दो राज्यों हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में हुए चुनावों के जो परिणाम आये हैं उनसे स्पष्ट है कि इन राज्यों की जनता ने सन्देश दिया है कि वे उसे अपनी 'चेरी' समझने की भूल नहीं कर सकते क्योंकि अन्त में लोकतन्त्र की असली मालिक वही होती है। इस सन्दर्भ में हरियाणा से जो जनादेश आया है वह कई मायनों में आश्चर्यजनक माना जा रहा है और इसे चौंकाने वाला कहा जा रहा है। क्योंकि लगभग सभी एक्जिट पोलों के निष्कर्ष के विरुद्ध राज्य में लगातार तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार गठित होने जा रही है। इससे पहले कभी एेसा नहीं हुआ कि इस राज्य में कोई भी राजनैतिक दल लगातार तीन बार सरकार बनाने में सफल रहा हो। चुनावों से पहले हरियाणा में जो राजनैतिक समां बंधा था उसे देखकर कयास लगाये जा रहे थे कि इस बार लोगों ने सत्ता परिवर्तन का मन बना लिया है मगर परिणामों ने इन कयासों को गलत साबित कर दिया और लोगों ने पुनः भाजपा को बहुमत देकर आदेश दिया कि वह ही तीसरी बार भी सत्ता पर काबिज हो। निश्चित रूप से इसे प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से बांधकर देखा जा सकता है।
इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में राज्य की कुल दस लोकसभा सीटों में से भाजपा केवल पांच सीटें ही जीत पाई थी जबकि पांच सीटें कांग्रेस जीतने में कामयाब रही थी। मगर विधानसभा चुनाव आते-आते भाजपा अपनी स्थिति सुधारने में सफल रही। इन चुनावों में बेशक कांग्रेस के मत प्रतिशत में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई मगर यह वृद्धि भाजपा के मत प्रतिशत 40 के लगभग बराबर ही रही। पिछले 2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत 28 के करीब रहा था। इससे यह भी पता चलता है कि राज्य में पिछले दस वर्षों से हुकूमत पर काबिज भाजपा की लोकप्रियता में कोई खास कमी नहीं आयी हालांकि चुनावी माहौल उसके खिलाफ माना जा रहा था। यदि एेसा न होता तो कांग्रेस के मत प्रतिशत में 12 प्रतिशत की वृद्धि न होती। इस मामले में भाजपा आलाकमान की हरियाणा का चुनाव जीतने के लिए बनाई गई रणनीति की दाद देनी पड़ेगी जिसने हारी हुई बाजी को जीत में तब्दील कर दिया। यह रणनीति चुनावों से कुछ महीने पहले मुख्यमन्त्री बदलने की थी।
2014 के चुनावों के बाद चुनावी विजय मिलने पर भाजपा ने श्री मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमन्त्री बनाया था। वह अपने पद पर 2019 के चुनावों के बाद भी काबिज रहे मगर उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पद से हटाकर श्री नायब सिंह सैनी को मुख्यमन्त्री बना दिया गया। सैनी बहुत सीधे-सादे व बेदाग राजनीतिज्ञ माने जाते हैं। हालांकि वह खट्टर सरकार में मन्त्री भी रहे मगर उनकी छवि एक सरल व्यक्ति की ही थी। श्री खट्टर को हटाकर जब उन्हें मुख्यमन्त्री बनाया गया तो राज्य की जनता में भाजपा सरकार के खिलाफ पनप रहे गुस्से को थोड़ी ठंडक भी मिली। श्री सैनी ने अपनी सरल छवि के अनुसार ही प्रदेश का शासन करना शुरू किया और जनता की कठिनाइयों का उपाय ढूंढना प्रारम्भ किया। इससे सरकार के खिलाफ उपज रहे गुस्से को शान्त होने में मदद मिली और हमने देखा कि विधानसभा चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत गिर नहीं पाया। अतः श्री सैनी को पंजाब केसरी की तरफ से बधाई। श्री सैनी ने राज्य की जनता के बीच प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों को आगे रख कर ही वोट मांगे। इसके साथ पूरी भाजपा भी श्री मोदी के नाम पर ही वोट मांग रही थी। अतः हरियाणा की जीत को हम मोदी की जीत भी कह सकते हैं। मगर हरियाणा के चुनाव परिणामों को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव आयोग की भूमिका पर कुछ सवाल खड़े किये हैं। आयोग एक स्वतन्त्र व स्वायत्तशासी संवैधानिक संस्था है अतः कांग्रेस के सवालों का सन्तोषजनक उत्तर उसे देना चाहिए।
हरियाणा के चुनावों में आिखरी तीन दिनों में कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और इस राज्य की यात्रा करके चुनाव प्रचार किया था। मगर माना जा रहा है कि पार्टी की अन्तर्कलह व गुटबाजी की वजह से इसका पूरा लाभ कांग्रेस पार्टी नहीं उठा पाई। इसके लिए कांग्रेस नेत्री कुमारी शैलजा को भी कुछ राजनैतिक विश्लेषक जिम्मेदार ठहरा रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस नेता श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के साथ अपने मतभेदों को खुलकर हवा दी। मगर शैलजा अकेली ही एेसी नेता हों एेसा भी नहीं है। कांग्रेस के एक और नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला भी छुपे रुस्तम निकले जो अपने बेटे को टिकट दिलवा कर उसके चुनाव क्षेत्र में ही मस्त हो गये और खुद को भी मुख्यमन्त्री पद का दावेदार बताने लगे। अतः कहा जा रहा है कि कांग्रेस अपने ही कारनामों की वजह से जीती हुई बाजी हार गई। जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है तो यहां अपेक्षा के अनुरूप ही चुनाव परिणाम आये हैं। कश्मीर घाटी में जहां नेशनल काॅन्फ्रेंस ने इस क्षेत्र की कुल 47 में से 42 सीटें जीतीं वहीं जम्मू क्षेत्र की 43 सीटों में से भाजपा ने 29 सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस ने भी चुनाव पूरी हिम्मत के साथ लड़ा। वैसे यहां कांग्रेस व नेशनल काॅन्फ्रेंस का इंडिया गठबन्धन इकट्ठे होकर चुनाव लड़ रहा था जिसे पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। इस राज्य के मुख्यमन्त्री अब उमर अब्दुल्ला होंगे। वह घाटी से दो स्थानों से चुनाव लड़े थे। देखना होगा कि उमर अब्दुल्ला अब जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए कौन सी रणनीति अपनाते हैं क्योंकि यह दर्जा बहाल कराने का उन्होंने जनता से चुनावों में वादा किया हुआ है।