संपादकीय

‘9 सितम्बर 1981’ का दिन नहीं भूलता

Shera Rajput

'शहीदों की चिताओं पे
लगेंगे हर वर्ष मेले
वतन पे मिटने वालों का
यही बाकी निशां होगा'

हर वर्ष 9 सितंबर का दिन आता है और हर साल हम इस दिन को लाला जी के बलिदान दिवस के रूप में मनाते हैं, मेरे दिल में तो वह हर वक्त रहते हैं। आज 9 सितंबर का दिन है और हम याद कर रहे हैं आदरणीय लाला जगत नारायण जी को जिनकी आज 43वीं पुण्यतिथि है, इसी दिन लाला जी को शहीद किया गया था। लाला जी जिनका जन्म 31 मई, 1899 को वजीराबाद (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने बीए की डिग्री डीएवी कालेज लाहौर से की और साथ ही उन्होंने लाॅ काॅलेज में एडमिशन ले ​िलया। देशभक्ति का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था लेकिन महात्मा गांधी जी की कॉल पर पढ़ाई छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और कुछ समय के बाद वह लाहौर कांग्रेस के प्रधान बने लेकिन बंटवारे के बाद वह जालंधर आ गए और वहीं बस गये।
जालंधर आकर 1948 में उन्होंने समाचार पत्र की आधारशिला रखी और उर्दू की प​ित्रका निकाली जिसका नाम हिंद समाचार रखा, और वह चाहते थे कि आसामाजिक तत्वों से सरकार सख्ती से निपटे। आज हिंद समाचार ग्रुप ''पंजाब केसरी'' कई जगह से निकल रहा है और देश में करोड़ों इसके पाठक हैं। आज की स्थिति में आने के लिए बहुत मेहनत एवं कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है इसके लिए लाला जी का संकल्प कड़ी मेहनत एवं कई हॉकर्स एवं पंजाब केसरी के कई कर्मचारियों की जिंद​िगयों का बलिदान देना पड़ा लेकिन श्री रमेश चंद्र जी एवं अ​िश्वनी मिन्ना जी के दृढ़ संकल्प और लाला जी के बताए गये रास्ते को नहीं छोड़ा और अब उनके बाद मिन्ना जी की धर्मपत्नी श्रीमती किरण चोपड़ा शर्मा एवं पुत्र आदित्य चोपड़ा लाला जी के दिखाये गये मार्ग पर सफलतापूर्वक चल रहे हैं। लाला जी का सपना था, आजाद भारत में पत्रकारिता भी आजाद होनी चाहिए और पंजाब केसरी के सभी डायरेक्टरों ने इस सिद्धांत के विरुद्ध समझौता नहीं किया और इसके लिए उन्हें सरकारों का विरोध भी सहना पड़ा।


1974 में तो सरकार ने प्रेस की बिजली भी काट दी लेकिन लाला जी एवं हिंद समाचार परिवार ने हार नहीं मानी और ट्रैक्टर से 10 दिन प्रेस को चला कर पाठकों के लिए समाचार पत्र उपलब्ध करवाया। जम्मू-कश्मीर की सरकार ने पत्रिका पर बैन लगा दिया। लाला जी के अथक प्रयास से सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार जम्मू-कश्मीर सरकार को आदेश वापस लेना पड़ा। लालाजी ने सैफुद्दीन किचलू,डॉक्टर गोपीचंद भार्गव, लाला लाजपत राय, आगा सफदर जैसे महान सत्यवादी और राष्ट्रीय प्रेमियों के साथ मिलकर देश को ऊपर ले जाने में पूरा योगदान दिया।
लालाजी ने समाज सेवा के लिए क्या कुछ नहीं किया। तब भी दहेज प्रथा, नशाखोरी को दूर करने के लिए अथक प्रयत्न किए। इस काम के लिए कोई भी उनको कहीं भी बुलाता अपने खर्चे पर वहां पहुंचते और लोगों को इससे दूर रहने की प्रेरणा देते। मैं भी उनके साथ 1970-71 में जुड़ा, लाला जी जो लोगों को उपदेश देते थे खुद भी उसका अनुसरण करते थे। मेरे को याद है लाला जी के सुपुत्र रमेश जी की शादी पर उन्होंने अपने संबंधियों को बिना दहेज के दुल्हन ले जाने को कहा परन्तु लड़की के माता-पिता थे उन्होंने एक अटैची कार की ​िडग्गी में रख दी। लाला लाला जी को जब पता चला उनको उतनी देर चैन नहीं आया जितनी देर वह अटैची वापिस नहीं भेजी, कितने महान ख्यालात थे उनके और आगे भी चोपड़ा परिवार ने इस प्रथा को जारी रखा है। वह (लाला जी) कभी किसी भी शक्ति के डर से अपने निर्णय नहीं बदलते (और वही काम अपने जीवन काल में मिन्ना जी और आज चिरंजीवी आदित्य एवं किरण भाभी कर रहे हैं) और लाला जी हमेशा दबे वर्ग को ऊपर उठाने में अग्रसर रहते थे।
बड़ी धमकियां उनको मिलती रही लेकिन उन पर कोई खौफ नहीं आया। उन्होंने आतंकवाद एवं खालिस्तान के विरोध में कई लेख लिखे और कई सभाओं में निर्भीकता से विचार भी रखे यही कारण था कि आतंकवादियों को 9 सितंबर 1981 को मौका मिला जब लालाजी पटियाला से एक सामाजिक सभा को संबोधित कर जालंधर के लिए चले तो पटियाला से ही एक मोटरसाइकिल पर तीन आतंकियों ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। पहले सरहिन्द के पास उनकी कोशिश नाकामयाब हो गई लेकिन लुधियाना में लाडोवाल पुल के पास जाम लगा होने की वजह से जब उनके ड्राइवर श्री सोमनाथ ने दांए तरफ गाड़ी मोड़ी तो आगे रास्ता ना मिलने की वजह से आतंकवादियों ने कार के पास आकर गोलियों की बौछार कर दी, सोमनाथ ड्राइवर भी गोलियां लगने से घायल हो गए और सीट पर ही गिर गए लेकिन लाला जी को वह उतनी देर तक छलनी करते रहे जितनी देर तक वह स्वांस लेते रहे। उनके पार्थिव शरीर को सिविल अस्पताल लाया गया और इस बात की खबर फैलते ही लोग अस्पताल में इकट्ठा होना शुरू हो गए। तब के डीसी रवि साहनी भी वहां पहुंच गए, होम मिनिस्टर श्री ज्ञानी जैल सिंह ने डीसी रवि साहनी को सीएमसी में रातों-रात पोस्टमार्टम करवाने के ऑर्डर दिए, उस वक्त श्री रमेश चंद्र जी एवं अश्विनी जी और मैं वहां मौजूद था।
लाला जी को जितनी गोलियां लगी उनमें से 3 गोलियां दिल के आर-पार हुई और वही उनकी मौत का कारण बनी। प्रशासन ने तुरंत पार्थिव शरीर को लुधियाना से जालंधर भेजने की व्यवस्था करवा दी ताकि शहर में ज्यादा हो-हल्ला ना मचे और पार्थिव शरीर को जालंधर में पंजाब केसरी समाचार पत्र ग्राउंड में रखा गया जहां लाला जी के अंतिम दर्शन करने के लिए पंजाब और देशभर से भीड़ उमड़ पड़ी। दंगे-फसाद को रोकने के लिए श्री रमेश चंद्र जी एवं अश्विनी जी ने कई दफा लोगों को शांति बनाए रखने की अपील की। देशभर से आए लोगों ने नतमस्तक होकर उनको अंतिम विदाई दी थी।
यह उन्हीं के अथक प्रयत्न और कड़ी मेहनत का फल है कि आज 'पंजाब केसरी' सारे उत्तरी भारत एवं अन्य कई राज्यों में बड़ी शान के साथ अपने समाचारपत्रों का प्रकाशन कर रहा है एवं करोड़ों पाठक रोज सुबह इन समाचारपत्रों को पढ़ते हैं और देश-विदेश की ताजा जानकारी प्राप्त करते हैं। आज भी पंजाब केसरी (दिल्ली) के डायरेक्टर, उनके बच्चे आदित्य, आकाश और अर्जुन चोपड़ा उनके (लाला जी के) पदचिन्हों पर चलते हुए बिना किसी डर, बिना किसी भेदभाव के साथ आजाद पत्रकारिता कर समाज में बदलाव लाने का काम कर रहे हैं। लाला जी के बताए सत्य के असूलों से वह पीछे नहीं हटे। लाला जी की तीसरी पीढ़ी में भी मुझे लाला जी की झलक दिखाई देती है। चिरंजीवी आदित्य चोपड़ा भी निर्भीकता से लेख लिख रहे हैं, हमारी शुभकामनाएं
उनके साथ हैं।
शायद यह पंक्तियां किसी शायर ने लाला जी के लिए ही लिखी हैं ः-

"जिनके आने से बदल जाए जमाने की रबिश
ऐसे इंसान आते हैं तो कम आते हैं, कौन कहता है कि बदल देता है जमाना, मर्द वह है जो जमाने को बदल देते हैं।"

– जगतजीत पिंकी