संपादकीय

कंगना रनौत की उलटबांसी

Rahul Kumar Rawat

भारत की राजनीति में फिल्मी सितारों की भूमिका वैसे तो आभूषणात्मक रही है परन्तु कुछ सितारे ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने संसद में पहुंच कर अपनी पृथक विशिष्ट छाप छोड़ी। इनमें सबसे ऊपर नाम स्व. पृथ्वीराज कपूर का लिया जा सकता है जिन्हें भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने राज्यसभा में नामांकित किया था। स्व. कपूर नाटकों से लेकर फिल्मी पर्दे तक पर अपनी अभिनय कला का विशिष्ट प्रदर्शन करने में विख्यात थे। उनका पूरा जीवन अभिनय को समर्पित रहा मगर वह राजनीति को बहुत गंभीर क्षेत्र मानते थे। इस सन्दर्भ में उनका राज्यसभा में दिया गया वह भाषण सबूत है जिसमें उन्होंने राजनैतिक नेतृत्व की गरिमा के बारे में बताया था और कहा था कि भारत के सन्दर्भ में यह कैसा होना चाहिए। वह राजनीति का नेहरू युग था जिसमें सबसे ज्यादा जोर लोक कल्याणकारी राज की तरफ रहता था। वैसे पृथ्वीराज कपूर पेशावर शहर के पहले स्नातक परीक्षा पास करने वाले छात्र थे और उन्होंने बी.ए. की परीक्षा पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की थी। वह अंग्रेजी राज का दौर था। अगर स्व. कपूर चाहते तो अपनी शैक्षिक योग्यता व मेधा को देखते हुए आईसीएस की परीक्षा में बैठ सकते थे मगर उन्होंने रंगमंच को चुना और अपने पिता की सलाह को स्वीकार नहीं किया।

मगर वर्तमान में जो भी फिल्मी सितारे पिछले 40 वर्षों के दौरान राजनीति में आये उनमें सिवाय दिलीप कुमार के अन्य कोई सितारा अपनी राजनैतिक प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर सका। 2024 के चुनावों में फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर जीत कर आयीं। मगर वह राजनीति में इससे पहले से ही अपने ऊल-जलूल बयानों की वजह से सुर्खियां बटोरने लगी थीं। चुनाव के दौरान भी उनके दिये गये साक्षात्कारों से यह स्पष्ट हो गया था कि वह स्वतन्त्र भारत की राजनीति के सुनहरे पन्नों पर कालिख पोतने के लिए बेहद बेचैन हैं। उन्होंने इससे पूर्व अपने एक बयान में कहा कि भारत को 1947 में आजादी 'भीख' में मिली थी। भारत तो 2014 में आजाद हुआ है। उनके इस बयान से स्पष्ट हो गया था कि कंगना अपनी पार्टी नेतृत्व की निगाहों में चमकने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।

अपने ऐसे बयानों से उन्होंने भारत की आजादी के पूरे आन्दोलन को ही नकार दिया और हर उस स्वतन्त्रता सेनानी का अपमान किया जिसने अंग्रेजी राज के विरुद्ध संघर्ष किया था और अंग्रेज पुलिस की लाठी- गोलियां खाई थीं। मगर उनके बयानों को जो लोग राजनैतिक रूप से अपरिपक्व मानते हैं वे गलती पर हैं क्योंकि कंगना भारत की राजनीति में गांधीवादी सिद्धान्तों के विरुद्ध बहुत करीने से ऐसे बयान बहुत सोच-समझ कर देती हैं। उन्होंने कहा था कि भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे। भारत में गांधी व नेताजी को आमने-सामने लाने के बहुत प्रयास होते रहे हैं। इस सन्दर्भ में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने तक की कोशिशें होती रही हैं। जबकि गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि नेताजी ने ही दी थी। यदि हम ब्रिटिशकाल में ही भारत की पहली 'आरजी सरकार' की बात करें तो वह पहली सरकार 1914 में अफगानिस्तान के काबुल में बनी थी जिसके मुखिया स्व. राजा महेन्द्र प्रताप थे। वह स्वतन्त्र भारत में कई बार लोकसभा के सदस्य भी चुने गये थे। मगर उनकी आरजी सरकार के प्रधानमन्त्री व विदेश मन्त्री दोनों भारतीय मुसलमान थे।

अतः कंगना के हर बयान में कोई न कोई एजेंडा जरूर होता है। कंगना ने भारत में चले किसान आन्दोलन की तुलना किन्हीं गुनहगारों के समूहों के तौर पर की थी और कहा था कि इस आन्दोलन के दौरान अनशन स्थल पर ही बलात्कार होते थे और शवों को पड़ों पर लटका दिया जाता था। इसमें भाग लेने वाले किसान थे ही नहीं। यह सर्वविदित है कि किसान आन्दोलन तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ पूरे 378 दिन चला था जिसके चलते सात सौ के लगभग किसान शहीद भी हो गये थे। किसान आन्दोलन तब समाप्त हुआ जब प्रधानमन्त्री ने यह घोषणा कर दी कि सरकार तीनों कानून वापस लेती है। मगर जब हरियाणा व जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं तो कंगना ने वक्तव्य दिया कि ये तीनों कृषि कानून किसानों के हित में थे अतः किसानों को ही सरकार से मांग करनी चाहिए कि वह इन्हें पुनः जीवित करके पूरे देश में लागू करे क्योंकि इनसे किसानों को बहुत बड़ा लाभ होगा। हरियाणा कृषि मूलक राज्य है और इसके अधिकतर लोग खेती-किसानी ही करते हैं। उनके इस बयान का विपक्षी दलों ने जमकर विरोध किया और कंगना के बयान के पीछे छिपे एजेंडे की भी अपनी तरह से समीक्षा की लेकिन स्वयं भाजपा में ही कंगना के बयान को लेकर खलबली मच गई और इसे भाजपा को नुक्सान पहुंचाने वाला बताया।

अतःभाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने इस बयान से पार्टी का पल्ला झाड़ते हुए इसे कंगना की व्यक्तिगत राय बताया। भाजपा ने कंगना के विभिन्न विवादास्पद बयानों से पहले इस तरह कभी भी पल्ला नहीं झाड़ा था। पहली बार उसे कंगना का विरोध करना पड़ा अतः कंगना रनौत को अपना वक्तव्य वापस लेते हुए कहना पड़ा कि मैं अब एक सांसद भी हूं, अतः मुझे अपनी पार्टी के नजरिये को ध्यान में रखकर ही अपना मत प्रकट करना चाहिए इसलिए मेरे बयान से यदि किसी को ठेस लगी है तो मैं खेद प्रकट करती हूं। इससे जाहिर होता है कि कंगना किस तरह अपनी पार्टी व पूरे राजनैतिक जगत का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं। मगर किसानों का दिल दुखाकर उन्होंने भारत का ही अपमान किया है लेकिन उनके लिए यह कोई नई बात नहीं है। सोचना भाजपा को है कि वह ऐसे सांसद को अपने मुकुट में लगा कर किस तरह लोगों की संवेदनाएं बटोर सकती है?