पश्चिम एशिया में इजराइल व फिलिस्तीन के बीच गाजा क्षेत्र में चल रहे युद्ध ने अब संयुक्त राष्ट्रसंघ पर भी अपनी डरावनी छाया डालनी शुरू कर दी है और इसके महासचिव श्री अंतानियो गुतारेस को विवादों में उलझाना शुरू कर दिया है। मगर इससे यह भी साबित हो रहा है कि इस मुद्दे पर दुनिया सीधे दो खेमों में बंटती जा रही है जिसे एक खतरनाक घटनाक्रम कहा जा सकता है। श्री गुतारेस का मानना है कि इजराइल गाजा में जो कुछ कर रहा है वह अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों के खिलाफ है और किसी को भी कानून से ऊपर होने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। जाहिर है कि इजराइल ने विगत 7 अक्तूबर को अपने ऊपर हुए हमास के हमले के जवाब में जिस तरह की युद्ध रणनीति बनाई है उससे हजारों की तादाद में बेगुनाह फिलिस्तीनियों को मौत के मुंह में जाना पड़ा है जिनमें बच्चों व महिलाओं की संख्या सर्वाधिक है। श्री गुतारेस ने इस युद्ध को इसी वजह से अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों के खिलाफ बताया है क्योंकि इसका शिकार निरीह नागरिकों को बनना पड़ रहा है। राष्ट्रसंघ युद्ध को रोकने के पक्ष में है और समस्या के स्थायी हल की बात कर रहा है।
श्री गुतारेस ने हमास के हमले को पूरी तरह गलत बताते हुए एक बात और कही है जिसकी तरफ दुनिया के हर देश को ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमास का हमला किसी 'खाली' वातावरण में नहीं हुआ है बल्कि इसके पीछे पिछले 56 साल का इतिहास है। इन 56 वर्षों से फिलिस्तीनी नागरिक भारी घुटन के वातावरण में जी रहे हैं जो कि उनके इलाकों पर जबरन कब्जा करने से पैदा हो रहा है। उन्होंने देखा है कि किस प्रकार उनकी जमीनों पर इजराइल द्वारा अपने नागरिकों को बसा कर धीरे- धीरे कब्जा किया गया और उनके साथ हिंसा की गई। उनकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी है और उनके लोग निर्वासित हुए तथा उनके मकान दिये गये। इजराइल और फिलिस्तीन समस्या का राजनैतिक समाधान करके उनके भविष्य की कामना समाप्त हो रही है। मगर गाजा का शासन संभाले हमास द्वारा आतंकी हमला करके फिलिस्तीनियों की परेशानियों का हल ढूंढना भी कोई रास्ता नहीं हो सकता। साथ ही ऐसे हमले के जवाब में सामूहिक तौर पर फिलिस्तीनियों पर सजा देना भी न्यायोचित और तर्क संगत नहीं कहा जा सकता। श्री गुतारेस के इस कथन से स्पष्ट है कि वह इजराइल द्वारा गाजा में अपनाई गई युद्ध नीति को मानवता के सिद्धान्त के विरुद्ध मानते हैं और चाहते हैं कि समस्या का समाधान आम फिलिस्तीनियों की जान को बीच में डाले बिना ही किया जाये। मगर इजराइल श्री गुतारेस के बयान से इस कदर खफा हो गया कि उसके विदेश मन्त्री सहित राष्ट्रसंघ में उसके प्रतिनिधि ने उनसे इस्तीफा ही मांग लिया और कहा कि वह इस पद के काबिल ही नहीं हैं। इस युद्ध में जिस तरह गाजा के अस्पताल से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय संस्थाओं के भवन धाराशयी हो रहे हैं और उनके कर्मचारी तक मारे जा रहे हैं उससे एक अलग समस्या खड़ी हो गई है जिसकी वजह से दुनिया के विभिन्न देश दो धड़ों में बंटते नजर आ रहे हैं।
गत रात्रि ही इजराइली हमले में सात सौ के लगभग लोग मारे गये हैं। मूल प्रश्न यह है कि आतंकवादियों को सबक सिखाने के लिए आम नागरिकों की जान का सौदा किस तरह कबूल किया जा सकता है। इसी वजह से श्री गुतारेस ने युद्ध विराम की अपील की मगर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि यदि युद्ध विराम होता है तो इसका फायदा हमास को होगा। इसके साथ सवाल जुड़ा हुआ है कि यदि युद्ध विराम नहीं होता है तो इस बात की गारंटी कौन देगा कि गाजा में बेकसूर नागरिक नहीं मारे जायेंगे। श्री गुतारेस विश्व की चुनी हुई सबसे बड़ी संस्था राष्ट्रसंघ के महासचिव हैं और जब वह यह कह रहे हैं कि इजराइल अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों का उल्लंघन कर रहा है तो पूरी दुनिया को उनकी बात पर विश्वास करना होगा। यदि इजराइल इस पर आपत्ति कर रहा है तो उसे सबूत देना होगा कि वह एेसा नहीं कर रहा है क्योंकि वह भी राष्ट्र संघ का सम्मानित सदस्य है बल्कि उसका जन्म ही 1947 में राष्ट्रसंघ के प्रस्ताव के जरिये हुआ है।
किसी भी युद्ध के कुछ नियम होते हैं जो राष्ट्रसंघ द्वारा ही सर्वसम्मति बनाये गये हैं अतः इजराइल को भी इन नियमों व कानूनों का सम्मान करना चाहिए। राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की मन्त्री स्तर की जो बैठक ब्राजील के नेतृत्व में हुई थी उसमें अमेरिका, इजराइल, फिलिस्तीन, ब्राजील, फ्रांस आदि देशों के विदेश मन्त्रियों ने भाग लिया जिसमें श्री गुतारेस ने उपरोक्त विचार व्यक्त किये। उन्हें इस बात पर दुख था कि गाजा में इजराइल अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय कानूनों का खुला उल्लघंन कर रहा है। उनका कहना था कि युद्ध के दौरान कोई भी पक्ष अन्य कानूनों से परे नहीं होता है। मगर इजराइल को यह नहीं भाया और इसके विदेश मन्त्री ने श्री गुतारेस से मिलने से ही इन्कार कर दिया और इसके राष्ट्रसंघ में प्रतिनिधि ने उनका इस्तीफा ही मांग लिया। यह बहुत गंभीर घटनाक्रम है, इससे समूची विश्व व्यवस्था जुड़ी हुई है। दूसरी तरफ चीन ने भी अब इस मामले पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है और इसके विदेश मन्त्री ने मांग की है कि फिलिस्तीन समस्या का स्थायी हल खोजा जाना चाहिए। अरब सागर से लेकर हिन्द-प्रशान्त सागर के क्षेत्र तक में अमेरिका व चीन के बीच पहले से ही जंगी-जहाजी प्रतिस्पर्धा चालू है। इन परिस्थितियों में यदि दुनिया दो धड़ों में बंट जाती है तो स्थिति को और भयावह होने से नहीं रोका जा सकता। इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रसंघ के छाते के नीचे ही इस समस्या का शान्तिपूर्ण हल जल्दी से जल्दी ढूंढा जाये।