनियों का अवलोकन करें तो पाएंगे कि प्राचीनकाल पर्यावरण संरक्षण के प्रति कितना सजग था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी पर्यावरण पर समग्र चिन्तन किया है। यद्यपि बापू के जीवनकाल में पर्यावरण शब्द चलन में नहीं था लेकिन युगद्रष्टा गांधी की सोच इतनी दूरदर्शी थी कि उन्होंने उस समय में आज की स्थिति पर चिंता और चिंतन आरंभ कर दिया था। गांधी जी का मानना था कि ''विश्व के पास सबकी जरूरतें पूरा करने के लिए कुछ न कुछ है, पर किसी के लालच की पूर्ति के लिए कुछ भी नहीं है।'' बापू ने पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने के विभिन्न कारकों और उसे संरक्षित रखने के विभिन्न उपायों पर अपने विचार रखे हैं।
अपने लेख 'स्वास्थ्य की कुंजी में उन्होंने स्वच्छ वायु पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इसमें उन्होंने कहा है कि तीन प्रकार के प्राकृतिक पोषण की आवश्यकता होती है-हवा, पानी और भोजन लेकिन स्वच्छ वायु सबसे आवश्यक है।
गांधी जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उनके विचार व्यवहार की कसौटी पर उनके द्वारा आजमाए गए हैं। समय के बीतने के बावजूद उसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। आज दुनिया के सामने गांधी का रास्ता सर्वोत्तम और सतत् है। उनके जन्मदिवस पर उनके कार्यों को आत्मसात करना ही हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।