संपादकीय

भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध

Aditya Chopra

विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर का यह कहना कि पाकिस्तान के साथ निर्बाध या बाधारहित बातचीत का दौर समाप्त हो चुका है, बताता है कि भारत पाकिस्तान के साथ 'जैसे को तैसा' व्यवहार करने की रणनीति पर चल रहा है। यह पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की विदेश नीति व रक्षानीति उसकी सेना तैयार करती है और आधे-अधूरे लोकतन्त्र में यहां की चुनी हुई सरकार उस पर अमल करती है। मगर सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि 15 अगस्त, 1947 को भारत को काटकर मजहब की बुनियाद पर जिस पाकिस्तान का निर्माण मुहम्मद अली जिन्ना की जिद पर अंग्रेजों ने किया था वह एक एेसा 'नाजायज मुल्क' है जिसमें आज भी नागरिकों का धर्म देखकर सत्ता या राज्य उनके साथ व्यवहार करती है। पाकिस्तान भारत की तरह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र न होकर मजहबी फलसफे पर आधारित एेसा मुल्क है जिसने धर्म की आड़ में अपने नागरिकों पर ही कम जुल्मो-सितम नहीं किया है। जब इस देश में कादियानी समेत कुछ अन्य इस्लामी फिरके के लोगों को मुसलमान ही नहीं समझा जाता है तो हम पाकिस्तानी हिन्दुओं की स्थिति का आसानी से अन्दाजा लगा सकते हैं। हालांकि पाकिस्तान की कुल 23 करोड़ के लगभग आबादी में अब हिन्दू बहुत कम बचे हैं। इसके साथ इस हकीकत को भी हमें ध्यान में रखना चाहिए कि इस मुल्क के सियासतदानों ने अपनी फौज के साथ मिलकर भारत विरोध को ही अपने अस्तित्व का सवाल बना रखा है।
पाकिस्तान के साथ 1965 तक भारत के सम्बन्धों को यदि मिठास भरा नहीं कहा जा सकता था तो कडुवा या कसैला भी नहीं माना जा सकता था। 1948 में मुहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु के बाद तत्कालीन पाक शासकों का रवैया भारत के प्रति बहुत कड़वाहट भरा नहीं था मगर 1965 में जब पाक के शासक जनरल अयूब थे तो इसने कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत पर अनायास ही हमला बोल दिया था। हालांकि इससे पहले 1948 में पाकिस्तानी फौजों ने कश्मीर घाटी में युद्ध छेड़ दिया था और कश्मीर के एक हिस्से को कब्जा लिया था जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। अमेरिकी हथियारों की इमदाद पर इतरा कर इसने 1965 में हमला तो बोल दिया मगर इसे मुंह की खानी पड़ी थी और भारतीय फौजें लाहौर तक पहुंच गई थीं। रणक्षेत्र में बुरी तरह परास्त होने के बाद पाकिस्तान ने तत्कालीन सोवियत संघ के शहर ताशकन्द में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री के साथ समझौता किया। इसके बाद 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के बारे में हम सभी जानते हैं जिसमें पूर्वी पाकिस्तान का बंगलादेश के रूप में उदय हुआ था। इसके बाद 1999 के कारगिल युद्ध के इतिहास से भी हम भलीभांति परिचित हैं। मगर 1989 के बाद से पाकिस्तान ने भारत के कश्मीर में आतंकवाद फैलाने की कोशिश की और बाद में 2008 में इसने मुम्बई तक में आतंकवादी कार्रवाई की। भारत ने उस समय अपनी कूटनीति से बचेकुचे पाकिस्तान को पूरी दुनिया में अकेला खड़ा कर दिया था और उसके सिर के ऊपर आतंकवादी देश घोषित होने की तलवार को लटका दिया था।
यह कमाल उन दिनों भारत के विदेश मन्त्री स्व. प्रणव मुखर्जी ने इस हद तक किया था कि पूरी दुनिया के इस्लामी देशों तक ने पाकिस्तान का साथ छोड़ दिया था। तब यह भी भारत ने सिद्ध कर दिया था कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का एक अंग बना रखा है। इसके बाद भारत में आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका सीमित नहीं हुई और उसकी फौजें आतंकवादियों के शिविरों को पाक अधिकृत कश्मीर में चलाती रही और जम्मू-कश्मीर राज्य में सक्रिय अलगाववादी संगठनों की मदद करती रही। इसके बावजूद भारत ने 2009 में अरबी शहर 'शर्म अल शेख' में पाकिस्तान के साथ बातचीत के द्वार खोलने का निर्णय किया लेकिन पाकिस्तान ने अपनी फितरत नहीं छोड़ी और वह जम्मू-क्श्मीर में अलगाववादियों की मदद करता रहा। भारत की हमेशा कोशिश रही कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे का अन्तर्राष्ट्रीयकरण न कर सके क्योंकि बंगलादेश  युद्ध के बाद शिमला में इसने जो समझौता किया था उसमें यह स्वीकार कर लिया था कि कश्मीर समेत जितने भी विवादास्पद मुद्दे दोनों देशों के बीच में हैं उनका हल शान्तिपूर्ण तरीके से केवल वार्ता की मेज पर ही ढूंढा जायेगा परन्तु इसके बावजूद पाकिस्तान की सरकारों ने भारत विरोध नहीं छोड़ा और अपनी हरकतें 1989 के बाद से बढ़ानी शुरू कर दीं। यह गंभीर विचारणीय मुद्दा है कि पाकिस्तान एेसा क्यों करता है ? जबकि उसका जन्म ही भारत की धरती से हुआ है।
जाहिर है कि कश्मीर का राग अलापकर और भारत विरोधी तेवर रखकर पाकिस्तानी हुक्मरान अपनी देश की जनता का ध्यान मूल मुद्दों से हटाना चाहते हैं। इस देश में आतंकवाद की हालत यह है कि अब खुद पाकिस्तानी लोग ही इस जुनून का शिकार बन रहे हैं। अतः श्री जयशंकर का यह कहना पूरी तरह बजा है कि भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार या निर्बाध रूप से बातचीत करने का दौर समाप्त हो चुका है। कूटनीतिक नजरिये से अगर इस बयान को देखें तो हम इस नतीजे पर पहुंचेंगे कि पाकिस्तान एक असफल (फेलिंग स्टेट) है। मगर फिर भी जयशंकर ने इतना आश्वासन जरूर दिया है कि यदि पाकिस्तान अपनी पुरानी गुस्ताखियों से कुछ सीखते हुए भारत के प्रति सकारात्मक भाव से कुछ करता है तो उसका उत्तर उसी तरह दिया जायेगा। अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह कौन सी राह अपनाता है। भारत केवल इतना चाहता है कि पाकिस्तान आतंकवाद की राह छोड़कर सभ्य तरीके से बातचीत की मेज पर बैठे मगर इसके लिए पहले पाकितान को सबूत देना होगा कि उसने आतंकवाद को समाप्त करने के लिए कारगर कदम उठाये हैं क्योंकि इस देश में आज भी अन्तर्राष्ट्रीय रूप से आतंकवादी घोषित तंजीमें काम कर रही हैं। उस पर तुर्रा यह है कि पाकिस्तान भी अवैध तरीके से परमाणु शक्ति बन चुका है।