संपादकीय

भारत और भूटान : बढ़ती साझेदारी

Shera Rajput

हाल ही में संपन्न हुई भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय भूटान यात्रा ने दोनों देशों के बीच नई राजनीतिक समझ और आर्थिक साझेदारी की दिशा में कई महत्वपूर्ण समझौते पर सहमति बनी है। पिछले एक दशक में मोदी सरकार की "पड़ोसी प्रथम" की नीति के आधार पर भारत सरकार ने अपने सभी निकटतम पड़ोसी देश जैसे भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका के साथ बेहतर सहयोग और सामंजस्य पर बल दिया है। इस दिशा में न सिर्फ 'रणनीतिक और राजनीतिक साझेदारी' पर काम हुआ है बल्कि नए क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग को बढ़ाने पर विशेष जोर डाला गया है। भूटान-भारत संबंधों में निरंतरता बनी हुई है जिसका आधार प्रधानमंत्री मोदी की भूटान यात्रा (अगस्त 2019) के दौरान हुए सहयोग और समझौतों की सफलता में है।
भारत और भूटान एक पुराना और विशेष संबंध साझा करते हैं जो सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संबंधों के आधार पर निर्मित है। दोनों देशों के बीच सहयोग और सामंजस्य का एक पुराना इतिहास रहा है। भूटान अपनी सीमित भौगोलिक क्षमता के बावजूद दक्षिण एशिया क्षेत्र में 'रणनीतिक और सामरिक रूप' से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भूटान विशेषकर दक्षिण एशिया क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता के प्रयासों में भारत के लिये एक प्रमुख भागीदार रहा है। चीन के साथ भूटान के सीमा विवाद और भारत के साथ उसके संबंध हाल में सुर्खियों में रहे हैं, जहां भूटान अपने क्षेत्रीय विवादों को लेकर चीन के साथ वार्ता में संलग्न रहा है।
इसके अलावा भारत-भूटान सीमा के नजदीक चीन द्वारा लगातार जरिया अतिक्रमण के प्रयासों ने भी नई चुनौतियां पैदा की हैं। वर्ष 2017 का डोकलाम बॉर्डर विवाद ज्यादा पुराना नहीं है, जब चीन, भूटान और भारत की त्रिकोणी सीमा पर स्थित कुछ क्षेत्रों में चीन ने अनावश्यक रूप से अतिक्रमण करने का प्रयास किया था जिसके जवाब में भारतीय सेना ने आगे आकर चीन की इस गतिविधि को सीधे तौर पर रोका। डोकलाम त्रिबिंदु के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ये सिलीगुड़ी गलियरे के निकट है। चीन का प्रयास था कि भूटान की कमजोर सैनिक स्थिति का लाभ उठाकर वह बॉर्डर क्षेत्र में नए अतिक्रमण का प्रयास करें, जैसा कि आमतौर पर दक्षिण एशिया और दक्षिण चीन सागर में उसकी नीति रही है। डोकलाम विवाद में भारत ने एक परिपक्व और सजग नीति का परिचय देते हुए चीन का प्रतिरोध किया।
अक्तूबर 2023 में भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ एक सप्ताह के भारत दौरे पर थे, जिस दौरान दोनों देशों ने कई नए समझाैतों पर सहमति बनाई। भूटान को किये जा रहे आर्थिक सहयोग से आगे बढ़कर भारत ने भूटान के साथ अब स्टार्टअप कौशल और स्पेस साइंस के क्षेत्र में सहयोग और संभावनाओं पर जोर दिया। इसके अलावा साइंस, टैक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मेडिसिन शिक्षा के क्षेत्र में भी सहयोग पर बातचीत हुई। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के सहयोग से भूटान की राजधानी थिंपू में 2019 में साउथ एशिया स्पेस सेंटर की शुरुआत हुई जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2022 में इसरो द्वारा लांच की गई पीएसएलवी सी 54 सैटेलाइट दोनों देशों के बीच बढ़ते स्पेस सहयोग की दिशा में एक बड़ा प्रयास था।
भारत भूटान के संयुक्त प्रयास से हुए इस स्पेस लॉन्च को देखने के लिए भूटान का एक 18 सदस्य मीडिया प्रतिनिधि मंडल भी भारत में उपस्थित है। इसके अलावा भारत के बेंगलुरु स्थित यू. आर. राव सैटलाइट ट्रेनिंग केंद्र में भूटान के वैज्ञानिकों को स्पेस तकनीक और ट्रेनिंग की जानकारी दी गई। भारत का प्रयास था कि उच्च तकनीक, इनफॉरमेशन टैक्नोलॉजी और स्पेस क्षेत्र में सहयोग के माध्यम से भूटान के विकास मॉडल को और मजबूती दी जाए।
इसके अलावा दोनों देशों व्यापार, टैक्नोलॉजी और कनेक्टिविटी को बढ़ाने की दिशा में भी कई सार्थक कदम उठाए हैं, भारत के असम स्थित कोकराझार से गेलेफु (भूटान) क्षेत्र तक प्रस्तावित 57 किलोमीटर के रेल लिंक पर इंजीनियरिंग सर्वे हो चुका है और इसके 2026 तक क्रियान्वयन होने की तैयारी है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल के बनारहट से लेकर समत्से तक एक नए रेल लिंक पर विचार हो रहा है। जाहिर है इसके माध्यम से नागरिक आवागमन और पर्यटन को एक नई दिशा मिलेगी।
व्यापार और निवेश की दृष्टि से भी पिछले वर्ष भूटान नरेश की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने मुंबई में भारतीय निवेशकों से भूटान के विशेष आर्थिक जोन में भागीदारी बढ़ाने पर बातचीत की।

जल विद्युत सहयोग भारत और भूटान के बीच सहयोग का एक प्रमुख क्षेत्र है। भूटान के पास 24,000 मेगावाट की आर्थिक रूप से व्यावहारिक जल विद्युत क्षमता है, जिसमें से वह अभी लगभग 2000 मेगावाट का ही दोहन करता है। पनबिजली उत्पादन में भारत भूटान के लिए राजस्व का एक अच्छा स्रोत है। दोनों देशों ने 2024 तक पुनतशांगचु-2 प्लांट के शुरू होने के बाद और सस्ती और बेहतर तकनीक आधारित ऊर्जा सृजन पर सहमति दे रखी है। यह क्षेत्र भूटान की अर्थव्यवस्था और विकास के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार है। हाल ही में हुए भूटानी पीएम की भारत यात्रा (उनकी पहली विदेश यात्रा) के दौरान मोदी ने भूटानी राजा के "हरित आर्थिक क्षेत्र'' के दृष्टिकोण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई।
आम चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए यात्रा करना इस बात का प्रतीक है कि नई दिल्ली थिम्पू (भूटान) के साथ अपने संबंधों को कितना महत्व देती है। भूटान यात्रा पर गए पीएम मोदी को भूटान के सर्वोच्च नारिक सम्मान आर्डर ऑफ़ ड्रुक ग्याल्पो से नवाज़ा गया। यात्रा के दौरान दोनों पक्ष कनेक्टिविटी, बुनियादी ढांचे, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्रों में अधिक सहयोग के लिए सहमत हुए। इसके अलावा, दोनों देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि, पर्यावरण और वानिकी, युवा आदान-प्रदान और पर्यटन पर आपसी सहयोग की बात की। पैट्रोलियम, तेल, स्नेहक और संबंधित उत्पादों और वस्तुओं की आपूर्ति की सुविधा के सम्बन्ध में भी भारत से करार हुआ। भारत ने भूटान की 12वीं योजना के लिए 5,000 करोड़ की सहायता और इस वर्ष 2024-25 के बजट में 2,068 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा हिस्सा दिया। भारत ने भूटान को अगले पांच साल में 10 हजार करोड़ रुपये की आर्थिक मदद का एेलान किया है।
पिछले एक वर्ष में दोनों देशों के बीच बेहतर राजनीतिक संवाद और आर्थिक सहयोग देखने को मिला है। पीएम मोदी की भूटान राजकीय यात्रा (मार्च 2024) ने द्विपक्षीय सहयोग के नए बिंदुओं को गति दी है। उन्हीं के शब्दों में, 'भारत हमेशा भूटान के लिए एक विश्वसनीय मित्र और भागीदार बना रहेगा' इस बदलते परिदृश्य में आपसी रिश्ते, विश्वास और साझेदारी की नई ऊंचाइयों की ओर अग्रसर हैं।

डा. अभिषेक प्रताप सिंह
सहायक प्रोफेसर, देशबंधु कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय