हवाएं भले ही न बंट पाए, मगर पानी को बांटना हमेशा एक अहम मुद्दा रहा है। भारत-पाक के मध्य रिश्ते कभी पूरी तरह सुखद नहीं रहे। कई समझौते हुए, कई टूटे। चार बार घोषित युद्ध हुए और अघोषित युद्धों की तादाद गिनना मुश्किल है। अब फिर तनाव चरम पर है। रिश्ते अब पटरी पर कैसे लौटेंगे और कब लौटेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।
पिछले 72 वर्षों में सिर्फ एक समझौता ऐसा बचा है जिस पर चार युद्धों के बावजूद खरोंचें नहीं आईं। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। इस पर 19 सितम्बर, 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाक राष्ट्रपति अयूब खां ने हस्ताक्षर किए थे। तब तक भारत-पाक के मध्य 1948 के कश्मीर-तनाव के अलावा कोई बड़ा युद्ध भी नहीं लड़ा गया था।
इस समझौते के अनुसार तीन पूर्वी नदियों- 'ब्यास, रावी और सतलुज' का नियंत्रण भारत को तथा तीन पश्चिमी नदियों 'सिंधु, चिनाब और झेलम' का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालांकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे िजनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।
1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान में कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव बना हुआ है। हर प्रकार के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है। इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20 प्रतिशत का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है। जिस समय यह संधि हुई थी उस समय पाकिस्तान के साथ भारत का कोई भी युद्ध नहीं हुआ था। उस समय परिस्थिति बिल्कुल सामान्य थी, पर 1965 से पाकिस्तान लगातार भारत के साथ हिंसा के विकल्प तलाशने लगा जिसमें 1965 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा। फिर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध लड़ा जिसमें उस को अपना एक हिस्सा खोना पड़ा जो बंगलादेश के नाम से जाना जाता है। तब से अब तक पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का इस्तेमाल कर रहा है भारत के विरुद्ध, जिसकी वजह से किसी भी समय यह सिंधु जल समझौता खत्म हो सकता है और जिस प्रकार यह नदियां भारत का हिस्सा हैं तो स्वभाविक रूप से भारत इस समझौते को तोड़ कर पूरे पानी का इस्तेमाल सिंचाई, बिजली बनाने में व जल संचय करने में कर सकता है। वर्तमान परिस्थिति इतनी तनावपूर्ण है कि यह समझौता रद्द हो सकता है क्योंकि जो परिस्थिति 1960 में थी वो अब नहीं रही है
प्रावधान क्या हैं ?
सिंधु नदी सिस्टम में तीन पश्चिमी नदियां- सिंधु, झेलम और चिनाब और तीन पूर्वी नदियां- सतलुज, ब्यास और रावी शामिल हैं। इस संधि के अनुसार रावी, ब्यास और सतलुज (पूर्वी नदियां) पाकिस्तान में प्रवेश करने से पूर्व इन नदियों के पानी को अन्य उपयोग के लिए भारत को आवंटित की गईं। हालांकि, 10 साल की एक संक्रमण अवधि की अनुमति दी गई थी, जिसमें पानी की आपूर्ति के लिए भारत को बाध्य किया गया था ताकि तब तक पाकिस्तान अपनी आवंटित नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु के पानी के उपयोग के लिए नहर प्रणाली विकसित कर सके। इसी तरह पाकिस्तान पश्चिमी नदियों -झेलम, चिनाब और सिंधु के अन्य उपयोग के लिए अधिकृत है। पूर्वी नदियों के पानी के नुक्सान के लिए पाकिस्तान को मुआवजा भी दिया गया। 10 साल की रोक अवधि की समाप्ति के बाद, 31 मार्च 1970 से भारत को अपनी आवंटित तीन नदियों के पानी के पूर्ण उपयोग का पूरा अधिकार मिल गया। इस संधि का परिणाम यह हुआ कि साझा करने के बजाय नदियों का विभाजन हो गया।
दोनों देश संधि से संबंधित मामलों के लिए डेटा का आदान-प्रदान और सहयोग करने के लिए राजी हुए। इस प्रयोजन के लिए संधि में स्थायी सिंधु आयोग का प्रावधान किया गया जिसमें प्रत्येक देश द्वारा एक आयुक्त नियुक्त किया जाएगा।
इतिहास और पृष्ठभूमि
नदियों के सिंधु प्रणाली का पानी मुख्य रूप से तिब्बत, अफगानिस्तान और जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के हिमालय के पहाड़ों शुरू होता है। गुजरात से कराची और कोरी क्रीक के अरब सागर में खाली होने से पहले पंजाब, बलूचिस्तान, काबुल, कंधार, कुनार, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, जम्मू और कश्मीर, सिंध आदि राज्यों से होकर बहता है। जहां एक बार इन नदियों के साथ सिंचित भूमि की केवल एक संकीर्ण पट्टी थी, पिछली सदी के घटनाक्रमों ने नहरों और भंडारण सुविधाओं का एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया है जो 2009 तक अकेले पाकिस्तान में 47 मिलियन एकड़ (190,000 किमी 2) से अधिक पानी प्रदान करते हैं, किसी एक नदी प्रणाली का सबसे बड़ा सिंचित क्षेत्र है।
ब्रिटिश-भारत के विभाजन ने सिंधु बेसिन के पानी को लेकर संघर्ष पैदा कर दिया। नवगठित राज्य इस बात पर अड़े थे कि सिंचाई के अनिवार्य और एकात्मक नेटवर्क को साझा करने और प्रबंधित करने के तरीके पर। इसके अलावा, विभाजन का भूगोल ऐसा था कि सिंधु बेसिन की स्रोत नदियां भारत में थीं। पाकिस्तान ने बेसिन के पाकिस्तानी हिस्से में पानी भरने वाली सहायक नदियों पर भारतीय नियंत्रण की संभावना से अपनी आजीविका को खतरा महसूस किया। जहां भारत निश्चित रूप से बेसिन के लाभदायक विकास के लिए अपनी महत्वाकांक्षाएं रखता था, पाकिस्तान ने अपनी खेती योग्य भूमि के लिए पानी के मुख्य स्रोत पर संघर्ष से तीव्र खतरा महसूस किया। विभाजन के पहले वर्षों के दौरान, 4 मई, 1948 को इंटर-डोमिनियन समझौते के द्वारा सिंधु के पानी का मसला किया गया था। इस समझौते से भारत को सरकार के वार्षिक भुगतान के बदले में बेसिन के पाकिस्तानी
क्षेत्रों में पर्याप्त पानी छोड़ने की आवश्यकता थी।
इस समझौते का तात्पर्य तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करना था और इसके बाद एक अधिक स्थायी समाधान के लिए वार्ता की गई। हालांकि दोनों पक्ष अपने-अपने हितों से समझौता करने को तैयार नहीं थे और वार्ता गतिरोध पर पहुंच गई। भारतीय दृष्टिकोण से ऐसा कुछ भी नहीं था जो पाकिस्तान भारत को नदियों में पानी के प्रवाह को मोड़ने के लिए किसी भी योजना को रोकने के लिए कर सकता था। पाकिस्तान उस समय इस मामले को न्यायिक न्यायालय में ले जाना चाहता था लेकिन भारत ने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि संघर्ष के लिए द्विपक्षीय प्रस्ताव की आवश्यकता है।
संधि पर पुनर्विचार
संधि पर पुनर्विचार के लिए विधानसभा में 2003 में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। दिल्ली में एक सोच ये भी है कि पाकिस्तान इस संधि के प्रस्तावों का इस्तेमाल कश्मीर में गुस्सा भड़काने के लिए कर रहा है। 2016 में उड़ी हमले के बाद भारत के शीर्ष नेतृत्व ने संधि की समीक्षा शुरू कर दी। यदि तनाव यूं ही बना रहा तो इस लगभग 64 बरस पुरानी संधि पर भी आंच तो आ ही सकती है।
– डॉ. चंद्र त्रिखा