इजराइल ने लेबनान में ईरान समर्थित कट्टरपंथी संगठन हिज्बुल्लाह के नेतृत्व का एक के बाद एक सफाया कर िदया है। इजराइल के ताजा हमलों में हिज्बुल्लाह के नए चीफ हाशिम सैफुद्दीन और टॉप कमांडर अनीस के मारे जाने की खबर है। हाशिम सैफुद्दीन को नसरुल्लाह के मारे जाने के बाद नया चीफ बनाया गया था। इससे पहले सीरिया पर किए गए हमले में नसरुल्लाह के दामाद के मारे जाने की खबर आई थी। हाशिम के मारे जाने के साथ ही यह अब साफ है कि लेबनान का हर अति सुरक्षित बंकर भी इजराइल की जद में है। इजराइल अपने दुश्मनों को दोजख तक पहुंचा कर ही दम लेता है। पिछले 4 साल में उसने हमास, ईरान, हिज्बुल्लाह के लगभग 40 टॉप लीडर खत्म कर दिए हैं। अपने दुश्मनों को चुन-चुनकर और खोज-खोजकर मारने के लिए उसकी गुप्तचर एजैंसी मोसाद बहुत माहिर है। दुनिया के नक्शे पर इजराइल को ढूंढना मुश्किल होता है, क्योंकि आकार में वह बहुत छोटा देश है लेकिन उसके हथियारों, सुरक्षा तकनीक और जासूसी तंत्र की तारीफ पूरी दुनिया करती है। मजाल है कि कोई दुश्मन उसके निशाने से बच जाए।
इसी वर्ष 31 जुलाई को उसने हमास के सर्वोच्च राजनीतिक नेता इस्माइल हानिए को तेहरान में एयर स्ट्राइक कर मार डाला था। जुलाई में ही इजराइल ने बेरूत में बड़ा हवाई हमला किया था, जिसमें हिज्बुल्लाह के सैन्य प्रमुख फौद शुकर को उसने मार गिराया था। फौद शुकर को इजराइल ने द्रूज इलाके में हुए रॉकेट हमले के जवाब में मारा था। इस हमले में फुटबाल खेल रहे 10 बच्चों की मौत हो गई थी। शुकर को नसरुल्लाह का दाहिना हाथ माना जाता था। हिज्बुल्लाह के सैन्य संगठन में वह नसरुल्लाह के बाद दूसरी पंक्ति का कमांडर था। इजराइल ने 20 सितम्बर को बेरूत में किए गए हवाई हमले में हिजबुल्लाह के टॉप कमांडर इब्राहिम अकील को ढेर कर दिया। अकील की भी हैसियत हिज्बुल्लाह की कमांड में दूसरे नंबर पर थी। वह नसरुल्लाह को सीधे रिपोर्ट करता था। अकील पर 1983 में हुए बम विस्फोटों के मामले में 70 लाख डॉलर (58 करोड़ भारतीय रुपये) का इनाम था। अकील के साथ हमले में एलीट राडवान फोर्स के कमांडर अहमद वहाबी भी मारा गया था।
इजराइल चारों तरफ से दुश्मन देशों से घिरा हुआ है। इजराइल के कई दुश्मन हैं। इस लिस्ट में सबसे पहला नाम ईरान का है। इजराइल और ईरान एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन माने जाते हैं। इजराइल को अमेरिका का सपोर्ट हासिल है, जबकि इजराइल पर हमले करने वाले मिलिशिया ग्रुप को ईरान की तरफ से फंडिंग और हथियार मिलते हैं। ईरान के बाद लेबनान, इराक, यमन, सीरिया, बहरीन के मिलिशिया संगठन इजराइल के दुश्मन हैं। इस तरह इजराइल सात मोर्चों पर जंग लड़ रहा है। यद्यपि इजराइल लेबनान में घुसकर िहज्बुल्लाह के िखलाफ लड़ रहा है, पर इस जमीनी जंग के साइड इफैक्ट भी दिखने लगे हैं। जमीनी लड़ाई में उसे भी अपने सैनिक गंवाने पड़े हैं। हिज्बुल्लाह भले ही इजराइल के हवाई हमलों का मुकाबला न कर पाए लेकिन जमीनी मुकाबला करने में वह पूरी तरह से सक्षम है।
हिजबुल्लाह का दावा है कि ओदाइसा और यारून इलाकों से उसके लड़ाकों ने इजराइली सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। इतना ही नहीं, हिज्बुल्लाह ने इजराइली सैनिकों को काफी नुकसान पहुंचाया है। इजराइली सैनिकों को मारकर और कुछ इलाकों से खदेड़ने के बाद हिज्बुल्लाह आत्मविश्वास से लबालब भर गया है। 2006 के युद्ध में भी इजराइल देख चुका है कि लेबनान में हिज्बुल्लाह के खिलाफ जमीनी जंग कितनी मुश्किल थी। उस जंग में 125 से अधिक इजराइली सैनिकों की मौत हुई थी और हिज्बुल्लाह लड़ाकों ने 20 से अधिक इजराइली टैंकों को तबाह कर दिया था। लेबनान चूंकि हिज्बुल्लाह का गढ़ है, इसलिए उसे एक-एक चीज की जानकारी है। इजराइली सैनिक यहीं मात खा जाते हैं और हिज्बुल्लाह के जाल में फंसते जा रहे हैं।
अमेरिका एक तरफ इजराइल का पूरा समर्थन कर रहा है। हर मोर्चे पर उसकी मदद कर रहा है लेिकन वह भी शांति की बात करता है। फिलहाल इजराइल और ईरान आपस में सीधे युद्ध से बच रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या हिज्बुल्लाह का आतंक खत्म होगा? अगर यह युद्ध लम्बा खिंचा तो इसके घातक परिणाम पूरी दुनिया को झेलने पड़ेंगे। अगर जंग शुरू हुई तो यह ईरान तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि यह अफगानिस्तान, इराक, सऊदी अरब, कतर और यूएई तक फैल जाएगी। यह ऐसे देश हैं जो भारत और अन्य देशों को बड़े पैमाने पर तेल की सप्लाई करते हैं। तेल की कीमतें बढ़ने लगी हैं आैर इसका असर भी पड़ना शुरू हो गया है। मौजूदा हालात भारत के िलए कूटनीतिक चुनौती है क्योंिक भारत के ईरान और इजराइल दोनों से अच्छे संबंध हैं। भारत इजराइल की तरफ झुकेगा तो ईरान के साथ रिश्तों पर असर पड़ेगा आैर यह खाड़ी में रहने वाले भारतीयों को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करेगा। ईरान में भारत के कई प्रोजैक्ट चल रहे हैं जो लटक सकते हैं। खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय लाखों डॉलर भारत भेजते हैं। युद्ध होने की स्थिति में इसका सीधा असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ेगा। भारत का दोनों देशों में संतुलन बनाकर चलना अपने आप में बड़ी चुनौती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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