संपादकीय

लद्दाख का सीमित विशेष दर्जा

Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 हटे अब पांच वर्ष होने जा रहे हैं जिसके तहत इस राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया गया था और साथ ही इस पूरे प्रदेश को दो केन्द्र शासित क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में भी विभक्त कर दिया गया था। इनमें से जम्मू-कश्मीर को केन्द्र सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने पर वचनबद्ध है। लद्दाख को वह केन्द्र शासित क्षेत्र ही रहने देना चाहती है परन्तु इसे कुछ विशेष सुविधाएं भी देना चाहती है जिससे यहां के स्थानीय जनजातीय व अन्य पहाड़ी लोगों की अपेक्षाएं पूरी हो सकें और स्थानीय स्तर पर उन्हें रोजगार व सांस्कृतिक अधिकार पाने में सुविधा हो। पिछले दिनों केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने लद्दाख के आन्दोलनकारी संगठनों जैसे कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस व लद्दाख सत्वाधिकार बोर्ड के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करके स्पष्ट किया कि सरकार लद्दाख में अनुच्छेद 371 को लागू करके यहां के लोगों को भारी राहत पहुंचा सकती है मगर इसे राज्य का दर्जा देकर अनुसूची छह का भाग नहीं बना सकती जिसमें किसी क्षेत्र के लोगों को स्व-प्रशासन के सत्वाधिकार पूरी तरह से मिले होते हैं। मगर छठी अनुसूची के अन्तर्गत पूर्ण राज्य को ही रखा जा सकता है और केन्द्र लद्दाख को केन्द्र शासित क्षेत्र रखते हुए ही इस पर अनुच्छेद 371 लागू करना चाहता है जिसमें किसी राज्य के विशिष्ट धार्मिक व सामाजिक समूह के लोगों को अपने सभी घरेलू नागरिक व सामाजिक मामले निपटाने की स्वतन्त्रता होती है और इसमें राज्य व केन्द्र सरकार कोई दखलन्दाजी नहीं कर सकती।
छठी अनुसूची में दर्ज राज्यों के अनुसूचित जनजातीय व विशिष्ट सामाजिक समूहों को यह अधिकार होता है कि वे इन समूहों की बहुसंख्या वाले जिलों व अंचलों अथवा क्षेत्रों में स्वायत्तशासी जिला परिषद व क्षेत्रीय परिषदों का गठन करें और इनकी मार्फत अपने लोगों को शासन दें। इन शासकीय अधिकारों में वन संरक्षण से लेकर कृषि तक आते हैं और गांवों से लेकर कस्बों का प्रशासन आता है साथ ही घरेलू ब्याह-शादी से लेकर सम्पत्ति के उत्तराधिकार के मामले व सामाजिक रीति-रिवाज तक भी आते हैं जिनमें वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद तक शामिल होता है। एक प्रकार से कबीलों में रहने वाले व जनजातीय लोगों के सभी मसले ये स्वायत्तशासी परिषदें ही देखने का काम करती हैं। यहां तक कि फौजदारी मामलों में भी फांसी की सजा से लेकर पांच साल से अधिक की सजा के मामलों पर भी ये परिषदें न्यायिक अधिकार से लैस कर दी जाती हैं, बशर्ते कि राज्य के राज्यपाल इसकी इजाजत दे दें। वास्तव में जब अनुसूची छह का गठन हमारे संविधान निर्मता कर रहे थे तो इसे 'संविधान के भीतर संविधान' कहा गया था। इस अनुसूची में राज्यपाल को विशेषाधिकार होते हैं कि वह राज्य विधानसभा के निरपेक्ष सीधे ऐसी जिला परिषदों व क्षेत्रीय परिषदों की मार्फत इन इलाकों का समूचा प्रशासन चलाये। इन परिषदों द्वारा किये गये कार्यों की सीधी जिम्मेदारी भी राज्यपाल पर होगी। फिलहाल असम, मेघालय, त्रिपुरा व मिजोरम इस सूची में आते हैं मगर नगालैंड नहीं आता है।
नगालैंड में अनुच्छेद 371 की विभिन्न धाराएं लागू होती हैं। इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल करने का लक्ष्य यही था कि किसी भी राज्य के विशिष्ट जनजातीय या धार्मिक व सामाजिक रूप से पृथक सांस्कृतिक रवायतें मानने वाले लोगों के हितों की रक्षार्थ उनके इलाकों में विकास या स्वायत्तशासी परिषदें गठित की जा सकें जिससे उनका जीवन बिना किसी दखलन्दाजी के आऱाम से चल सके। उदाहरण के तौर पर नगालैंड में 371 (ए) लागू होता है जिसके तहत भारत की संसद इस राज्य के बारे में कोई एेसा कानून नहीं बना सकती जो यहां के नागा लोगों के सामाजिक, धार्मिक या अन्य रीति-रिवाजों को प्रभावित कर सके। इसमें नागा लोगों की जमीन के मालिकाना हकों का हस्तांतरण तक शामिल होता है। ऐसा करने के लिए सरकार को राज्य विधानसभा की इजाजत लेनी पड़ेगी।
अनुच्छेद 371 की कई धाराएं हैं जिनके तहत पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के जनजातीय लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त हैं। जैसे मणिपुर व असम की विधानसभाओं में इन राज्यों के पहाड़ी व जनजातीय क्षेत्रों के विधायकों की विशेष समितियां गठित करने का प्रावधान है। सिक्किम विधानसभा में विभिन्न वर्गों की संस्कृति व सामाजिक अधिकारों को संरक्षण देने के लिए इन्हें विशेष आरक्षण देने का भी प्रावधान रखा गया है। अनुच्छेद 371 में पूर्वोत्तर में नये राज्यों में सृजन के बाद नये उपबन्ध जोड़े जाते रहे हैं जिनसे इन राज्यों के पर्वतीय व जनजातीय लोगों की परंपराओं व सामाजिक नियमों को संरक्षण मिल सके। गृहमन्त्री एेसा ही संरक्षण लद्दाख के लोगों को भी देना चाहते हैं मगर इस क्षेत्र की राष्ट्रीय सुरक्षा में बेहद संजीदा स्थिति को देखते हुए इसे अनुसूची छह का हिस्सा नहीं बनाना चाहते। इसके लिए सबसे पहले लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देना पड़ेगा मगर अनुच्छेद 371 में एक नई धारा जोड़ कर यहां के लोगों को वे सभी विशेषाधिकार मिल जायेंगे जो अन्य पर्वतीय राज्यों को कमोबेश प्राप्त हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com