संपादकीय

पंजाब में ‘एकला’ चलो

Aditya Chopra

राजनैतिक रूप से पंजाब हमेशा सजग राज्य रहा है। आजादी के पहले संयुक्त पंजाब अपनी उस अद्भुत रंग- रंगीली व जोशीली संस्कृति के लिए प्रसिद्ध था जिसके छाते में सभी हिन्दू-मुसलमान व सिख मिल कर 'पंजाबियत' का झंडा बहुत ऊंचा फहराया करते थे। 1946 से पहले का पंजाब वह पंजाब था जिसमें धर्म या मजहब का अलग होना पंजाबियत पर कोई असर नहीं डालता था। मगर 1946 के आते-आते मुहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग ने इसकी फिजाओं में जहर घोल दिया जिसकी वजह से 1947 में भारत बंटवारे का अभिशाप इस राज्य को पूरे भारत में सर्वाधिक झेलना पड़ा। लाखों लोगों की लाशों और लाखों लोगों के निर्वासन के साथ जिन्ना ने पाकिस्तान की बुनियाद डाली। इसका प्रमाण यह है कि 1936 में जब अंग्रेजी राज के दौरान पंजाब असेम्बली के चुनाव कराये गये तो जिन्ना की मुस्लिम लीग को विधानसभा की सिर्फ दो सीटें मिली थीं जबकि पंजाब यूनियनिस्ट पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था जिसमें हिन्दू-मुसलमान व सिखों का बराबर का प्रतिनिधित्व था। आज के हरियाणा के 'सर छोटूराम' इसी पार्टी के थे। परन्तु 1946 के असेम्बली के दूसरे चुनाव होने के समय पूरे पंजाब को धर्म के तास्सुबी तेवरों में जिन्ना ने इस कदर बदला कि इन चुनावों में मुस्लिम लीग पहले नम्बर की पार्टी बन कर उभरी। भारत का बंटवारा इसी पृष्ठभूमि में हुआ। बंटवारे के बाद भारत के हिस्से में जिस पूर्वी पंजाब का हिस्सा आया उसमें देशी रियासतों की संख्या अच्छी- खासी थी अतः रजवाड़ों की रियासत को मिला कर पेप्सू राज्य बना और शेष भाग को पंजाब कहा गया। पेप्सू राज्य में अकाली दल का दबदबा था जबकि पंजाब में कांग्रेस का। 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने इन दो हिस्सों को मिलाकर एक पंजाब बनाया। मगर 1966 में इस पंजाब के तीन टुकड़े हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व पंजाब किये गये। तब तक राज्य में कांग्रेस का परचम फहराया करता था। परन्तु 1967 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ और राज्य में अकाली दल व जनसंघ की साझा सरकार गठित हुई जिसके मुखिया उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश श्री गुरनाम सिंह थे। जनसंघ( भाजपा) व अकाली दल में गठजोड़ तभी से लेकर अब तक चला आ रहा था जो दो वर्ष पहले ही टूटा। केन्द्र में अब भाजपा की सरकार है। परन्तु राज्य में भाजपा के पास अब कोई अपना एेसा कद्दावर नेता नहीं है जिसके वजूद की पहचान जनता में सर्व व्यापी हो। 1967 में स्व. बलराम जी दास टंडन और श्री किशन लाल के नेतृत्व में राज्य में भाजपा ठीक-ठाक सीटें जीतने में कामयाब रही। उस समय पंजाब में भाजपा के एक और नेता वीर यज्ञदत्त शर्मा भी हुआ करते थे जिनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर भी थी। परन्तु इन तीन नेताओं के बाद भाजपा अभी तक एेसा कोई नेता पैदा नहीं कर पाई है जिसकी छवि राज्य की जनता को व्यापक रूप से प्रभावित कर सके। भाजपा इस राज्य में कमोबेश रूप से गैर राजनैतिक व्यक्तित्वों के आसरे पर ज्यादा निर्भर रही है। फिल्मी सितारे विनोद खन्ना व सनी देओल इसके प्रमाण कहे जा सकते हैं। अकाली दल निश्चित रूप से पंजाब की एक राजनैतिक ताकत रहा है परन्तु 2024 के आते-आते इसका आकर्षण समाप्त प्रायः सा माना जा रहा है जिसकी असली वजह इस पार्टी का बादल खानदान के हाथों में सिमटना माना जा रहा है वरना यह पार्टी पूरे भारत की सर्वाधिक लोकतन्त्रवादी क्षेत्रीय पार्टी मानी जाती थी। 2024 के चुनावों के लिए भाजपा कोशिश कर रही थी कि इसका अकाली दल से टूटा गठबन्धन जुड़ सके परन्तु इसमें वह सफल नहीं हो सकी। अतः राज्य की 13 लोकसभा सीटों पर अकेली ही उतरेगी। भाजपा के पास फिलहाल कांग्रेस छोड़कर आये नेता ही प्रमुख माने जाते हैं जिनमें पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह व उनकी पत्नी परनीत कौर एवं स्व. बलराम जाखड़ के सुपुत्र हैं। पिछले चुनावों में भाजपा को राज्य से दो सीटें ही मिल पाई थीं जबकि पड़ोसी राज्य हरियाणा की सभी दस सीटों पर उसकी विजय हुई थी। पंजाब की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह आंख मिलाकर बात करता है और किसान आंदोलन ने यह सिद्ध किया कि यहां के लोग जब किसी बात को ठान लेते हैं तो वे अपनी बात मनवा कर ही चैन लेते हैं। वैसे पंजाब राष्ट्रवाद का भी कट्टर अलम्बरदार रहा है परन्तु इसका राष्ट्रवाद संकीर्ण दायरे में कैद नहीं रहा है। यहां के लोग महान गुरुओं की मानवतावादी दृष्टि के अनुशास्ता रहे हैं और उनका यही गुण उनके राजनैतिक चरित्र को भी प्रभावित करता है। यह ऐसा प्रदेश है जिसमें जन्मी मां का एक बेटा सिख होता है और दूसरा हिन्दू। लेकिन इस प्रदेश में आम आदमी पार्टी का दबदबा बढ़ना भी हमें कुछ सीख देता है। वह सीख यह है कि यहां के लोग सामाजिक स्तर से लेकर राजनैतिक स्तर तक प्रयोगधर्मी होते हैं। यही वजह है कि इस राज्य में आर्य समाज का प्रभाव एक जमाने में हिन्दुओं में बहुत बढ़ा था। यही फार्मूला राजनैतिक स्तर पर भी लागू होता है। अतः आगामी लोकसभा चुनावों में राज्य में त्रिकोणात्मक मुकाबला होगा। यह मुकाबला भाजपा, आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के बीच होगा। राज्य में कांग्रेस की विरासत बहुत चमकीली रही है जो स्व. प्रताप सिंह कैरों से लेकर दरबारा सिंह , ज्ञानी जैल सिंह व बेअंत सिंह तक की है। भाजपा ये चुनाव प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता के आसरे ही लड़ेगी। हालांकि आम आदमी पार्टी व कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर गठबन्धन है परन्तु पंजाब में इस गठबन्धन को नहीं रखा गया है। इस वजह से लड़ाई बहुत ही दिलचस्प मानी जा रही है।