संपादकीय

अब कैसे बचेंगे सिद्धारमैया ?

Shera Rajput

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पद पर बने रहने की स्थिति कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा पिछले मंगलवार को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए रास्ता साफ करने के बाद अस्थिर हो गई है। सिद्धारमैया ने मैसूर भूमि घोटाले में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने वाले कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत के आदेश को चुनौती दी थी। सीएम ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। राज्यपाल द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के खिलाफ उच्च न्यायालय में उनकी चुनौती ने उन्हें समय दे दिया था। लेकिन अब जबकि उच्च न्यायालय ने भी उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का रास्ता साफ कर दिया है, तो यह उचित ही है कि उन्हें तुरंत पद छोड़ देना चाहिए और जब तक उन्हें सम्मानपूर्वक बरी नहीं कर दिया जाता, तब तक मुख्यमंत्री के पद पर वापस आने का उन्हें कोई प्रयास नहीं करना चाहिए।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एम. नागप्रसन्ना ने अपने 197 पन्नों के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि राज्यपाल द्वारा उनके अभियोजन की अनुमति देने में कोई गलती नहीं पाई जा सकती। न्यायाधीश ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि राज्यपाल ने उनके अभियोजन की अनुमति देने की याचिका पर विचार करते समय स्वतंत्र रूप से अपने विचार नहीं रखे। दरअसल, कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा अभियोजन के खिलाफ चुनौती को खारिज करने के एक दिन बाद ही निचली अदालत से एक और झटका लगा। इसने कर्नाटक लोकायुक्त को निर्देश दिया कि वह भूमि घोटाले के आरोपों की जांच करे और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करे।
आरोप मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा शहर के बाहरी इलाके में एक गांव में सिद्धारमैया की पत्नी के नाम पर 3.16 एकड़ जमीन के बदले में 14 बेहतरीन भूखंडों के आवंटन से संबंधित है। सिद्धारमैया का दावा है कि उक्त जमीन उनकी पत्नी को उनके भाई ने उपहार में दी थी, हालांकि कुछ ग्रामीणों ने शिकायत की है कि उन्हें धोखा देकर यह जमीन हड़प ली गई। हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया है कि सीएम के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग करने वाली याचिका में बताए गए तथ्यों की निस्संदेह जांच की जरूरत है।
असल में सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने से मुडा घोटाले को केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपने की मांग को और बल मिलेगा। हालांकि सिद्धारमैया पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के एक दिन बाद ही कर्नाटक सरकार ने बिना पूर्व अनुमति के मामलों की जांच करने की अनुमति वापस ले ली। आलोचकों ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ मामले की जांच किए जाने की स्थिति में मुख्यमंत्री को बचाया जा सके।
दरअसल भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को उस वक्त इस्तीफा देना पड़ा था जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति देने के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी। क्योंकि उस वक्त विपक्षी कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने वाले सिद्धारमैया ने येदियुरप्पा को हटाने की जोरदार मांग की थी। लेकिन जहां तक ​​इस मामले में कांग्रेस आलाकमान की प्रतिक्रिया का सवाल है तो वर्तमान स्थिति में यह संभावना नहीं नजर आ रही है कि सिद्धारमैया उनकी सलाह पर ध्यान देते नजर नहीं आ रहे हैं कि अदालत से बरी होने तक वह पद छोड़ने के लिए कहे। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अपने बेटे प्रियांक राज्य के आईटी/बीटी और ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री हैं जिन पर एक भूमि घोटाले का आरोप भी है। दरअसल प्रियांक पर परिवार के स्वामित्व वाले ट्रस्ट के नाम पर बेंगलुरु के पास नागरिक सुविधाओं के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित कराने का आरोप है।
वहीं पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की भारी जीत के बाद शिव कुमार मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे थे। पर, भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण अब वह सिद्धरमैया के पद के लिए दावा करने की स्थिति में नहीं हैं। संक्षेप में कहें तो सिद्धारमैया से इसे उजागर करने की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन, जब तक निश्चित रूप से अदालतें पीड़ित नागरिक चाहे वह एक मुख्यमंत्री या कोई अन्य मंत्री हो उसके बचाव में नहीं आती हैं। हालांकि वह कानूनी सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए बहादुरी से लड़ रहे हैं।
उधर दिल्ली के पूर्व सीएम आप नेता अरविन्द केजरीवाल ने खुद को सच्चे स्वभाव का बताते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की बात कही है। जमानत पर लगाई गई कड़ी शर्तों के कारण उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया। जबकि गिरफ्तारी के समय झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था हालांकि बाद में वह सीएम बन गए।

– वीरेंद्र कपूर