ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के ऊपर एक और संकट आ पड़ा है। उनके अपने ही नेता जवाहर सरकार ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है न केवल उन्होंने पार्टी छोड़ी है, बल्कि उन्होंने राज्यसभा से भी इस्तीफा दे दिया, जहां वह 2021 में टीएमसी के टिकट पर चुने गए थे और अगर उनके बयान पर विश्वास किया जाए, तो वे राजनीति से संन्यास लेकर "सामान्य जीवन" जीना चाहते हैं। सिरकार के लिए "सामान्य जीवन" का अर्थ है ऐसा जीवन जिसमें राजनीित का कोई दखल न हो, और यह बात इसीलिए भी सही बैठती है क्योंकि सरकार किसी भी पैमाने से एक राजनीतिज्ञ नहीं हैं, न पैदाईशी और न ही पारिवारिक। अगर ममता बनर्जी न होतीं, तो शायद वह कभी संसद में नहीं होते। उनके अनुसार, ममता बनर्जी ने ही उन्हें राजनीति में आने और राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा था।
राजनीति में कदम रखने से पहले सरकार ने अपना अधिकतम कार्यकाल एक प्रशासन सेवक के रूप में बिताया था। पिछले तीन साल से वे संसद में तृणमूल पार्टी की तरफ से अहम मुद्दों पर जमकर लड़ते हुए दिखाई दिए हैं लेकिन अब स्तिथि बदल गयी है। पर्दा गिर चुका है और सरकार ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ दिया है। आज सिरकार उन्ही ममता बनर्जी पर, जो कल तक उनकी मार्गदर्शक रही थी, पर ऊंगली उठा रहे हैं।
सरकार ने पार्टी और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा तो दे दिया है लेकिन वे चुपचाप तो नहीं जा रहे हैं। वे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठा रहे हैं जिसने ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को सवालों के घेरे में ला खड़ा कर दिया है। जो पहले से ही कोलकाता में एक युवा प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार के मामले को सही तरीके से न संभालने को लेकर संकट में हैं।
सरकार का कहना है कि राज्य सरकार ने इस मामले को गलत तरीके से संभाला, उनकी कार्यवाही ''बहुत कम, बहुत देर" से हुई। कुछ नेताओं का अत्यधिक दबंग रवैया और भ्रष्टाचार, नेताओं के एक वर्ग की तानाशाही नीति, चिकित्सा माफिया का प्रभाव, ममता बनर्जी के परिवर्तनकारी नेता के रूप में विफलता से निराशा और सुधार की आवश्यकता है ही। इसलिए यह स्पष्ट है कि ममता सरकार केवल बलात्कार के एक मामले का सामना नहीं कर रही है। यह एक व्यापक समस्या है, जिसमें भ्रष्टाचार, साज़िशें और राज्य में चल रही गंदी राजनीति भी शामिल है।
इस चक्रव्यूह का एक एहम हिस्सा आर.जी. कर हस्पताल भी है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नेताओं और माफिया, विशेष रूप से चिकित्सा माफिया, के बीच गठजोड़ ने ममता बनर्जी की सरकार पे सवालिया निशान उठाया है। परन्तु यह किसी भी तरह से सरकारी आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर की नृशंस हत्या की गंभीरता को कम नहीं करता है। यह एक ऐसी त्रासदी है, जो डॉक्टरों की सुरक्षा पर सवाल उठाती है।
इस मामले में पीड़िता 9 अगस्त की रात अपनी ड्यूटी पर थी, जब रात के खाने के बाद वह अस्पताल के सेमिनार हॉल में आराम करने चली गई। अगली सुबह, उसका अर्धनग्न शव बरामद हुआ। प्रारंभिक रिपोर्टों में इसे सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला बताया गया था, हालांकि सीबीआई ने सामूहिक बलात्कार की संभावना को खारिज कर दिया है। बड़े पैमाने पर, यह राज्य की महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाता है, खासकर जब राज्य की मुख्यमंत्री एक महिला हैं, जो अपने राज्य में महिलाओं के कल्याण की योजनाओं पर गर्व करती हैं।
उदाहरण के लिए, महिलाओं के लिए 'लखीर भंडार योजना', जो महिलाओं को मासिक आर्थिक सहायता देती है, या 'रूपाश्री प्रकल्प योजना', जो गरीब परिवारों की बेटियों की शादी के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करती है। लेकिन यह सब महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दों के शोर में खो जाता है, जबकि एक समय पश्चिम बंगाल महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्यों में गिना जाता था। लेकिन यह पूरे मामले का सिर्फ एक ही पहलु है, दूसरा और अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा भ्रष्टाचार का है, जो कोलकाता के बलात्कार मामले के साथ केंद्र में आ गया है, सिस्टम के भीतर भ्रष्टाचार और राज्य के नेताओं और माफिया के बीच गठजोड़।
बनर्जी राज्य में फैले इस गंदे खेल को नकार नहीं सकतीं। अन्यथा, सरकार के कॉलेज के प्रधानाचार्य को निलंबित करने के बजाय, उन्हें दूसरे संस्थान में स्थानांतरित करने का निर्णय कैसे लिया गया? यह और कई अन्य विसंगतियां इस मामले को गलत तरीके से संभालने का प्रमाण हैं। गलत प्रबंधन की बात करें तो, ममता सरकार को अपने नेतृत्व में फैली भ्रष्टाचार और तानाशाही पर भी स्पष्टीकरण देना होगा। राज्य में मौजूदा शासन के दौरान भ्रष्टाचार के "अभूतपूर्व स्तरों" तक पहुंचने के आरोप लगे हैं। राशन घोटालों, अधूरे फ्लाईओवर गिरने, कोलकाता नगर निगम में भ्रष्टाचार के आरोप और मंत्रियों के जेल में होने जैसी घटनाएं इसका उदाहरण हैं। आखिरी मामले में, बनर्जी इसे टीएमसी के खिलाफ भाजपा द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर बदले की राजनीति का हिस्सा बताकर खारिज कर रही हैं।
दरअसल, कोलकाता में हुए बलात्कार के मामले को लेकर उठे विरोध प्रदर्शनों के बारे में भी बनर्जी ने आरोप लगाया है कि ये भाजपा सरकार की साजिश है, ताकि उनके शासन को अस्थिर किया जा सके। उनका कहना है कि केंद्र और वाम मोर्चा, पश्चिम बंगाल में अशांति पैदा कर रहे हैं। इसमें आंशिक सच्चाई हो सकती है, क्योंकि भाजपा ने इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश की, जबकि शुरुआत में यह कोलकाता में नागरिक समाज के आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, जब पुरुष और महिलाएं सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन यह केवल विरोध और एक मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समग्र रूप से शासन में गिरावट का मामला है।
कभी एक निडर नेता और सड़कों पर संघर्ष करने वाली ममता बनर्जी अब अपनी राजनीतिक मजबूती खोती नजर आ रही हैं। कभी साफ-सुथरी छवि वाली बनर्जी अब भ्रष्टाचार और गलत कार्यों की अनदेखी करने के आरोपों से घिरी हैं। इसके अलावा, पार्टी के भीतर भी दरारें हैं। रिपोर्टों के अनुसार, ममता बनर्जी के भतीजे और उनके दाहिने हाथ, अभिषेक बनर्जी, ममता बनर्जी से इस मामले में जल्दी कार्यवाहीन करने से नाराज़ हैं। स्थिति यह है कि अब "तुरंत कार्यवाही" करना जरूरी है। पार्टी और सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है। इसलिए, ममता को दोनों मोर्चों पर अपनी स्थिति सुधारनी होगी, इससे पहले कि जमीन उनके पैरों तले खिसक जाए। भाजपा, जो अवसर की तलाश में है, ममता की कमजोर स्थिति का फायदा उठाने की पूरी तैयारी में है।
इसलिए, अगर ममता बनर्जी सत्ता में बने रहना चाहती हैं, तो उन्हें खुद को बदलना होगा। उन्हें अपनी घटती विश्वसनीयता को फिर से स्थापित करना होगा और अपनी स्थिति को सुरक्षित करना होगा, ताकि वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को ताख पे रख सकें। उन्हें खुद को एक निडर और अविजयी नेता के रूप में फिर से स्थापित करना होगा। हालिया घटनाओं के मद्देनजर, यह एक कठिन कार्य है जिसको केहना तो आसान है पर करना मुश्किल होगा