संपादकीय

तेलंगाना में भी शानदार मतदान

Aditya Chopra

तेलंगाना में भी धुआंधार मतदान के बाद 3 दिसम्बर को चुनाव परिणामों का इन्तजार देश के हर नागरिक को रहेगा। देश के जिन पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम व तेलंगाना में चुनाव हुए हैं उन सभी में इस बार अच्छा मतदान हुआ है जिससे पता चलता है कि मतदाता राजनीति के प्रति लगातार सजग हो रहे हैं। तेलंगाना इन सभी राज्यों में सबसे युवा राज्य है जिसका गठन 2014 में केन्द्र की डा. मनमोहन सिंह सरकार ने किया था परन्तु इसी साल बाद में हुए विधानसभा चुनावों में यहां क्षेत्रीय नेता श्री चन्द्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्रीय समिति जीत गई थी। इसकी वजह यह समझी गयी थी कि तेलंगाना निर्माण के लिए इस पार्टी ने सड़कों पर संघर्ष किया था और जन आन्दोलन छेड़ा था। तब से अब तक चन्द्रशेखर राव ही इस राज्य के मुख्यमन्त्री चले आ रहे हैं और ऐसा माना जा रहा है कि इस बार के चुनावों में सत्ता विरोधी लहर चली है। इसमें कितना सत्य है, इसका पता तो 3 दिसम्बर को ही चलेगा परन्तु आम जनता का उत्साह चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह देखने को मिला उससे इतना तो कहा ही जा सकता है कि जनता निर्णायक फैसला कांग्रेस अथवा समिति को देने जा रही है। पिछली बार भी यहां के मतदाताओं ने राष्ट्रीय समिति के प्रत्याशियों को जबर्दस्त समर्थन दिया था और 119 सदस्यीय विधानसभा में इसके 88 सदस्य भेज दिये थे। दूसरे नम्बर पर कांग्रेस रही थी जिसके 21 सदस्य चुने गये थे जबकि भाजपा का केवल एक विधायक ही चुना गया था।
चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार कांग्रेस व राष्ट्रीय सदस्यों की संख्या में भारी बदलाव आ सकता है जबकि भाजपा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इत्तेहादे मुसलमीन के बाद चौथे नम्बर पर ही रहेगी। इससे कहा जा सकता है कि असली मुकाबला कांग्रेस व राष्ट्रीय समिति के बीच ही है। तेलंगाना छोटा राज्य है मगर इसकी शहरी जन संख्या 39 प्रतिशत व ग्रामीण जनसंख्या 61 प्रतिशत के लगभग है। इसलिए जिस पार्टी का दबदबा गांवों में होगा अंत में विजयश्री उसी का वरण कर सकती है। पिछली बार राष्ट्रीय समिति को 48 प्रतिशत के लगभग मत मिले थे जबकि कांग्रेस को 32 प्रतिशत के आसपास वोट मिले थे। देखना यह होगा कि इन दोनों पार्टियों के मतों में इस बार कितना अन्तर रहता है और पलड़ा किसके पक्ष में झुकता है। जहां तक पिछली बार के मतदान का सवाल है तो शहरी क्षेत्रों में यह 50 प्रतिशत से भी कम रहा था और ग्रामीण क्षेत्रों में 80 प्रतिशत से भी ऊपर रहा था जिससे औसत मतदान प्रतिशत 73 के करीब रहा था। यह राज्य भी अन्य राज्यों की तरह बता रहा है कि गांवों में रहने वाले और अनपढ़ व गरीब समझे जाने वाले लोग राजनीतिक रूप से अधिक सचेत व बुद्धिमान होते हैं। इससे सकल भारत की राजनीतिक सूझबूझ का ही पता चलता है क्योंकि असली भारत गांवों में ही रहता है। इस राज्य में 85 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दुओं की है जबकि मुस्लिम 13 प्रतिशत से कुछ कम और ईसाई 1.2 प्रतिशत हैं। असली लड़ाई में जो भी पार्टियां हैं वे अपने-अपने को किसानों व ग्रामीणों का हितैषी ही बताती हैं।
चुनाव परिणाम बतायेंगे कि लोगों ने किस पार्टी को अपना हितैषी समझा है परन्तु इस बार भाजपा इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाना चाहती थी। यह भी देखना होगा कि उसे इस बार कितने प्रतिशत मत मिलते हैं क्योंकि पिछले चुनावों में उसकी सीट बेशक एक थी मगर मत प्रतिशत 12 के आसपास था जबकि इन चुनावों के कुछ महीनों बाद ही हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा चार सीटें ले गई थी और इसका मत प्रतिशत भी बढ़कर 18 के आसपास हो गया था।
राज्य में एक पार्टी ऐसी भी है जिसका असर केवल राजधानी के क्षेत्र हैदराबाद में ही है। हैदराबाद से विधानसभा की 20 सीटें हैं। इनमें से सात सीटें पिछली बार असदुद्दीन ओवैसी की इत्तेहादे मुसलमीन पार्टी को मिली थीं जबकि कांग्रेस तीन पर जीती थी और बाकी राष्ट्रीय समिति के खाते में गई थीं। ऐसा माना जा रहा है कि यदि इस बार चुनाव परिणामों में बड़ा फेरबदल होता है तो हैदराबाद भी इससे अछूता नहीं रहेगा। मगर चुनावी राजनीति में कभी भी कोई नियम व परंपरा से मतदाता नहीं बंधते हैं क्योंकि वे लोकतन्त्र के असली मालिक और शहंशाह होते हैं। उनके वोट में नेताओं को अर्श से फर्श पर लाने की ताकत होती है जिसे राजनीति में बदलाव कहा जाता है। लोकतन्त्र की विशेषता यह भी होती है कि यह बदलते समय के अनुसार बदलाव मांगता रहता है और इस व्यवस्था में जनता के सामने कभी भी विकल्पों की कमी नहीं रहती क्योंकि भारत बहु राजनैतिक दल व्यवस्था का लोकतन्त्र है। अतः भारी मतदान होना भी लोकतन्त्र की जय है और 3 दिसम्बर को जब परिणाम आयेंगे तब भी केवल लोकतन्त्र ही जीतेगा।