संपादकीय

डिजिटल युग के अपराधों पर कैसे लगे लगाम?

Shera Rajput

हाल ही में भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं, औपनिवेशिक युग के कानूनों से भारतीय न्याय संहिता और भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता में बदलाव किया गया है। हालांकि, नई संहिता में साइबरस्टॉकिंग और ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी जैसे डिजिटल युग के अपराधों से निपटने के लिए व्यापक प्रावधानों का अभाव है, जिनकी आज के तकनीकी रूप से संचालित समाज में प्रासंगिकता तीव्रता से बढ़ रही है। नई संहिता वर्तमान के डिजिटल युग बढ़ रहे साइबर अपराधों जैसे कि साइबरस्टॉकिंग, फिशिंग और डेटा उल्लंघन के दायरे को पर्याप्त रूप से परिभाषित नहीं करती हैं। भारत में फिशिंग और ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं के बावजूद, नए कानून ऐसे अपराधों पर मुकदमा चलाने में शामिल जटिलताओं को कवर नहीं करते हैं।
डेटा उल्लंघनों पर बढ़ती चिंता के साथ, डेटा संरक्षण और गोपनीयता उल्लंघन के लिए विशिष्ट प्रावधान प्रदान करने में नई आपराधिक संहिता विफल रही है। वर्तमान आपराधिक संहिताओं में डिजिटल साक्ष्यों को एकत्रित करने, उन्हें संरक्षित करने तथा न्यायलय में प्रस्तुत करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है, जो डिजिटल अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक है। डिजिटल उत्पीड़न, विशेष रूप से महिलाओं और नाबालिगों को लक्षित करना, नए कानूनी ढांचे में इस संदर्भ में किए गए प्रावधान अपर्याप्त हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साइबर उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि हुई है, विशेष तौर पर महिलाओं के खिलाफ, परंतु नई संहिता ऐसे अपराधों के लिए कड़े दंड निर्दिष्ट नहीं करती हैं। उभरती प्रौद्योगिकियों से निपटने में कमियां हैं, नए कानून उभरती हुई प्रौद्योगिकियों से संबंधित अपराधों, जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी घोटाले और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दुरुपयोग को ध्यान में नहीं रखते हैं। क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी ने डिजिटल और आभासी वातावरण में अपराधों को संबोधित करने के लिए वर्तमान में एक कानूनी ढांचे की आवश्यकता को दर्शाया है।
हैकिंग, आइडेंटिटी थेफ्ट और साइबरस्टॉकिंग सहित साइबर अपराध के विभिन्न रूपों को लक्षित करते हुए विशिष्ट कानून बनाने की आवश्यकता है, ताकि पीड़ितों को प्रभावी विधिक सहायता मिल सके। सूचना और संचार नेटवर्क उपयोग को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण कोरिया के अधिनियम में साइबर अपराधों के खिलाफ व्यापक प्रावधान शामिल हैं, जिसका भारत अनुकरण कर सकता है। डेटा सुरक्षा कानूनों को बेहतर बनाना डेटा संग्रह, भंडारण और साझाकरण पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों के साथ डेटा गोपनीयता विनियमों को मजबूत करना। इन कमियों को प्रभावी ढंग से दूर करने के लिए व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 में संशोधित किया जा सकता है और आवश्यक परिवर्तन कर लागू किया जा सकता है। न्यायालयों में डिजिटल साक्ष्य एकत्र करने, प्रमाणित करने और प्रस्तुत करने के लिए मानक स्थापित करना, ताकि इसे आपराधिक कार्यवाही में यह स्वीकार्य और विश्वसनीय बनाया जा सके।
साइबरबुलिंग और डिजिटल उत्पीड़न के पीड़ितों के लिए सख्त दंड और सहायता प्रणाली प्रारंभ करना, जिसमें महिलाओं और नाबालिगों की सुरक्षा पर विशेष जोर दिया जाएगा। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम योजना एक अज्ञात रिपोर्टिंग पोर्टल के माध्यम से समर्थन द्वारा डिजिटल उत्पीड़न उपायों को बढ़ाती है। ऐसे कानून बनाना जो ब्लॉकचेन, उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करना, ताकि तकनीकी प्रगति के साथ सामंजस्य बनाए रखा जा सके।
यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन एक लचीला ढांचा प्रदान करता है जो डिजिटल प्रौद्योगिकियों के विकसित परिदृश्य को संबोधित करता है। डिजिटल युग की चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत के कानूनी ढांचे को विकसित किया जाना चाहिए। व्यापक साइबर अपराध कानूनों को शामिल करके, डेटा सुरक्षा उपायों को बढ़ाकर और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए प्रोटोकॉल को अपडेट करके, भारत एक मजबूत और उत्तरदायी कानूनी प्रणाली सुनिश्चित कर सकता है। यह विकास तेजी से डिजिटल हो रहे विश्व में नागरिकों की सुरक्षा और समाज में विश्वास, सुरक्षा और न्याय को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।

– डा. सत्यवान सौरभ