संपादकीय

भाजपा अध्यक्ष को लेकर माथा पच्ची

Shera Rajput

'तुम तो कच्चे रंग की तितली हो
बरसात में इधर-उधर फिरा करती हो
कैसे यकीं कर लूं तेरे रंगों पर
एक फूल से दूजे फूल पर गिरा करती हो'

भाजपा के नए अध्यक्ष को लेकर भगवा पार्टी व संघ के दरम्यान पेंच फंस गया है। 24 के चुनावी नतीजों के बाद थोड़ी बैकफुट पर आ गई भाजपा अब संघ को खेलने के लिए खुद ही एक बड़ा सियासी मैदान मुहैया करा रही है। भगवा राजनीति में भाजपा के अभ्युदय से हालात बदले हैं साथ ही भाजपा अपने बड़े रणनीतिक फैसलों में संघ की मंशाओं को उनका मनचाहा आसमां नहीं दे पा रही थी, सो संघ दुलारे सुनील बंसल के नाम पर भी भगवा पार्टी विचार करने से नहीं हिचक रही। भाजपा ने कहा कि उन्हें अध्यक्षीय कुर्सी दिए जाने पर योगी आदित्यनाथ नहीं मानेंगे।'
वैसे भी बंसल विस्तारित वैश्य समाज से ही आते हैं और भाजपा पर पहले से ही बनियों की पार्टी होने का ठप्पा भी लगता रहा है। कहते हैं इसके बाद भाजपा शीर्ष की तरफ से संघ को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल का नाम भेजा गया, जिसे संघ ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मोदी व शाह दोनों ही गुजरात से हैं, ऐसे में अगर भाजपा अध्यक्ष भी गुजरात का हो जाएगा तो पार्टी कैडर में क्या संदेश जाएगा?' फिर महाराष्ट्र चुनाव की आसन्न आहटों को भांपते संघ की ओर से विनोद तावड़े का नाम आगे किया गया, पर तावड़े पर गडकरी करीबी होने का आरोप लगा भाजपा शीर्ष ने इस नाम को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया।
नाम तो वसुंधरा राजे, रवि शंकर प्रसाद, संजय विनायक जोशी के भी चले, पर इन नामों पर भी किंचित गंभीरता से विचार नहीं हो पाया। भूपेंद्र यादव का नाम तो एक सदाबहार नाम है, पर संघ को लगता है कि यादव भाजपा के चाहे कितने भी खास हों, पर वे अध्यक्ष पद के लिए थोड़े जूनियर हैं।' सो, ले देकर अभी देवेंद्र फड़णवीस का नाम ही माहौल में गर्मी पैदा कर रहा है। सूत्र बताते हैं कि देवेंद्र फड़णवीस को पिछले दिनों दिल्ली के लुटियंस जोंस में केंद्र सरकार की ओर से एक सरकारी आवास भी आवंटित हुआ है, जो इन कयासों को बल देता है कि फिलहाल तो अध्यक्ष पद को लेकर उनका ही दावा सबसे मजबूत है।
राहुल के लिए नरम पड़ता संघ?
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हमेशा से संघ की नीतियों व कार्यक्रमों पर निशाना साधा है, गाहे- बगाहे उन्होंने संघ पर सीधा हमला भी बोला है। बावजूद इसके हालिया दिनों में संघ का शीर्ष नेतृत्व राहुल के प्रति किंचित नरम पड़ता नज़र आ रहा है। क्या संघ देश में बदलती सियासी बयार की थाह पा गया है या राहुल के हालिया 'सॉफ्ट हिंदुत्व' के स्टैंड पर मोहित हो गया है? अभी राहुल गांधी के हाल के अमेरिकी दौरे में जिस तरह वहां बसे अप्रवासी भारतीयों ने उन्हें हाथों हाथ लिया है, यह भी संघ को उनकी भाव-भंगिमा बदलने के लिए मजबूर कर सकता है। जैसा कि संघ से जुड़े एक विश्वसनीय सूत्र का दावा है कि संघ एक सांस्कृतिक संगठन है, सो उसका किसी राजनैतिक दल से कोई निजी वैर-भाव नहीं, इसी सूत्र का दावा है कि आने वाले दिनों में संघ का शीर्ष नेतृत्व सीधे राहुल गांधी से अपने तार जोड़ने के प्रयास करेगा, यह भी बताया जा रहा है कि संघ नेतृत्व की ओर से 'मिशन राहुल' की कमान कृष्ण गोपाल के हाथों में सौंपी गई है जो एक अच्छे अध्येता व विचारक भी हैं।
क्या बागी बिगाड़ सकते हैं खेल?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही पार्टियां बागियों को लेकर परेशां हाल है। बात करें कांग्रेस की तो पार्टी के कोई 56 नेताओं ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है, इनमें से लगभग 42 नेता 34 अलग-अलग सीटों पर निर्दलीय मैदान में भी उतर गए हैं। वहीं भाजपा के लगभग 78 नेताओं ने बगावती सुर अख्यितार कर रखे हैं जो लगभग 49 सीटों पर भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं, इनमें से 47 तो ऐसे हैं जो बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
हरियाणा भाजपा के सबसे वरिष्ठ माने जाने वाले राम विलास शर्मा को जब पार्टी ने टिकट देने से मना कर दिया तो वे निर्दलीय ही मैदान में उतर गए, शर्मा सबसे ज्यादा खट्टर से नाराज़ बताए जा रहे थे। बाद में दिल्ली के शीर्ष नेता ने उन्हें फोन कर मनाया तब जाकर उन्होंने अपना पर्चा वापिस लिया। कांग्रेस की ओर से पार्टी के बागियों को मनाने का जिम्मा भूपिंदर सिंह हुड्डा को सौंपा गया है, वे एक-एक बागी नेता से व्यक्तिगत तौर पर मिल कर उन्हें मनाने के प्रयास कर रहे हैं। बीते शुक्रवार को बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष करण देव कम्बोज ने भी बगावत का बिगुल फूंक दिया था, उन्होंने भाजपा छोड़ कर आनन-फानन में कांग्रेस ज्वॉइन कर ली, भाजपा सीएम नायब सिंह सैनी से तो उन्होंने हाथ मिलाने से भी इंकार कर दिया था।
भिवानी की बवानी खेड़ा सीट से कांग्रेस ने प्रदीप नरवाल को चुनावी मैदान में उतारा है। नरवाल को टिकट मिलते ही तीन बार के विधायक रामकिशन फौजी और सतवीर रतेरा ने बगावत कर दी। बवानी खेड़ा सीट से राम किशन फौजी और सतवीर रतेरा दोनों ही निर्दलीय मैदान में उतर आए हैं।
केजरीवाल को लेकर भाजपा का गेम प्लॉन
क्या यह महज़ इत्तफाक है कि आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर फैसला 5 सितंबर को ही सुरक्षित रख लिया जाता है और उन्हें जमानत दी जाती है तब जब हरियाणा विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों के नामंकन की आखिरी तारीख 12 सितंबर गुजर जाती है और इसके ठीक एक रोज बाद शीर्ष कोर्ट जांच एजेंसियों पर कुछ कड़ी टिप्पणियों के साथ 13 सितंबर को केजरीवाल को जमानत दे देता है। एक कांग्रेसी नेता का दावा है कि केजरीवाल की रिहाई में बस इस वजह से देर लगाई गई है ताकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में आप व कांग्रेस का चुनावी गठबंधन न हो पाए और भाजपा अपने इस मकसद में कामयाब भी रही। वैसे भी केजरीवाल रणभूमि में एक ऐसे योद्धा की तरह हैं जो लड़ाई के मैदान में तो हैं, पर उनके दोनों हाथ बांध दिए गए हैं। कहना न होगा कि इस बार का पूरा हरियाणा चुनाव वैसे भी भाजपा दूसरों के भरोसे लड़ रही है।
भाजपा के लिए असली चिंता की वजह यह है कि कोई 10 साल बाद इस दफे के विधानसभा चुनाव में दलित व जाट वोटर खुल कर कांग्रेस के पक्ष में कदमताल कर रहे हैं। सो, उसकी काट के लिए भगवा पार्टी ने अपनी 'बी टीम' कहे जाने वाली मायावती की बसपा को काम पर लगा दिया है। बसपा बड़े चौटाला की पार्टी के साथ गठबंधन में हैं तो चंद्रशेखर आजाद दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के साथ कदमताल कर रही है। जेजेपी का असली मकसद तो जाट वोटरों को कांग्रेस से तोड़ना है और अपरोक्ष तौर पर भाजपा को फायदा पहुंचाना है। बाकी कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए तो केजरीवाल हैं न।
…और अंत में
हरियाणा चुनाव के बाद कांग्रेस संगठन में एक व्यापक फेरबदल मुमकिन है। सूत्र बताते हैं कि हरियाणा कांग्रेस के एक प्रमुख नेता रणदीप सुरजेवाला को पार्टी महासचिव पद से हाथ धोना पड़ सकता है, अगर ऐसा हुआ तो फिर उनके हाथ से कर्नाटक का प्रभार भी जाता रहेगा। कहते हैं सुरजेवाला ने राज्य की एक अन्य प्रमुख महिला नेत्री के साथ मिल कर कांग्रेस के सीएम पद उम्मीदवार भूपिंदर हुड्डा की राहों में कांटे बिछाए हैं, यह बात राहुल गांधी को पसंद नहीं आई है।

– त्रिदिब रमण