अपने पिता तुल्य जीजा जी के आक्समिक निधन पर गत् सप्ताह लंदन आना पड़ा, जो सन् 1960 में पंजाब के एक छोटे से कस्बे हदियाबाद से छोटी सी उम्र में 7 बहनों व दो भाईयों की जिम्मेदारी निभाने लंदन आये। शिक्षित होने के बावजूद उन्होंने यहां आकर बस कंडक्टर से लेकर कई फैक्ट्रियों में कड़ी मेहनत की, सन् 1972 में मेरी बहन से शादी हुई जो कि उच्च शिक्षा प्राप्त (Bsc Chemistry) एक माडर्न एवं होनहार युवती थी। उन्हें अपनी माता जी से मिले संस्कार ऐसे थे जिसने अपने पति के परिवार में सामंजस्य बिठाते हुए उनकी परम्पराओं और परिवार के रीति-रिवाजों को बड़े अच्छे से अपनाया। हालांकि एक पढ़ी-लिखी आधुनिक विचारों वाली लड़की के लिए काफी मुश्किल था परन्तु वो इस परिवार में आने के बाद अपनी संस्कृति में इस प्रकार ढ़ल गई कि सारे शहर में गोवर्धन-वीना की जोड़ी उक्त बातों को लेकर काफी चर्चित हो गई। इसी दौरान मेरी बहन व जीजा जी ने कड़ी मेहनत कर कपड़ों का बिजनेस शुरू किया और 'शर्मा फैब्रिक्स' के नाम से लंदन में मशहूर हो गए। दोनों ने कड़ी मेहनत की, गोवर्धन जीजा जी ने अपने पूरे परिवार को सैटल किया। वह एक आज्ञाकारी बेटा और कत्र्तव्यपूर्ण करने वाला भाई और बहुत ही प्यार करने वाले पति थे। ईश्वर ने उनको तीन पुत्रों के साथ आशीर्वाद दिया। तीन पुत्र जो आज भारतीय संस्कृति और संस्कारों से प्रेरित सफल इंसान हैं। उनका एक बेटा लंदन के प्रथम 8 बैरिस्टरों में आता है, दूसरा सफल स्टेट एजेंट है। उच्च स्तरीय प्रॉपर्टी का कारोबार है और एक आईटी सैक्टर का सफलतम व्यक्ति है। इस सबका श्रेय मैं अपनी बहन के संस्कारों, शिक्षा और जीजा जी की मेहनत को देती हूं। मेरे जीजा जी 82 की उम्र में गए परन्तु पिता, पति किसी भी उम्र में जाये, इस दु:ख को सहना मुश्किल होता है। जैसे कि विदेशों में मशहूर है कि लड़के जैसे बड़े हुए माता-पिता से दूर परन्तु इस परिवार में ऐसा नहीं है। ऐसे संस्कारी बेटे – बहुएं मैंने शायद भारत में भी कम ही देखे हैं। इतना बड़ा परिवार मगर 'एक संगठित परिवार' एक ही रसोई। आज इस आधुनिकता के युग में ऐसे परिवार गिने – चुने ही हैं। बेटों को अपने मां-बाप की आज्ञा के अनुसार चलना, उनका ध्यान रखना, उनकी सेवा करना इस सबका श्रेय मेरी बड़ी बहन वीना शर्मा को जाता है। बच्चों में संस्कार भारतीय संस्कृति के माध्यम से ही आते हैं। वो यहां के हिन्दू मंदिर की सचिव हैं और जिस तरह वह मंदिर की व्यवस्था को संभालती हैं वो देखने और सीखने योग्य है। सारा शहर उन्हें 'वीना मां' के नाम से पुकारता और जानता है।
मैंने सोचा था कि शायद इतने साल यहां बिताने पर मेरे जीजा जी की विदाई भी यहां के तरीके से होगी परन्तु बेटों ने भारतीय संस्कृति के अनुसार बड़े आदर-भाव से हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ उनकी ऐसी अंतिम विदाई दी जैसे किसी राजा की विदाई होती है। उन्होंने जो अच्छी बातें यहां की थी उन्हें भी इसमें शामिल किया। पहले घर पर जब उनके पार्थिव शरीर को लाया गया तो पूरे सम्मान के साथ गंगा जल छिड़क कर मंत्र-पाठ से हवन कर विदाई दी, मेरी भान्जी तनिशा वडेरा ने अमृतवाणी का पाठ किया। मेरी बहन ने खुद विदाई के मंत्र-पाठ किए। तीनों बेटे-बहुओं और पोते-पोतियों ने फूल व कार्ड लिखकर विदाई दी। जब तक पार्थिव शरीर घर में था हर तरह का पाठ हुआ। शबद कीर्तन, ब्रह्मïाकुमारी पाठ, अमृतवाणी, गीता अध्याय और इस दु:ख की घड़ी में सारा शहर उमड़ पड़ा था। सभी विदाई देने काले कपड़ों में आए थे। इस दौरान उनकी किचन व आने – जाने वालों की सेवा सभी मेरी बहन की सहेलियों, मित्रों ने संभाली हुई थी। खासकर उनकी बहू प्रीति और मोना जिन्होंने सारी उम्र सेवा की, इस समय भी सबका ध्यान रखते हुए सेवा में लगी हुई थी। उनके पोते-पोतियों की आंखों से अश्रुधारा लगातार बह रही थी। उनके बेटों ने उन्हें रॉल्स रॉयज कारों के काफिले से विदाई दी। जब सभी कारें लाईन में चल रही थी मैं और मेरा बेटा भी तीसरी कार में थे। ऐसे ही महसूस हो रहा था कि जाना तो हम सबको है परन्तु ऐसी अंतिम विदाई तो संस्कारी बेटे-बहुएं ही दे सकते हैं, सारा शहर गर्व महसूस कर रहा था, उनके अनेक उदाहरण दिये जा रहे थे। अंत में सबने तीनों बेटेे, पोतों और पोतियों ने बड़ी भावपूर्ण स्पीच दी जिसने उपस्थित जनसमूह की आंखों को नम कर दिया। यहां के विद्वान पंडित शिवनरेश गौतम ने जो मंत्र उच्चारण किया वो बहुत ही सराहनीय था, उसके बाद मंदिर में हवन हुआ। ब्रह्मïभोज हुआ यह सब उनके मित्र संभाल रहे थे, उनके पड़ोसी डॉ. देवराज और उनकी पत्नी पिंकी ने सारे घर को ऐसे संभाला था जैसे वह घर के ही सदस्य हैं। उनके मित्रों का एक-एक का नाम लिखने का मन करता है परन्तु लिस्ट लम्बी हो जाएगी।कुल मिलाकर वहां जो भारतीय संस्कृति, संस्कार व अपनी मूल परम्पराएं देखने को मिलीं वो शायद आज भारत में भी बहुत कम देखने को मिल रही हैं परन्तु यहां लंदन में बसे हमारे भारतीय अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर होते हुए भी अपनी संस्कृति और संस्कारों को समेटे हुए भारतीयता की पहचान बनाए हुए हैं। जाना तो एक दिन सबको ही है परन्तु मैं कहूंगी मेरे पिता तुल्य जीजा जी बहुत ही भाग्यशाली थे जिन्होंने अपने बेटे की गोद में और पत्नी का हाथ पकड़े हुए प्राण त्यागे जो शिव योगी है जाते हुए भी उन्हें पाठ सुना रही थी।
भरा-पूरा परिवार उनके बेटे-बहुएं, पोते-पोतियां उनके आसपास मौजूद थे। जिस आत्मिक शांति से वो अंतिम सफर पर निकले यह उनके अच्छे कर्म, सादा जीवन, उच्च विचार, सबसे सहयोग व प्यार करना ही था। ईश्वर ऐसी विदाई सबको दे। विदेशों में भारतीय संस्कार, संस्कृति व परम्पराओं को जीवित रखने के लिए ऐसे परिवारों को साधुवाद देती हूं।