संपादकीय

इंडिया गठबन्धन और कांग्रेस

Aditya Chopra

कांग्रेस पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनावों में केवल 255 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला करके साफ कर दिया है कि वह अपने समर्थक 'इंडिया गठबन्धन' के सदस्य दलों के लिए दिल बड़ा करके समुचित संख्या में सीट छोड़ने के लिए तैयार है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पार्टी के अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे चाहते हैं कि चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को कड़ी चुनौती देने के लिए उसके प्रत्याशी के मुकाबले समूचे विपक्ष का भी एक ही प्रत्याशी हो। इंडिया गठबन्धन में कुल 28 दल हैं जिनमें कांग्रेस को छोड़ कर शेष सभी एेसे मजबूत क्षेत्रीय दल हैं जिनकी अपने राज्यों में सरकारें भी हैं। चुनावों को एक के खिलाफ एक बनाने की गरज से ही कल श्री खड़गे ने अपनी पार्टी की राष्ट्रीय गठबन्धन समिति के पांचों सदस्यों से कहा कि वे अब इंडिया गठबन्धन के सभी दलों से सीट समझौते के लिए गंभीर वार्ता करें और तय करें कि यह व्यूह रचना इस प्रकार हो कि अधिसंख्य सीटों पर भाजपा के साथ सीधा मुकाबला हो।
इंडिया गठबन्धन को सीट समझौते के मामले में सबसे ज्यादा दिक्कत दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, केरल व प. बंगाल में आएगी जहां क्षेत्रीय दल अधिक से अधिक लोकसभा सीटों पर लड़ना चाहते हैं और कांग्रेस को कम से कम सीटें देना चाहते हैं। इस बारे में सीटों का समझौता तभी हो सकता है जबकि क्षेत्रीय दल अपने दलगत हित छोड़ कर राष्ट्रीय फलक पर सोचें और यह ध्यान रखें कि ये चुनाव भाजपा के उस राष्ट्रीय विमर्श के विरुद्ध होंगे जो उनके द्वारा खड़ा किया जाएगा। जाहिर तौर पर यह ​विमर्श कांग्रेस के विचार मंथन से ही निकलेगा क्योंकि वह इंडिया गठबन्धन की एक मात्र राष्ट्रीय पार्टी है और उसे दस वर्ष तक गठबन्धन की सरकार 2004 से 2014 तक चलाने का लम्बा अनुभव भी है और इसके साथ ही उसने अपने अकेले दम पर 55 वर्ष तक केन्द्र में सरकार भी चलाई है। हालांकि पिछले 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 421 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था मगर सफलता उसे सिर्फ 52 सीटों पर ही मिली थी। 2019 के चुनावों में पुलवामा कांड होने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा केन्द्र में आ गया था और सर्वत्र भाजपा की हवा बहने लगी थी परन्तु इसके बावजूद कर्नाटक को छोड़ कर शेष सभी चार दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी। किन्तु आन्ध्र प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. वाईएसआर रेड्डी के सुपुत्र जगन रेड्डी ने अपनी अलग वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बनाकर इस प्रदेश की अधिसंख्य लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस को निराशा हाथ लगी थी। परन्तु इस बार जगन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला ने अपनी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी का विलय कांग्रेस के साथ कर दिया है और कांग्रेस उन्हें आन्ध्र प्रदेश में बड़ी जिम्मेदारी देने जा रही है जिसकी वजह से आन्ध्र प्रदेश के चुनावी नतीजे बदल सकते हैं।
राज्य की विपक्षी पार्टी तेलुगू देशम के नेता चन्द्रबाबू नायडू का प्रभाव अब प्रायः क्षीण माना जा रहा है। केरल में कांग्रेस व वामपंथी मोर्चे के बीच ही टक्कर होगी हालांकि दोनों पार्टियां इंडिया गठबन्धन में हैं। प. बंगाल में ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस भी वामपंथी दलों के साथ सीट साझा नहीं करना चाहती है और राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को केवल दो सीटें ही देना चाहती है। इसे देखते हुए इस राज्य में भी इंडिया गठबन्धन दलों के बीच दोस्ताना लड़ाई हो सकती है। दक्षिण के सभी पांच राज्यों की लोकसभा में कुल सीटें 120 हैं जिनमें से कर्नाटक की 28 सीटों पर ही भाजपा व कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है। कर्नाटक में आजकल कांग्रेस की ही सरकार है। किन्तु उत्तर भारत कांग्रेस व गठबन्धन के दलों के लिए टेढी खीर माना जा रहा है। इनमें भी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश जहां से 80 सांसद चुन कर जाते हैं।
पिछली बार कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था मगर उसे एक मात्र सीट रायबरेली की मिली थी जहां से श्रीमती सोनिया गांधी जीत कर आई थीं। इस बार कांग्रेस ने इस राज्य में अपनी चादर समेटने का फैसला किया है और वह 20 से लेकर 22 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है। राज्य मंे श्री अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे मजबूत विपक्षी दल है जिसे पिछले चुनावों में मात्र पांच सीटें ही मिली थीं। पिछले चुनावों में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबन्धन किया जिसे दस सीटें मिली थीं। मगर 2022 के विधानसभा चुनावों में मायावती की बहुजन समाज पार्टी को 405 सीटों में से केवल एक सीट ही मिली। यह पार्टी राज्य में अब मृत प्रायः मानी जा रही है और श्री खड़गे के दलित होने की वजह से इसका वोट बैंक कांग्रेस की तरफ झुकता हुआ माना जा रहा है। राज्य में चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयन्त चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल पार्टी का खासा प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है। उनकी पार्टी भी इंडिया गठबन्धन की सदस्य है। इस पार्टी के हिस्से में भी कम से कम पांच सीटें मानी जा रही हैं। मगर राज्य में सीट बंटवारा अखिलेश यादव के रुख पर ही निर्भर करेगा क्योंकि 2022 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी उभर कर आई थी। पंजाब की 13 सीटों पर आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के बीच भी तलवारें कस सकती हैं और दोस्ताना लड़ाई हो सकती है। दिल्ली में भी एेसे हालात देखने को मिल सकते हैं। परन्तु इतना निश्चित हो गया है कि कांग्रेस अब केवल 255 सीटों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखेगी। मध्य प्रदेश व राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसका सीधा मुकाबला भाजपा से होगा मगर हाल ही में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार को देखते हुए उसे अन्य सहयोगी दलों के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है हालांकि कांग्रेस का वोट बैंक कम नहीं है मगर भाजपा के वोट बैंक में वृद्धि हुई है। बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु व पूर्वोत्तर भारत में कांग्रेस का सीट समझौता आसानी से होता नजर आ रहा है।