संपादकीय

हैलो यू आर अंडर डिजिटल अरेस्ट !

Aakash Chopra

डिजिटल अरेस्ट एक ऐसा शब्द है जो कानून में नहीं है लेकिन अपराधियों के इस तरह के बढ़ते अपराध की वजह से इसका उद्भव हुआ है। पिछले तीन महीने में दिल्ली-एनसीआर में 600 मामले ऐसे आए हैं जिनमें 400 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है । डिजिटल अरेस्ट के जरिए साइबर ठग आसानी से लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। बीते 30 सितंबर को आगरा की रहने वाली मालती वर्मा के मोबाइल पर 8 मिनट में 10 बार वॉट्सऐप कॉल आई। हर बार मालती को धमकी मिली कि उनकी बेटी सेक्स रैकेट में पकड़ी गई है। गूगल-पे पर तुरंत 1 लाख रुपए भेज दो। पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी पहने साइबर ठग ने मालती को 4 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा। इस घटना से मालती वर्मा इतना घबरा गईं कि हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। कम समय में हाई रिटर्न पर विश्वास न करें। किसी भी तरह के निवेश से पहले पूरी तरह जांच पड़ताल कर लें, डिजिटल अरेस्ट की कॉल को अनदेखा करें। किसी भी तरह की जानकारी के लिए हेल्पलाइन 1930 पर संपर्क करें, कोई भी सरकारी एजेंसी ऑनलाइन तरीके से पूछताछ नहीं करती है, बैंक खातों में लेन-देन की जानकारी मोबाइल से नहीं पूछी जाती है। ऐसे में विश्वास न करें, फोन पर शातिर सबसे पहले बातों-बातों में ही व्यक्ति की पूरी जानकारी जुटा लेते हैं। अपनी व्यक्तिगत जानकारी फोन पर किसी से शेयर न करें। अगर साइबर फ्रॉड का शिकार हुए हैं तो तुरंत इसकी शिकायत दर्ज करवाएं।
डिजिटल अरेस्ट की दूसरी बड़ी घटना देश के जाने-माने उद्योगपति वर्धमान ग्रुप के सीएमडी एसपी ओसवाल के साथ हुई। फोन पर एसपी ओसवाल से साइबर ठग ने कहा कि उनके नाम पर सुप्रीम कोर्ट का अरेस्ट वॉरंट है। साथ ही उनकी प्रॉपर्टी सील करने का ऑर्डर मिला है। इसे लेकर ठग ने कुछ फेक डॉक्यूमेंट्स भी उन्हें भेजे। साइबर ठगों ने एसपी ओसवाल को दो दिनों तक डिजिटल अरेस्ट करके रखा और उनसे 7 करोड़ रुपए ठग लिए। साइबर ठगों के निशाने पर अब हिमाचल के सेवानिवृत्त अधिकारी और कर्मचारी हैं। शातिर डिजिटल अरेस्ट का डर दिखाकर सेवानिवृत्त अधिकारियों और कर्मचारियों को झांसे में ले रहे हैं। सोशल मीडिया समेत अन्य माध्यमों से सेवानिवृत्त अधिकारियों और कर्मचारियों की जानकारी जुटाकर उन्हें अपने जाल में शातिर उन्हें फंसाने में लगे हुए हैं। जरा सी लापरवाही शातिरों के झांसे में आए लोगों के बैंक खाते खाली कर रहे हैं। देश में डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं पिछले कुछ समय में बहुत तेजी से बढ़ी हैं। इसका बड़ा कारण लोगों में जागरूकता की कमी है। डिजिटल अरेस्ट में किसी शख्स को ऑनलाइन माध्यम से डराया जाता है कि वह सरकारी एजेंसी के माध्यम से अरेस्ट हो गया है, उसे पेनल्टी या जुर्माना देना होगा। कई ऐसे मामले भी आते हैं जिसमें ठगी करने की कोशिश करने वाले सफल नहीं हो पाते हैं। डिजिटल अरेस्ट के संगठित गिरोह का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है, जिसकी वजह से डिजिटल अरेस्ट के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
इसमें ठगी करने के 4- 5 तरीके होते हैं। जैसे, किसी कूरियर का नाम लेकर कि इसमें गलत सामान आया है। कुरियर में ड्रग्स है, जिसकी वजह से आप फंस जाएंगे। आपके बैंक खाते से इस तरह के ट्रांजैक्शन हुए हैं जो फाइनेंशियल फ्रॉड रिलेटेड हैं। मनी लॉन्ड्रिंग, एनडीपीएस का भय दिखाकर अधिकतर उन लोगों को फंसाया जाता है जो पढ़े-लिखे और कानून के जानकार होते हैं। ऐसे लोगों को डराकर उनसे डिजिटल माध्यम से फिरौती मांगी जाती है। अगर उनके खातों में पैसे नहीं हैं तो उनको लोन दिलवाया जाता है। कई बार उनके पास लोन लेने वाले एप्स नहीं होते हैं तो उन एप्स को भी डाउनलोड कराया जाता है। कई बार दो से तीन दिन तक डिजिटल अरेस्ट रखा जाता है।
गृह मंत्रालय ने हाल ही में एक एडवाइजरी जारी कर लोगों को सतर्क किया है कि वह डिजिटल अरेस्ट से सावधान रहें और उसने कई सुझाव भी सुझाए हैं। इसमें कई तरह के अपराध होते हैं। गलत तरीके से सिम कार्ड लिया जाता है, गलत तरीके से बैंक खाता खोला जाता है। जिन लोगों को ठगी का शिकार बनाया जाता है उनके पैन कार्ड, आधार कार्ड समेत कई अन्य डेटा को गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा किया जाता है। उनके खाते से पैसे ट्रांसफर कराये जाते हैं। कई बार क्रिप्टो या गेमिंग एप के माध्यम से हवाला के जरिए पैसे को बाहर भेजा जाता है। साइबर अपराध समन्वय केंद्र ने जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म साइबरदोस्त पर इस तरह के फ्रॉड से सतर्क रहने की सलाह दी है। सरकार ने कहा कि लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी सरकारी एजेंसी ऑनलाइन तरीके से पूछताछ नहीं करती है। सरकारी एजेंसी सिर्फ फिजिकल तरीके से पूछताछ करती है। अगर किसी के साथ इस तरीके की घटना होती है तो वह दो तरीके से इसे रिपोर्ट कर सकता है।
साइबर फ्रॉड के हेल्पलाइन नंबर या फिर ईमेल के जरिए शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। इसके अलावा, आप स्थानीय पुलिस को भी शिकायत दे सकते हैं। अगर आप पुलिस को एक घंटे के भीतर सूचना देते हैं तो ट्रांसफर किए गए पैसे को वापस पाने की संभावना रहती है। उन्होंने आगे कहा कि पुलिस के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनका जो सिम कार्ड है उसमें कोई और एड्रेस है, बैंक अकाउंट पर कोई और एड्रेस है। ठगी करने वाले लोगों की लोकेशन कुछ और है। भारत में कॉल सेंटर के माध्यम से इस संगठित अपराध को अंजाम दिया जा रहा है।