संपादकीय

दक्षिण अफ्रीका में अहम चुनाव

Aakash Chopra

भारत और दक्षिण अफ्रीका संबंधों का मूल आधार स्नेह एवं सहानुभूति ही है। नस्लवाद के कारण वहां के पीडि़त, शोषित वर्ग के साथ भारत हमेशा खड़ा रहा है। दक्षिण अफ्रीका से भारतीयों के भावनात्मक संबंध राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के माध्यम से ही स्थापित हुए थे। वहां काले-गोरे यानि नस्लवाद के चलते स्वयं गांधी जी को भी अपमानित होना पड़ा था। तब गांधी जी की अस्मिता जागी और उन्होंने नेशनल इंडियन कांग्रेस की स्थापना कर सत्यग्रह की नींव डाली और सत्यग्रह में पहली जीत भी उन्होंने वहीं हासिल की। युगों के नस्ल और रंगभेद के कारण यातनाएं भोग रहे मूल अफ्रीकी निवासियों की भी अधिकार पाने की चेतना जागी और उन्होंने भारत की तरह ही अहिंसक आंदोलन एवं सत्यग्रह का रास्ता अपनाया। महात्मा गांधी से ही प्रेरणा पाकर द​िक्षण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला ने संघर्ष किया और 27 वर्ष जेल काटकर उन्होंने नस्लभेद समाप्त करने में अंग्रेजों पर सफल पाई। आज दक्षिण अफ्रीका में आम चुनाव हुए। इन चुनावों को बहुत अहम माना जा रहा है और भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें चुनाव परिणामों पर लगी हुई हैं क्योंकि ​30 वर्षों में पहली बार ऐसा लग रहा है कि नेल्सन मंडेला की बनाई पार्टी अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) बहुमत हासिल करने में चूक सकती है।
दक्षिण अफ्रीका की संसद में 400 सीटें हैं और सरकार बनाने के ​िलए 201 सीटों की जरूरत होगी। अगर एएनसी को बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति ​िसरिल रामफोसा को दूसरे दलों का समर्थन हासिल करना होगा। दक्षिण अफ्रीका में 1994 से पहले अश्वेत लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं था। रंगभेद खत्म होने के बाद अब तक हुए 6 चुनावों में एएनसी को ही सफलता मिलती रही है। नेल्सन मंडेला के राष्ट्रपति पद पर रहते उनकी पार्टी की लोकप्रियता काफी थी। द​िक्षण अफ्रीका की मुख्य विपक्षी पार्टी डीए एएनसी को सत्ता हासिल करने से रोकने के लिए कमर कसे हुए है। इन चुनावों में पूर्व राष्ट्रपति और एएनसी के दिग्गज नेता रहे जैकब जुमा भी मैदान में हैं। एएनसी से निष्कासित होने के बाद जैकब जुमा ने अपनी एमके नामक पार्टी बनाई थी। जैकब जुमा पर भारत के गुप्ता ब्रदर्स के साथ मिलकर भ्रष्टाचार करने के गंभीर आरोप लगे थे। गुप्ता ब्रदर्स परिवार में एक शाही समारोह के लिए दक्षिण अफ्रीका में कायदे-कानून तोड़कर सुविधाएं उपलब्ध कराना काफी चर्चित रहा था। इस बार के चुनावों में कई मुद्दे काफी महत्वपूर्ण रहे।
दक्षिण अफ्रीका को अफ्रीका महाद्वीप का सबसे उन्नत देश माना जाता है। इसके बावजूद देश में गरीबी और बेरोजगारी चरम पर पहुंच चुकी है। विश्व बैंक के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में बेरोजगारी दर 32 पहुंच चुकी है। इसे ऐसे समझे कि 100 में से 32 लोगों के पास नौकरी नहीं है। 2024 के पहले क्वार्टर में ये 33 को पार कर गई थी। देश में युवा बेरोजगारी दर भी काफी अधिक है। 15-35 आयु वर्ग के 45.50 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। ये दुनिया में सबसे अधिक है। इसके साथ ही आधे से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। दक्षिण अफ्रीका में दुनिया में सबसे अधिक असमानता दर है। यानी कि यहां पर अमीरी- गरीबी की खाई काफी गहरी है।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में करीब 81 फीसदी अश्वेत रहते हैं जिनमें से अधिकांश बेहद गरीबी में जी रहे हैं। वहीं, 19 फीसदी गोरों के पास अधिक संसाधन हैं। उनके पास नौकरी है और उन्हें अश्वेतों की तुलना में अधिक वेतन मिल रहा है। श्वेत वर्चस्व से आजाद होने के 30 साल के बाद अब अश्वेतों को लग रहा है कि अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) ने उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए बेहतर काम नहीं किया है। इसके अलावा देश में लगातार बढ़ती अपराध की घटनाएं और नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों से जनता परेशान है। साथ ही देश में लगतार बिजली कटौती में बढ़ाैतरी ने देशवासियों का गुस्सा और बढ़ा दिया है। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में जहां 141 घंटे बिजली कटी थी। साल 2023 में ये बढ़कर 6947 घंटे हो गई। एएनसी पार्टी आज भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और नाकामी का उदाहरण बन चुकी है। भारतीय मूल के 3 उम्मीदवार एएनसी की टिकट पर और कुछ भारतवंशी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतवंशी अपनी समस्याओं का समाधान चाहते हैं। अंतिम नतीजे 2 जून को ही स्पष्ट होंगे। सरकार किसी की बने भारत-अफ्रीका के संबंधों पर कोई आंच नहीं आने वाली। देखना होगा कि जनादेश क्या कहता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com