संपादकीय

बंगलादेश में आम चुनाव

Aditya Chopra

पड़ोसी देश बंगलादेश में कल आम चुनाव होने जा रहे हैं। इन चुनावों को लेकर भारत, रूस, चीन और अमेरिका की नजरें लगी हुई हैं लेकिन यह चुनाव भारत के लिए बहुत अहम हैं। बंगलादेश के चुनावों में भारत हमेशा से ही मुद्दा रहा है। हालांकि यह चुनाव वन वुमैन शो बन चुका है। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी विपक्षी खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी और उसके सहयोगी दल चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं। इस तरह प्रधानमंत्री शेख हसीना का चौथी बार प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा है। सियासत के उन्मादी माहौल में खालिदा जिया की बीएनपी और सहयोगी दलों के अनेक नेता व कार्यकर्ता जेलों में हैं। जिसके लिए मौजूदा सरकार की आलोचना भी हो रही है। अमेरिका भारत के रुख के विपरीत अपना खेल खेलने में लगा हुआ है और अमेरिकी सक्रियता इस क्षेत्र को अस्थिर कर सकती है। चीन और रूस अपने हितों की रक्षा करने में लगे हुए हैं। साथ ही भारत भी अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करना चाहता है। भारत ने 1971 में बंगलादेश मुक्ति वाहिनी के समर्थन में अपनी सेना भेजकर बंगलादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका​ निभाई थी और दोनाें देशों के बीच घनिष्ठ सांस्कृतिक, जातीय और भाषाई संबंध हैं।
बंगलादेश ने आजाद होकर पाकिस्तान के विपरीत लोकतंत्र को चुना जबकि पाकिस्तान में आज भी लोकतंत्र सेना के बूटों के तले चलता है। शेख हसीना के 15 वर्षों के शासन में आर्थिक ​विकास, बुनियादी ढांचे के विकास के लिए काफी काम किया गया। इसके अलावा उन्होंने जेहादी और कट्टरपंथी ताकतों पर लगाम कसने का काम किया। विपक्षी बीएनपी की सरकार के दौरान जब खालिदा जिया प्रधानमंत्री थीं तो भारत के अनुभव अच्छे नहीं रहे। बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी की साझा सरकारों के दौरान कई जेहादी समूह उभर आए थे जिनका इस्तेमाल भारत के​ विरुद्ध किया जाता रहा है। 2009 में सत्ता में आने के तुरन्त बाद शेख हसीना ने भारत के उत्तर पूर्व के जातीय विद्रोही समूहों के खिलाफ कार्रवाई की। उनकी सरकार ने उल्फा समेत कई विद्रोही संगठनों के सरगनाओं को भारत के हवाले ​किया। भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाकर दोनों देशों के बीच व्यापार और सम्पर्क बढ़ाया गया। चीन अपना खेल खेल रहा है।
चीन ने पिछले एक दशक में बंगलादेश के बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में काफी निवेश किया है। इतना ही नहीं, चीन ने बंगलादेश में पनडुब्बी अड्डा बनाने का काम भी शुरू कर दिया है। यह पनडुब्बी अड्डा बंगलादेश नौसेना के लिए बनाया जा रहा है, लेकिन इसके निर्माण में चीन के शामिल होने से भारत चिंतित है। बंगलादेश में बढ़ती चीनी उपस्थिति और बंगलादेश के व्यापक समुद्री क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक ताकत ने भारत और अमेरिका को परेशान कर रखा है। 2021 में बंगलादेश में चीन के राजदूत ली जिमिंग ने ढाका को इंडो-पैसिफिक क्वाड में शामिल न होने की चेतावनी दी थी। बंगलादेश को इसमें शामिल होने में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन जिमिंग शायद बंगलादेश पर दबाव बनाना चाहते थे कि वह भारत या अमेरिका के करीब न जाए।
कुछ महीने पहले बंगलादेश रूस के खिलाफ था। उसने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को लेकर आ रहे एक रूसी मालवाहक जहाज को प्रवेश की अनुमति देने से इंकार कर दिया था लेकिन अमेरिका से तनाव बढ़ते ही बंगलादेश ने रूस से संबंध सुधारने शुरू कर दिया। अब अमेरिका एक बार फिर बंगलादेश के चुनाव में अलग-थलग पड़ा हुआ है। भारत ने रूस और चीन का पक्ष लेते हुए पहले ही साफ कर​ दिया है कि बंगलादेश के चुनावों में बाहरी हस्ताक्षेप नहीं होना चाहिए। चीन बंगलादेश का सबसे बड़ा रक्षा सप्लायर और ट्रेडिंग पार्टनर है। इसलिए अमेरिका से उसका टकराव होता रहता है। बंगलादेश चावल, दाल, सब्जियों जैसी कई आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई के​ लिए भारत पर निर्भर है। भारत ने अपने उत्तर-पूर्वी राज्यों में माल परिवहन के लिए बंगलादेश के साथ सड़क, नदी और ट्रेन सम्पर्क विकसित कर लिया है। भारत बंगलादेश के बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं के लिए सात अरब डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान कर रहा है।
दुनिया के तमाम देश चाहते हैं कि पड़ोस में मित्रवत सरकार रहे और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। शेख हसीना भारत की मित्र रही हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हर मंच पर बंगलादेश को तवज्जो दी है। हाल ही में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बंगलादेश को विशेष अतिथि के रूप में बुलाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने आवास पर शेख हसीना से मुलाकात भी की थी। भारत नहीं चाहता कि बंगलादेश में विपक्षी दलों की सरकार बने क्योंकि बीएनपी का झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरफ रहा है। इसका फायदा भारत और चीन उठाते हैं। बंगलादेश के साथ भारत की लगभग 4000 किलोमीटर की सीमा लगती है। सुरक्षा की दृष्टि से भी बंगलादेश से अच्छे संबंध महत्वपूर्ण हैं। जिस उल्फा नेता अरविन्द राजखोवा के गुट ने केन्द्र सरकार और असम सरकार से शांति समझौता किया है उसे भी हसीना सरकार ने पकड़ कर भारत के हवाले किया। यह कोई रहस्य नहीं है कि दिल्ली शेख हसीना की सत्ता में वापसी देखना चाहती है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com