प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ब्रुनेई और सिंगापुर की यात्रा से भारत को बहुत कुछ हासिल हुआ। ब्रुनेई की धरती पर खड़े होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल चीन को कड़ा संदेश दिया है बल्कि हिन्द प्रशांत क्षेत्र में ब्रुनेई को रणनीतिक भागीदार बनाने में भी कदम आगे बढ़ाए हैं। सिंगापुर दौरे के दौरान दोनों देशों में सेमीकंडक्टर फील्ड समेत चार क्षेत्रों में पार्टनरशिप को लेकर समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं। अहम बात यह है कि इस समझौते के बाद सिंगापुर की सेमीकंडक्टर कम्पनियों का भारत में प्रवेश का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा। सिंगापुर के साथ सेमीकंडक्टर समझौता हो जाने से चीन की परेशानी बढ़ेगी। भारत पहले ही सेमीकंडक्टर हब बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। इसी साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1.25 लाख करोड़ की तीन सेमीकंडक्टर परियोजनाओं का शिलान्यास किया था। इनमें से दो प्लांट गुजरात के साणंद और धोलेरा में खोले जाएंगे। एक प्लांट असम के मोरीगांव में खोला जाएगा। भारत सेमीकंडक्टर के लिए अभी तक दूसरे देशों पर निर्भर रहा है। हर साल भारत अरबों रुपए के सेमीकंडक्टर आयात करता है। सेमीकंडक्टर की दुनिया में सबसे बड़े सप्लायर चीन, ताइवान और अमेरिका हैं। इनमें प्रोसैसर चिप और सेमीकंडक्टर का सबसे बड़ा निर्यातक चीन है। कोरोना महामारी के दौरान चीन में जब चिप और सेमीकंडक्टर का उत्पादन रुका तो इसका असर भारत और पूरी दुनिया में देखने को मिला था। अमेरिकी कम्पनियों ने भी सेमीकंडक्टर की सप्लाई रोक दी थी।
सेमीकंडक्टर को सिलिकॉन चिप के नाम से भी जाना जाता है। यह किसी भी इलेक्ट्राॅनिक उत्पादन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसके बिना कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद नहीं बनाया जा सकता है। एलईडी बल्ब से लेकर मिसाइल और कार से लेकर मोबाइल और लैपटॉप में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह चिप इलेक्ट्रॉनिक आइटम की मेमोरी को ऑपरेट करने का काम करती है। सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल स्मार्ट वॉच, मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, ड्रोन, एविएशन सेक्टर से लेकर ऑटोमोबाइल सेक्टर में होता है।
सेमीकंडक्टर बनाना एक जटिल प्रक्रिया है। एक छोटे से सेमीकंडक्टर या चिप को बनाने की प्रक्रिया में 400-500 चरण होते हैं। इनमें से एक भी चरण अगर गलत हो गया तो करोड़ों रुपये का नुकसान हो सकता है। इसको बनाने के लिए जिस धातु और अन्य चीजों की जरूरत होती है वह कुछ ही देशों के पास है। वहीं इसके डिजाइन की तकनीक भी चुनिंदा देशों के पास है। सेमीकंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने में इस्तेमाल होने वाली धातु पैलेडियम का सबसे बड़ा सप्लायर रूस है। भारत की बात करें तो दुनियाभर की सभी बड़ी आईटी और चिप निर्माता कंपनियों में भारतीय इंजीनियर काम करते हैं। यह इंजीनियर इन कंपनियों के लिए चिप डिजाइन करते हैं।
सेमीकंडक्टर बनाने के लिए एक चुनौती यह भी है कि कई कंपनियों ने अपने-अपने तरीके से कई तकनीकों का पेटेंट कराया है। यह कंपनियां अन्य कंपनियों से चिप का निर्माण कराती हैं।
भारत में सेमीकंडक्टर की मांग लगभग 21 बिलियन डॉलर है। 2030 तक यह आंकड़ा 110 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। भारत तेल और सोने के बाद सबसे बड़ा आयात सेमीकंडक्टर का करता है। सिंगापुर की कम्पनियों के पास तकनीक तो है लेकिन उसके पास बाजार नहीं है। वहां श्रम भी काफी महंगा है। उनके पास बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। सिंगापुर की कम्पनियां भारत में प्लांट लगाकर न केवल यहां की घरेलू मांग को पूरा कर सकती हैं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चीन और ताइवानी कम्पनियों का मुकाबला कर सकती हैं। भारत में प्लांट लगने से युवाओं को रोजगार के नए मौके मिलेंगे बल्कि यहां एक बड़ा बाजार स्थापित भी हो जाएगा। सिंगापुर के विश्वविद्यालयों ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में कस्टमाइज कोर्स भी डिवेलप किया है। इसका फायदा भारत को मिलेगा। सिंगापुर सेमीकंडक्टर से जुड़े उपकरण भी बनाता है, इसलिए मैन्युफैक्चरिंग इको सिस्टम तैयार करने में भारत को मदद मिलेगी। सिंगापुर वैसे तो एक छोटा शहरी देश है, इसके बावजूद वहां सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का जाल बिछा हुआ है।
भारत इसी तरह का समझौता ताइवान से भी करने की इच्छा रखता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह भी कहा कि वह भारत में कई सिंगापुर बनाना चाहते हैं। दोनों देश डिजिटल तकनीक के कई क्षेत्रों में सहयोग करेंगे। दोनों देशों के बीच श्रमिकों के स्किल डेवलपमेंट पर भी आम सहमति बनी है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री लौरेंस वांग ने हर सम्भव सहयोग का वादा किया है। आने वाले दिनों में दोनों देशों के संबंध नए आयाम स्थापित करेंगे क्योंकि सिंगापुर में एक छोटा भारत भी बसता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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