संपादकीय

भारत-ब्रिटेन आर्थिक संबंध

Aditya Chopra

आजादी के बाद से ही भारत और ब्रिटेन के संबंध कुछ मुद्दों को छोड़ कर अच्छे रहे। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अखंड भारत को खंड-खंड करके विभाजित करने में 200 साल तक भारत पर राज करने वाली ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार की ही प्रमुख भूमिका रही है परन्तु 1949 के बाद ब्रिटेन ने भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान भी ज्यादा तलखी नहीं दिखाई। यह कहा जा सकता है कि इन मुद्दों के दौरान ब्रिटेन की सरकार ने खुद को तटस्थ दिखाने की कोशिश की। आज भारत एक सशक्त वैश्विक अर्थव्यवस्था है। ​िपछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में जिस तरह का क्रांतिकारी परिवर्तन आया है उससे सारी दुनिया भारत की तरफ आकर्षित हुई है। भारत के प्रति सभी विकसित देशों का ​दृष्टिकोण बदला है और उन्होंेने भारत में जमकर निवेश भी किया है। बदली हुई परिस्थितियों में भारत-ब्रिटेन के आर्थिक संबंधों का महत्व सर्वोच्च वरियता पर पहुंच गया है। ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन के बाद संबंधों को लेकर कुछ सवाल हवा में उछाले जा रहे थे लेकिन नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने का अपना इरादा स्पष्ट कर ​िदया था।
ब्रिटेन के चुनाव में ऋषि सुनक की पार्टी कंजर्वेटिव पार्टी को करारी हार देकर लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर सत्ता में आए हैं। संबंधों को मजबूत बनाने के लिए ही ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी भारत आए हैं। उनके इस दौरे से ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनने के साथ भारत के साथ रिश्तों को लेकर जो थोड़ी बहुत अनिश्चितता थी वह भी खत्म हो गई है। डेविड लैमी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल आैर विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की है। लैमी और जयशंकर के नेतृत्व में हुई बैठक में ब्रिटेन-भारत प्रौद्योगिकी सुरक्षा अभियान (टीएसआई) शुरू करने का ऐलान किया गया है। इस तरह का समझौता भारत ने अमेरिका के साथ भी किया है जो अत्याधुनिक प्रौद्यो​िगकी के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग का दायरा बड़ा करता है। यह दोनों सरकारों, निजी क्षेत्र, विश्वविद्यालयों व रिसर्च संस्थानों को एक साथ ​िमलकर संचार, क्रि​िटकल निनरल्स, सैमी कंडक्टर, बायोटैक, आर्टीफिशियल इंटैलीजैंसी (आईए) जैसे नए क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग का मंच देगा।
माना जा रहा है कि यह समझौता भारत में प्रौद्योगिकी की पढ़ाई करने वाले छात्रों को रोजगार के नए अवसर भी देगा। प्रौद्योगिकी क्षेत्र में सहयोग को दोनों देश काफी प्राथमिकता से ले रहे हैं। बुधवार की बैठक में यह सहमति बनी है कि भारत व ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय मिलकर ऐसी व्यवस्था करेंगे जिससे क्रिटिकल व इमर्जिंग टेक्नोलॉजी में आपसी कारोबार करना आसान हो। इसके लिए लाइसेंस व नियमन संबंधी बाधाओं को दूर किया जाएगा। विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि दोनों विदेश मंत्रियों के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर भी बात हुई है और इस पर जल्द ही समझौता करने की सहमति बनी है। दोनों देशों के बीच इसको लेकर तीन वर्षों से गहन वार्ता चल रही है और पहले दिसंबर, 2023 तक इस पर समझौता करने का एेलान भी किया गया था। लेबर पार्टी ने पहले तो इस समझौते काे लेकर कुछ विरोध किया था लेकिन अब वह इसका पूरा समर्थन कर रही है।
मुक्त व्यापार समझौते को लेकर भारत-ब्रिटेन में 14 दौर की वार्ता पहले ही हो चुकी थी। भारत में आम चुनावों का ऐलान होने के बाद वार्ता थम गई थी, जो अब दोबारा शुरू हुई। ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री पद पर रहते ब्रिटेन चाहता था ​िक भारत ब्रिटेन से होने वाले निर्यात पर ​टैरिफ घटाए, जो कि अभी तक 150 प्रतिशत जितना ज्यादा है। वहीं भारत चाहता है ​िक ब्रिटेन में काम करने वाले भारतीयों के मामले में नियम निष्पक्ष रहे और उन्हें नैशनल इन्श्योरैंस के तहत कवर किया जाए। लेबर पार्टी अब अपने नजरिये से डील की पेशकश कर सकती है। ब्रेक्जिट समूह से अलग होने के बाद ब्रिटेन ने अपनी अर्थव्यवस्था के द्विपक्षीय पक्ष पर जोर देना शुरू ​िकया और उसे भारत के विशाल बाजार की जरूरत महसूस हुई। यूरोपीय संघ से जुड़ने के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कोई ज्यादा लाभ नहीं हुआ और आखिरकार जनता की इच्छा के अनुरूप ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से नाता तोड़ लिया। हालात को देखते हुए भारत आैर ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते का महत्व काफी बढ़ चुका है। ब्रेक्जिट फैसले के बाद ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था कराह रही थी और कोरोना काल के दौरान अर्थव्यवस्था ने दम तोड़ दिया था। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था द्वितीय महायुद्ध और उसके बाद 70 के दशक में हुए 'ब्लैक मंडे' रक्तरंजित घटना के बाद सबसे खराब हालत में पहुंच गई थी। तब ब्रिटेन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के लिए आगे बढ़ा। रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे हालात से भी ब्रिटेन पर काफी मार पड़ी। क्योंकि ठंडे देश में गर्म रहने के लिए उसे ऊर्जा की ​िकल्लत का सामना करना पड़ा और खाद्य पदार्थों की सप्लाई रुक जाने से उस पर महंगाई की मार पड़ी। बदलते आर्थिक परिदृश्य में यह जरूरी है कि दोनों देश आने वाले दिनों में मुक्त व्यापार समझौते को परवान चढ़ाएं क्योंकि इससे दोनों देशों को ही फायदा पहुंचेगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com