संपादकीय

कैसे बचे सेबी की साख

भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों से घिरी माधबी पुरी बुच व्यस्तता का कारण बता संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने पेश नहीं हुईं जिसके चलते पीएसी की बैठक स्थगित कर दी गई।

Aditya Chopra

भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों से घिरी माधबी पुरी बुच व्यस्तता का कारण बता संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने पेश नहीं हुईं जिसके चलते पीएसी की बैठक स्थगित कर दी गई। बैठक में हंगामा भी हुआ। सत्ता पक्ष के सदस्यों ने समिति के अध्यक्ष के.सी. वेणुगोपाल पर सेबी प्रमुख को बुलाने को लेकर सवाल खड़े किए और उन पर अमर्यादित व्यवहार करने के आरोप भी जड़ दिए। संसद की लोक लेखा समिति राजनीति के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण है। यह समिति सरकार की आय और व्यय का लेखा परीक्षण तो करती ही है साथ ही सरकार के व्यय विधेयक पर सतर्कता तंत्र के रूप में कार्य करती है। यह भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की विभिन्न लेखा परीक्षा रिपोर्टों का भी निरीक्षण करती है। लोक लेखा समिति का अध्यक्ष पद अधिकांश तौर पर विपक्षी दलों के पास ही रहा है। स​मिति को यह अधिकार है कि वह किसी भी नियामक संस्थान से किसी ​व्यक्ति को भी बुला सकती है, जिस नियामक तंत्र का गठन सरकार ने ​किया हो।

अब सवाल उठाया जा रहा है कि क्या सेबी चीफ माधबी पुरी बुच को पीएसी के प्रति जवाबदेह होने से बचाने के मंसूबे बनाए जा रहे हैं। मनमोहन सिंह के शासनकाल में जब घोटालों का शोर मचा था तो मनमोहन सिंह ने स्वयं पीएसी के समक्ष पेश होने की पेशकश की थी। हालांकि पीएसी ने राष्ट्रमंडल खेल घोटाले और अन्य मामलों में प्रधानमंत्री कार्यालय की संलिप्तता नहीं पाई थी। वर्ष 1992 के हर्षद मेहता घोटाले के बाद से भारत के प्रतिभूति संबंधी नियम और निगरानी कभी इस किस्म की जांच के दायरे में नहीं आए थे। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), जिसे उस वर्ष एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था, फिलहाल शीर्ष स्तर पर पूर्वाग्रह और हितों के टकराव के आरोपों से जूझ रहा है। सेबी को अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक संकल्प के जरिए एक गैर-वैधानिक निकाय के रूप में गठित किया गया था। अब जबकि भारतीय शेयर बाजार 5.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वाली वित्तीय शक्ति बन गया है, लिहाजा दांव पर काफी कुछ लगा है।

पिछले कुछ सालों में सेबी ने जांच और संतुलन की ठोस प्रणालियां स्थापित की हैं जो लगातार विकसित हुई हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत के प्रतिभूति बाजार और वित्तीय प्रणाली को वैश्विक स्तर पर सबसे विश्वसनीय व्यवस्थाओं में से एक होने की प्रतिष्ठा मिले। हालांकि, न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अहमदाबाद स्थित वैश्विक बुनियादी ढांचे से लेकर एफएमसीजी की प्रमुख कंपनी अडानी समूह के खिलाफ स्टॉक मूल्य में हेराफेरी और कॉरपोरेट गड़बड़ियों के बारे में की जा रही जांच के दौरान सेबी की मुखिया माधबी पुरी बुच के खिलाफ लगाए गए हितों के टकराव के आरोपों ने इस वैधानिक नियामक संस्था को संदेह के घेरे में ला दिया है। हितों का मुख्य टकराव सुश्री बुच और उनके पति धवल बुच द्वारा करों के मामले में स्वर्ग (टैक्स हेवन) माने जाने वाले दो देशों बरमूडा और मॉरीशस में स्थित गुमनाम विदेशी फंडों में किए गए निवेश से संबंधित है, जहां अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी ने भी कथित तौर पर निवेश किया है। हितों का दूसरा टकराव सिंगापुर और भारत में बुच की कंसल्टेंसी फर्मों को लेकर पैदा हुआ है, जिसके बारे में बुच दंपति ने कहा कि उनका इस्तेमाल श्री बुच द्वारा 2019 से “भारतीय उद्योग जगत के प्रमुख ग्राहकों " को सलाह देने के लिए किया गया है। सेबी चीफ पर लगे आरोप अपने आप में अभूतपूर्व मामला है।

इससे प्रतिभूति ​नियामक संस्था की साख खतरे में पड़ चुकी है। चाहिए तो यह था कि सेबी चीफ अपने पद से इस्तीफा देकर ​निष्पक्ष जांच का मार्ग प्रशस्त करतीं। भारत का पूंजी बाजार दुनिया के शीर्ष बाजारों में से एक है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के ​लिए संसाधन जुटाने का एक बड़ा जरिया है। कई लाख करोड़ के बाजार पूंजीकरण और बाजार में लगे अनगिनत आम लोगों के पैसे को देखते हुए यह जरूरी है ​कि सेबी की साख बनी रहे और सभी हितधारकों पर लगाए गए नियमों और अनुपालन मामलों को करती दिखे। जब भी कोई गम्भीर मामला उठता है तब संयुक्त संसदीय समिति हो या लोक लेखा समिति उसे सियासी सर्कस में बदलने की को​शिश की जाती है, जिससे गम्भीर मामलों में भी तार्किक ​निष्कर्ष नहीं निकलते। यह तो स्पष्ट है कि सेबी चीफ ने नियमों का पालन नहीं किया। वह स्वयं कॉर्पोरेट घरानों की सलाहकार बनी रहीं। यह भी साफ है कि माधबी पुरी बुच के बचाव में कई प्रभावशाली लोग मैदान में हैं। अलग-अलग पक्षों की तरफ से तमाम सफाइयां आ चुकी हैं। आरोपों के घेरे में आए लोगों के बयानों की बाढ़ आई हुई है, जो जवाब कम दे रहे हैं और सवाल ज्यादा उठा रहे हैं लेकिन कुछ प्रमुख मुद्दों पर जांच की जरूरत है। सेबी की ​विश्वसनीयता दाव पर है। सरकार को स्वयं सेबी की साख बचाने के ​लिए आगे आना चाहिए। देखना होगा कि माधबी पुरी बुच कब तक पेश होने से या पीएसी के सवालों के जवाब देने से बचती हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com