संपादकीय

टूटा भारतीय छात्रों का सपना

Aditya Chopra

खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा हत्या के पीछे भारतीय एजैंसियों का हाथ होने के आरोप लगाए जाने के बाद भारत-कनाडा संबंध बुरे दौर में चल रहे हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित भी किया था। आरोप-प्रत्यारोप आज भी जारी हैं। तनावपूर्ण रिश्तों का असर कनाडा में रहने वाले भारतीय प्रवासियों पर पड़ रहा है। तनाव के ​बीच अब एक नया संकट जुड़ गया है। कनाडा ने छात्रों के लिए नए वीजा नियमों का ऐलान किया है। इन नए नियमों का सबसे ज्यादा असर भारतीय छात्रों को ही भुगतना पड़ेगा। कनाडा जाने वाले छात्रों में पंजाब और गुजरात के छात्रों की संख्या सबसे अधिक है। नए नियमों के तहत कनाडा ने छात्र वीजा में 35 फीसदी कटौती करने का ऐलान किया था। 2023 में कनाडा ने 5 लाख 79 हजार वीजा जारी किए थे लेकिन इस साल यह घटकर 3 लाख 64 हजार रह जाएंगे। विदेश में पढ़ाई करने के इच्छुक भारतीयों के लिए कनाडा पसंदीदा जगहों में से एक रहा है। कनाडा जाने वाले छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ काम करने के मौके भी मिल जाते हैं लेकिन कनाडा ने पोस्ट ग्रेज्यूएट के ​िलए भी नई सीमा तय कर दी है। अब मास्टर्स या पोस्ट डॉक्टरेट करने वालों को तीन साल के वर्क परमिट की मंजूरी दी गई है। मास्टर्स या डॉक्टरेट कर रहे विदेशी छात्रों के जीवन साथी को वर्क परमिट दिया जाएगा। ग्रेज्यूएट या कॉलेज के छात्रों के जीवन साथी के ​लिए वर्क परमिट नहीं होगा। वर्क परमिट कनाडा में रहने के लिए आसान तरीका रहा है।
कनाडा सरकार ने कई ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनका मकसद दुनिया भर के छात्रों को ​िनजी संस्थानों द्वारा उठाए जाने वाले नाजायज किस्म के फायदों से बचाना भी है। यद्यपि जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने यह सारे कदम घरेलू परिस्थितियों के दृष्टिगत उठाए हैं। कनाडा में महंगाई लगातार बढ़ रही है और देश जबरदस्त आवास संकट से जूझ रहा है। वहां कई वजहों से घरों के निर्माण की गति सुस्त पड़ी जिससे मांग के मुताबिक घरों की उपलब्धता कम पड़ गई। सस्ता आवास उपलब्ध कराने में नाकामी वहां एक बड़ा मुद्दा बन गया है जो प्रधानमंत्री टूड्रो की लोकप्रियता में गिरावट का कारण बन रहा है। विपक्षी दलों ने भी इसे मुद्दा बना लिया जिससे सरकार पर दबाव बढ़ता गया। इस संकट से जुड़ा एक पहलू वहां की इमिग्रेशन पॉलिसी है। कहा जा रहा है कि बड़ी संख्या में विदेशी छात्रों के आने से डिमांड और सप्लाई का अनुपात गड़बड़ा रहा है। इन छात्रों की वजह से आवास की मांग बढ़ रही है और इसकी कीमतों के और चढ़ने के हालात बन रहे हैं। हालांकि कनाडा की इकॉनमी के लिहाज से भी ये अन्तर्राष्ट्रीय स्टूडेंट्स खासे अहम माने जाते रहे हैं। टोरंटो में इस समय एक बैडरूम का किराया 2500 कनाडाई डॉलर है। दूसरी तरफ सच यह भी है कि कनाडाई भारतीय समुदाय से किराये के रूप में काफी पैसा कमाते हैं।
इससे पहले यह घोषणा की गई थी कि इस वर्ष से छात्रों को अपनी एक साल की ट्यूशन फीस के अलावा अपने खाते में कम से कम 20,635 कनाडाई डॉलर दिखाने होंगे और यदि वे परिवार के एक सदस्य को लाते हैं तो उन्हें अतिरिक्त चार हजार कनाडाई डॉलर दिखाने होंगे। कनाडा में अध्ययन वीज़ा प्राप्त करने के लिए एक छात्र को वर्तमान में रहने की प्रारंभिक लागत को कवर करने के लिए अपने खाते में 10 हजार डॉलर दिखाने की आवश्यकता होती है। अंतर्राष्ट्रीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था में सालाना लगभग 22 अरब कनाडाई डॉलर (लगभग 16.4 अरब अमेरिकी डॉलर) का योगदान देते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कनाडा के कई फर्जी संस्थान धोखाधड़ी से भारतीय छात्रों को आकर्षित करते हैं और उन्हें कनाडा में बसाने का अच्छा खासा धंधा करते रहे हैं। दोनों देशों के संबंधों में तनाव के चलते वहां जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या पहले ही कम हो चुकी है। भारतीय छात्र अब दूसरे देशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। कनाडा में नौकरी के अवसर कम होने से भारतीय समुदाय पहले से ही परेशान है। कनाडा में हो रही अप्रिय घटनाएं भी भारतीय छात्रों को भयभीत कर रही हैं। कनाडा से हर महीने पांच से आठ शव भारत भेजे जा रहे हैं। ​पिछले कुछ वर्षों में कनाडा में भारतीय युवाओं की मौतें ओटंरियो, ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में हुई हैं। इनमें कुछ आत्महत्याएं हैं जबकि अन्य दुर्घटनाएं, हत्याएं, ड्रग्स का अत्यधिक सेवन और डूबने आदि से हुई हैं। जो छात्र कर्ज लेकर पढ़ने गए थे उन्हें वहां आवास, भोजन और नौकरी के​ लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। कनाडा की अर्थव्यवस्था के ​लिहाज से भारतीय बड़ी अहमियत रखते हैं। कनाडा में टीसीएस, इन्फेसिस विप्रो जैसी 30 भारतीय कम्पनियों ने अरबों डॉलर का ​निवेश किया हुआ है,​ जिसमें हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। भारत-कनाडा द्विपक्षीय संबंधों की भरपाई में समय लगेगा। हो सकता है कनाडा में सरकार बदलने के बाद ही इस पर कोई प्रगति हो सके। फिलहाल भारतीय छात्रों का सुंदर सपना टूट गया है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com