संपादकीय

भारत-भूटान संबंध का महत्व

Aditya Chopra

लोकसभा चुनावों का शंखनाद होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चुनावी दौरे छोड़ कर भूटान यात्रा करने के कई मायने हैं। ऐसे कम ही मौके आए हैं जब प्रधानमंत्रियों ने लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद कोई विदेश यात्रा की हो। वैसे तो भारत और भूटान के संबंध सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों के एक लम्बे इतिहास पर आधारित है। भूटान का आकार भले ही छोटा है लेकिन दक्षिण एशिया में रणनीतिक रूप से वह महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भूटान का पश्चिम क्षेत्र सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर के निकट है जो भारत की मुख्य भूमि को इसके उत्तर-पूर्वी राज्य से जोड़ता है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर के निकट ही डोकलाम त्रिबिंदु है। जहां चीन और भारत के सैनिकों की झड़प हुई थी। भूटान के राजा जिग्मे वांगचुक ने प्रधानमंत्री मोदी को वहां के सर्वोच्च सम्मान आर्डर ऑफ डूक ग्यालवो से सम्मानित किया और उनको बड़ा भाई कहकर गर्मजोशी से स्वागत किया।
भारत आैर भूटान ने ऊर्जा, व्यापार, डिजिटल सम्पर्क, अंतरिक्ष और कृषि के क्षेत्र में कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर ​िकए और दोनों देशों के बीच रेल सम्पर्क संबंधी समझौते को अंतिम रूप ​िदया गया। दो प्रस्तावित रेल सम्पर्क समझौते के तहत कोकराझार से लेकर गैलेफूू तक और बनारझार से लेकर समत्से तक रेल सम्पर्क स्थापित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां मातृ एवं शिशु अस्पताल का उद्घाटन किया। इस अस्पताल के ​िलए पूरी फंडिंग भारत द्वारा की गई है। प्रधानमंत्री ने भूटान के प्रधानमंत्री दाशो शेरिंग तोपगे के साथ आपसी हितों के द्विपक्षीय मुद्दों और क्षेत्रीय मामलों पर भी चर्चा की है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा इन खबरों के बाद हुई है कि चीन और भूटान अपने सीमा विवाद को सुलझाने में लगे हुए हैं। इससे भारत के सुरक्षा ​हितों पर प्रभाव पड़ सकता है।
भूटान और चीन के बीच विवाद के तीन क्षेत्र हैं। पूर्व में सकतेंग, उत्तर में बेयुल खेनपाजोंग और मेनचुमा घाटी और पश्चिम में डोकलाम, चरिथांग सिंचुलुंगपा, ड्रामाना और शाखाटो के कुछ हिस्से शामिल हैं। चीन उत्तर में अपने तथाकथित दावों में से 495 वर्ग किमी क्षेत्र छोड़ने की पेशकश कर रहा है लेकिन तब जब भूटान पश्चिम में 269 वर्ग किमी का क्षेत्र छोड़ देगा। चीन लंबे समय से उत्तर और पश्चिम के कुछ क्षेत्रों पर दावा करता रहा है लेकिन पूर्वी भूटान में सकतेंग पर चीन का दावा हाल ही में आया है। द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 तक सीमा वार्ता के 24 दौर की बातचीत में कभी भी चीन ने इसका मुद्दा नहीं उठाया था। जून 2020 में पहली बार सकतेंग को विवादित क्षेत्र घोषित किया गया।
चीन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानदंडों और संधियों की लगातार उपेक्षा कर रहा है। चीन ग्रे जोन रणनीति के जरिये सैन्य टकराव से बचते हुए यथा स्थि​ित को बदल रहा है। चीन भारत के अरुणाचल पर भी दावा जताता रहा है। हाल ही में उसने प्रधानमंत्री मोदी की अरुणाचल यात्रा पर भी आपत्ति जताई थी। चीन अपनी विदेश नीति में विशेष रूप से एशिया प्रशांत क्षेत्र में तेजी से आक्रामक होता जा रहा है और भारत सहित कई देशों के साथ उसकी तनाव की स्थिति बनी हुई है। यदि चीन अपने रणनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के ​िलए भूटान में अपने प्रभाव का उपयोग करता है तो यह सम्भावित रूप से भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक चुनौती होगा।
वर्ष 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम गतिरोध के दौरान भूटान ने चीनी घुसपैठ का मुकाबला करने के लिए भारतीय सैनिकों को अपने क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारत ने भूटान को रक्षा, बुनियादी ढांचा और संचार जैसे क्षेत्रों में लगातार सहायता प्रदान की है जिससे भूटान की संप्रभुत्ता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने में मदद मिली है। भारत ने भूटान में सड़कों और पुलों के निर्माण और रखरखाव में काफी मदद की है। भूटान का जल ​िवद्युत क्षेत्र उसकी अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तम्भ है और भारत इसके ​िवकास में प्रमुख भागीदार है। भारत की आजादी के बाद से ही भारत आैर भूटान हर समय में साथ खड़े रहने वाले दोस्त की तरह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे हिमालयी देश के प्रवेश का समर्थन भी भारत द्वारा ही किया गया था।
बाद में इस देश को संयुक्त राष्ट्र से विशेष सहायता मिलनी शुरू हुई है। धीरे-धीरे भूटान ने दुनिया में अपनी जगह बनाई है आैर अपनी खुली द्वार नीति विकसित करके 52 देशों और यूरोपीय संघ के साथ राजनयिक संबंध स्था​िपत कर लिए हैं। 1971 के बाद भूटान संयुक्त राष्ट्र में सदस्य भी है आैर वह विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का सदस्य भी बन चुका है। भारत-भूटान के बीच व्यापार भी चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूटान यात्रा चीन को एक तरह का साफ संदेश है कि भारत भूटान के साथ मजबूती के साथ खड़ा है। भारत का भूटान से रेल सम्पर्क चीन को करारा जवाब है।