संपादकीय

भारतीय फौज और ‘इंसानियत’

Aditya Chopra

भारतीय सेना के आदर्श लक्ष्यों में से एक यह भी है कि यह इंसान और इंसानियत की रक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध रहती है। अतः इसकी हर कार्रवाई दुश्मन के खात्मे साथ ही इंसानों के जायज हकों की रक्षा के लिए भी होती है। जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में जिस तरह पाकिस्तानी आतंकवादी घुसपैठिये आकर वहां तैनात सुरक्षा बलों के जांबाज सिपाहियों को चकमा देकर भारतीय इलाकों में तबाही मचाने की कोशिशें करते रहते हैं उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाना सुरक्षा सैनिकों का कर्त्तव्य बनता है परन्तु इस कार्य को अन्तिम परिणिती तक पहुंचाने में यदि कोई भारतीय कश्मीरी नागरिक जुल्म का शिकार बनता है तो उसका प्रतिकार उसी तरह से होना जरूरी है जिसकी व्यवस्था हमारे संविधान में है और उसमें प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का मौलिक अधिकार मिला हुआ है। उसकी जिन्दगी जीने के अधिकार को कोई भी बड़ी से बड़ी ताकत नहीं छीन सकती। विगत गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में पाक घुसपैठियों ने घुसकर भारतीय सीमाओं की रक्षा कर रहे चार सुरक्षा सैनिकों की हत्या कर डाली और उनकी पकड़-धकड़ करने की मुहीम के चलते सेना ने आठ नागरिकों काे शक के घेरे में लेकर उनसे कड़ी पूछताछ की। एेसा आरोप लगाया जा रहा है कि इनमें से तीन की पूछताछ के दौरान मृत्यु हो गई और पांच अन्य गंभीर रूप से जख्मी हो गये जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इन्ही जख्मी पांच नागरिकों में से एक 52 वर्षीय मोहम्मद अशरफ ने कहा है कि उसके साथ चार अन्य नागरिकों को भी सेना के अफसरों ने अपनी गिरफ्त में लिया और उन्हें नंगा करके लाठी व सरियों से पीटा गया तथा उनके जख्मों पर मिर्ची मली गई। इन पांचों को घुसपैठियों से सेना की हुई मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया गया था जिसमें चार वीर सैनिकों की शहादत हुई थी। इसके बाद की सैनिक पूछताछ के दौरान तीन अन्य गिरफ्तार किये गये नागरिकों के शव भी मिले।
इससे न केवल जम्मू-कश्मीर में बल्कि पूरे देश में ही बेचैनी का वातावरण पैदा हो गया और सेना के मुख्यालय ने पूरे मामले की अपने सैनिक तन्त्र के भीतर न्यायिक जांच कराने के आदेश दिये तथा एक ब्रिगेडियर समेत तीन आला फौजी अफसरों को उनकी मौजूदा ड्यूटी से हटने के आदेश जारी किये। मामले ने इस कदर गंभीर रुख लिया कि फौज के जनरल मनोज पांडे को भी पुंछ सैनिक क्षेत्र का दौरा करके आश्वासन देना पड़ा कि पूरे वाकये की बाकायदा पक्की जांच कराई जायेगी और जो भी दोषी पाया जायेगा उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जायेगी। अब यह समझा जा रहा है कि 27 दिसम्बर को रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह भी पुंछ क्षेत्र का दौरा करेंगे और स्थिति का जायजा लेंगे। रक्षामन्त्री की जिम्मेदारी सीमाओं की सुरक्षा की होती है और इस काम में देश के हर नागरिक का समर्थन उनके साथ होता है। जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में यह दायित्व और भी अधिक संवेदनशीलता के साथ यहां के नागरिक निभाते आ रहे हैं और यह सिद्ध करते आ रहे हैं कि वे कश्मीरी भले ही हों मगर भारत के सम्मानित नागरिक भी हैं। पाकिस्तान के इस्लामी हुक्मरानों की लाख साजिशों के बावजूद उनकी वफादारी हमेशा भारत के साथ रही है और जब भी पाकिस्तान की नामुराद फौजों ने भारत पर हमला करने की कोशिश की है तो उसकी हरकतों के बारे में भारतीय सेना को पहली खबर भी उन्होंने ही दी है। अतः न केवल कश्मीर भारत का है बल्कि हर कश्मीरी भी भारत का वैसा ही सम्मानित नागरिक है जैसा कि देश के अन्य किसी राज्य उत्तर प्रदेश या तमिलनाडु का।
अब 370 हटने के बाद तो भारत का पूरा संविधान इकसार तरीके से हर कश्मीरी पर लागू होता और उसके अधिकार व हक भी इसके अनुसार ही उसे मिलते हैं। अतः यदि किसी कश्मीरी नागरिक के साथ अन्याय हुआ है तो उसे न्याय हर हालत में मिल कर ही रहेगा। श्री राजनाथ के पुंछ दौरे के पीछे का उद्देश्य भी यही लगता है। हमें यह भी अच्छी तरह मालूम है कि पाकिस्तान किस तरह जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना की मौजूदगी को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ जहर उगलता रहा है। हालांकि अब पूरी दुनिया के सामने यह साफ हो चुका है कि पाकिस्तान ही पूरी दुनिया में ऐसा मुल्क है जिसे दहशतगर्दों की जरखेज जमीन कहा जाता है परन्तु पूर्व में भारत के भीतर भी कुछ गैर सरकारी संगठन कश्मीर में सेना द्वारा मानवीय अधिकारों के उल्लंघन का मसला उठाने की कोशिश करते रहे हैं जिसका जवाब भी पूर्व में ही हमारी सेना के भीतरी न्यायिक तन्त्र द्वारा बखूबी दिया जाता रहा है और किसी भी दोषी पर रहम फरमाने की मेहरबानी कभी नहीं की गई है लेकिन इसके साथ यह भी हकीकत है कि कश्मीर में ही कुछ पाक समर्थक माने जाने वाली तंजीमें हमारे सैनिकों को खलनायक के तौर पर पेश करने तक से भी बाज नहीं आती रही हैं।
बेशक 370 हटने से माहौल बदला है मगर इसका मतलब यह भी नहीं है कि नागरिकों के सन्दर्भ में सेना की किसी भी कोताही को सेना का खुद का तन्त्र और सरकार बर्दाश्त कर सकती है। हर नागरिक का न्याय पाना भी मौलिक अधिकार होता है। इसी वजह से फौज खुद तीन नागरिकों की मृत्यु के बारे में बहुत संजीदा नजर आती है और दुनिया को यह सन्देश देना चाहती है कि भारत की फौजें केवल विश्व के विभिन्न अशान्त क्षेत्रों में ही शान्ति कायम करने के लिए नहीं बुलाई जाती है बल्कि अपने देश में भी वह पूरी सदाकत के साथ इस पर अमल करती हैं। हमारी फौजाें का हमेशा यही गान रहा है
''ताकत वतन की हमसे है,
इज्जत वतन की हमसे है
इंसान के हम रखवाले…''