संपादकीय

India alliance strategy: इंडिया गठबन्धन की रणनीति

Rahul Kumar Rawat

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि लोकसभा चुनावों में विपक्षी इंडिया गठबन्धन व भाजपा के बीच कांटे का संघर्ष रहा है और जनता ने किसी भी विशिष्ट राजनैतिक दल को बहुमत नहीं दिया है बल्कि अन्तिम समय में भाजपा ने जिस तरह अपने एनडीए का विस्तार किया था उसे बहुमत जरूर दिया है। एनडीए की ओर से सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई है मगर अभी मूलभूत कार्य भाजपा संसदीय दल की बैठक में नेता पद का चुनाव होना बाकी है। बेशक इसे औपचारिकता कहा जा सकता है परन्तु यह संवैधानिक अनिवार्यता है। जाहिर है कि एनडीए के घटक दलों ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त कर दिया है परन्तु उन्हें अभी भाजपा संसदीय दल का नेता चुना जाना है। जहां तक इंडिया गठबन्धन का सवाल है चुनावों में 543 सदस्यीय लोकसभा में उसके 232 सदस्य चुन कर आये हैं जो बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से 40 कम है। दूसरी तरफ भाजपा के 240 सदस्य चुन कर आये हैं जो बहुमत से 32 कम हैं। अतः सरकार बनाने के लिए भाजपा को अन्य क्षेत्रीय व छोटे सहयोगी दलों की जरूरत है। जिन दलों के साथ भाजपा का गठबन्धन था उनमें आन्ध्र प्रदेश की तेलगू देशम पार्टी व बिहार की जनता दल (यू) प्रमुख हैं जिनके क्रमशः 16 व 12 सांसद चुन कर आये हैं। इनके अलावा ​शिन्दे गुट की शिवसेना के सात व चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी के पांच सांसद हैं। ये सभी भाजपा के साथ हैं अतः इंडिया गठबन्धन ने फिलहाल जो रणनीति तैयार की है वह विपक्ष में बैठने की ही है।

इसके सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस की 99 सीटें आयी हैं जिसके बाद समाजवादी पार्टी की 37 व तृणमूल कांग्रेस की 29 सीटें हैं। इंडिया गठबन्धन की रणनीति यह दिखाई पड़ती है कि भाजपा और नरेन्द्र मोदी का पुराना रिकार्ड देखते हुए वह एनडीए की सरकार के अपने ही बोझ से टूट जाने के इन्तजार में रहे और उसके बाद अपने पत्ते बाहर निकाले। इंडिया गठबन्धन देखना चाहेगा कि एनडीए की सरकार में सत्ता का बंटवारा किस तरह से होता है। खास कर सहयोगी घटक दलों की हुकूमत में क्या स्थिति रहती है। जाहिर है कि नरेन्द्र मोदी की नई सरकार मुख्य रूप से तेलगू देशम, जनता दल (यू), लोकजन शक्ति पार्टी व शिन्दे गुट की शिवसेना पर टिकी रहेगी। इन चारों पार्टियों की संयुक्त शक्ति 40 सदस्यों की है जो कि इंडिया गठबन्धन की सरकार बनाने के लिए काफी है मगर ये चारों पार्टियां फिलहाल भाजपा के पाले में हैं और उसे बहुमत से आठ के ऊपर के आंकड़े पर रख रही हैं। अतः देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा इन चारों पार्टियों को किस प्रकार सन्तुष्ट रख पाती है।देखने वाली बात यह होगी कि मोदी सरकार में मन्त्रालयों का बंटवारा किस आधार पर होता है और तेलगू देशम पार्टी क्या सरकार में शामिल होती है अथवा बाहर से ही समर्थन देते रहेगी लोकसभा अध्यक्ष पद अपने हाथ में रखना चाहती है। जहां तक लोकसभा अध्यक्ष पद का सवाल है तो यदि तेलगू देशम का प्रत्याशी इस पद पर बैठता है तो पूरे इंडिया गठबन्धन का उसे बिना शर्त समर्थन मिलेगा क्योंकि पिछली लोकसभा में भाजपा के प्रत्याशी ने इस पद पर बैठकर जो कोहराम मचाया था वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। अतः पहला परीक्षण अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर ही होगा और इंडिया गठबन्धन चाहेगा कि इस पद पर तेलगू देशम का सदस्य ही चुना जाये वरना लोकसभा में इस पद को लेकर भी मतदान की नौबत आ सकती है जिसमें भाजपा के सहयोगी दलों का रुख क्या रहेगा। इस बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।

भाजपा को समझना होगा कि उसकी सत्ता की बागडोर अब इन चार दलों के 40 सांसदों के हाथ में ही रहेगी। इन सभी दलों का भाजपा के सिद्धांतों में विश्वास नहीं रहा है और सभी का अल्पसंख्यक समुदाय में भी सीमित वोट बैंक माना जाता है। अतः ये दल न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने की मांग भी कर सकते हैं। इसके संकेत अभी से मिलने शुरू हो गये हैं। जनता दल (यू) ने साफ कह दिया है कि वह एक देश एक चुनाव के पक्ष में नहीं है। तेलगू देशम भी एेसी पार्टी है जो मुसलमानों को आरक्षण देने के हक में है और एक देश एक चुनाव के विरोध में खड़ी हुई है। सैद्धान्तिक रूप से ये दोनों पार्टियां कांग्रेस के निकट समझी जाती हैं। एक समान नागरिक आचार संहिता लागू करने के मामले में भी ये पार्टियां भाजपा के मत के साथ नहीं हैं। इनका मानना रहा है कि पहले आचार संहिता के सभी आयामों पर खुलकर विचार किया जाना चाहिए। मोदी सरकार की पिछले दस साल से जो आर्थिक नीतियां रही हैं उनसे भी इन पार्टियों के गहरे मतभेद हैं जिसकी वजह से यह माना जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी की नई सरकार में वित्त मन्त्रालय इन्हीं में से किसी एक पार्टी के पास जायेगा। इंडिया गठबन्धन इन सब पक्षों पर पैनी निगाह रखे हुए है और सही समय या उचित समय पर उचित कदम उठाने की बात कर रहा है। जहां तक प्रधानमन्त्री पद के प्रत्याशी का सवाल है तो इसके पास कद्दावर अनुभवी नेताओं से लेकर दूरदर्शी युवा नेताओं की कमी नहीं है। मगर इंडिया गठबन्धन अभी इन्तजार करेगा और एनडीए की सरकार को बनता हुआ देखेगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com