संपादकीय

कंगना रनौत के बिगड़े बोल

Aditya Chopra

भारतीय जनता पार्टी की हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से सांसद फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत का राजनीति से उतना ही सम्बन्ध है जितना कि किसी प्राथमिक विद्यालय के छात्र का 'साहित्य' से परन्तु इसके साथ यह सवाल भी जुड़ा हुआ है कि आजादी के 76 सालों बाद हमने अपनी संसद को क्या बना दिया है? दरअसल राजनीति में जब सड़कछाप बाजारू भाषा के इस्तेमाल पर तालियां बजाई जाने लगें तो समझ जाना चाहिए कि 'सियासत' को 'तिजारत' बनने से नहीं रोका जा सकता। सियासत पर बाजारमूलक अर्थव्यवस्था का कितना गहरा असर होता है, उसका भी यह एक उदाहरण है। क्योंकि बाजारमूलक अर्थव्यवस्था में वही माल जल्दी मांग की रफ्तार पकड़ता है जो ऊपर से बहुत चमकीला होता है। प्रश्न यह है कि क्या संसद में एेसे लोगों को चुनकर भेजा जाना चाहिए जिनका भारतीय राजनीति के बारे में ज्ञान बच्चों जैसा हो? कंगना रनौत के अनुसार भारत को आजादी 2014 में मिली थी। इसके साथ ही उनके अनुसार पंजाब में आतंकवाद की समस्या है। उनके एेसे बयान ही उनकी राजनैतिक बुद्धि के स्तर का खाका खींचते हैं। मगर उन्होंने तब सारी सीमाएं लांघ दी जब उन्होंने 2020-21 में राजधानी की सीमा पर चले किसान आन्दोलन के लोगों को बलात्कारी और हत्यारा तक अपने एक ताजा साक्षात्कार में बता दिया और यहां तक कहा कि जो कुछ भी बंगलादेश में हुआ है वह भारत में भी हो सकता था अगर हमारा नेतृत्व मजबूत न होता। क्या कंगना रनौत को बंगलादेश के इतिहास के बारे में थोड़ी भी जानकारी है और क्या उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम व इसकी जमीनी सियासत के बारे में लेशमात्र भी ज्ञान है?
यदि उन्होंने भारत की आजादी के आन्दोलन की एक भी कथा पढ़ी होती तो वह यह कभी न कहतीं कि भारत के पहले प्रधानमन्त्री नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे। बेशक नेताजी ने जापान के सहयोग से अंडमान निकोबार द्वीप में 1943 में आजाद हिन्द सरकार बनाई थी मगर उनसे बहुत पहले प्रथम विश्व युद्ध की बेला में भारत के ही एक अन्य सपूत राजा महेन्द्र प्रताप ने अफगानिस्तान पहुंच कर भारत की आरजी ( निर्वासित) सरकार काबुल में बनाई थी जिसके वह राष्ट्रपति थे और उनके प्रधानमन्त्री व विदेश मन्त्री दोनों भारतीय मुसलमान ही थे। मगर कंगना रनौत ने किसानों को हत्यारा व बलात्कारी बताकर पूरे भारत के लोगों का घनघोर अपमान किया है। उनकी यह गलती माफ करने लायक नहीं है क्योंकि 2020-21 में पूरे देश के किसान तीन नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे थे क्योंकि तब पूरे देश ने वह नजारा भी देखा था कि इन कानूनों से सम्बन्धित विधेयक को राज्यसभा में किस धींगा-मस्ती के साथ बिना मतदान कराये ही भारी शोर-शराबे व हंगामे के बीच पारित कराया गया था लेकिन नई लोकसभा सदस्य कंगना रनौत का कहना है कि जब इन तीन कृषि कानूनों को किसानों की मांगों के सामने झुकते हुए सरकार ने वापस लिया तो पूरा देश सकते में आ गया था। एेसा आकलन केवल वही व्यक्ति ही कर सकता है जिसने अपनी दुनिया किसी दूसरी दुनिया में बसा रखी हो। उनका यह कथन तो और भी अधिक अफसोसनाक है कि जब किसान आन्दोलन के दौरान शव लटक रहे थे तो बलात्कार की घटनाएं भी आन्दोलनकारियों द्वारा की जा रही थीं।
कंगना रनौत के अनुसार चीन व अमेरिका आदि विदेशी शक्तियां भारत में बंगलादेश जैसी परिस्थितियां पैदा करने की साजिश रच रही थीं। इस प्रकार के बयान सुन या पढ़कर भारत के गांव का सामान्य मतदाता भी अपना सिर पकड़ कर बैठ जायेगा लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने तब जाकर उनके ऊल- जुलूल बयानों से पल्ला झाड़ा है जब पानी बिल्कुल सिर से ऊपर ही निकलने लगा। यह मानना पूरी तरह गलत होगा कि फिल्मी कलाकारों को राजनीति की समझ नहीं होती। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने स्व. पृथ्वीराज कपूर को राज्यसभा के लिए नामांकित किया था तो उनकी योग्यता देखकर ही उन्हें यह सम्मान दिया गया था। स्व. पृथ्वीराज कपूर पूरे पेशावर शहर के पहले स्नातक थे और वह भी पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम दर्जे के। जब वह बीए पास हुए थे तो पूरे पेशावर शहर में छह घोड़ों की बग्घी में बैठाकर उनका जुलूस निकाला गया था। वह चाहते तो आईसीएस अफसर भी बन सकते थे मगर उन्होंने सांस्कृतिक नाटक क्षेत्र को चुना था। राज्यसभा में उनका भारत के राजनैतिक नेतृत्व के बारे में दिया गया बयान एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। देवानन्द एेसे राष्ट्रवादी फिल्मी कलाकार थे जिन्होंने 70 के दशक में अपनी अलग राजनैतिक पार्टी तक बनाई थी। उनके बाद स्व. दिलीप कुमार भी राज्यसभा में रहे और उन्होंने अपना दायित्व पूरी निष्ठा के साथ निभाया परन्तु कंगना रनौत के बहाने पूरा दोष फिल्मी कलाकारों पर मढ़ देना भी उचित नहीं है जबकि वास्तविक दोषी राजनैतिक दल होते हैं।
हम देख चुके हैं कि किस प्रकार रामायण और महाभारत जैसे टीवी सीरियलों के कलाकार लोकसभा सदस्य चुने गये थे मगर वे राजनैतिक मसलों पर अपनी जबान बन्द रखते थे। वर्तमान में भाजपा के टिकट पर दो बार से मथुरा की सांसद प्रख्यात अभिनेत्री हेमा मालिनी भी हैं। वह भी राजनैतिक मसलों पर कम बोल कर ही अपना काम चला रही हैं। हालांकि कुछ फिल्म अभिनेता सांसद जरूर राजनैतिक मामलों में अपने बयान देकर हंसी का पात्र भी बनते रहे हैं लेकिन कंगना रनौत एक ही झटके में आसमान की बुलन्दियां अपने वचन बोल कर प्राप्त करना चाहती हैं। अतः भाजपा ने उन्हें हिदायत दी है कि वह नीतिगत मामलों पर अपनी जबान बन्द रखें। भाजपा ने उनके बयान व्यक्तिगत विचार बताये हैं लेकिन भारत के किसान किस दरवाजे पर दस्तक देने जायेंगे जो उन्हें बलात्कारी व हत्यारा तक बता दिया गया ?