प्रायः हर चुनाव से पहले प्रत्येक राजनीतिक दल अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी करता है। यह कोई औपचारिकता मात्र नहीं है बल्कि यह जनता के प्रति प्रतिबद्धता होती है जिसे राजनीतिक दल लिखित में प्रस्तुत करते हैं। लोकतंत्र में प्रत्येक राजनीतिक दल देश और समाज के विकास के लिए काम करता है परंतु हर किसी का तरीका अलग-अलग होता है और अपने तरीके से अपने सिद्धांतों के अनुसार यह विकास की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। वैसे तो प्रत्येक राष्ट्र का भी घोषणा पत्र होता है जिसे हम प्रस्ताव भी कहते हैं। भारत में आजादी प्राप्त करते ही यथार्थ प्रस्ताव पारित किया था जिसमें यह विचार रखा गया था कि आजादी मिलने पर भारत का लक्ष्य क्या होगा। इसी प्रकार स्थापित राजनीतिक विचारधाराओं का भी अपना घोषणा पत्र होता है। सबसे प्राचीन घोषणा पत्र कम्युनिस्ट पार्टी का माना जाता है जिसे कम्युनिस्ट घोषणा पत्र कहा जाता है। इसमें पूरी दुनिया में साम्यवाद लाने की प्रणाली को स्थापित किया गया है। इसी प्रकार 1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी तो इसका घोषणा पत्र लिखा गया था। आज की भारतीय जनता पार्टी का जो भी चुनाव घोषणा पत्र आता है उसके मूल में 1951 के घोषणा पत्र की घोषणाएं ही होती हैं हालांकि उनका प्रारूप बदला हुआ होता है।
जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो आजादी के बाद भारत राष्ट्र ने जो यथार्थ प्रस्ताव पारित किया वही मूल रूप से कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र कहा जा सकता है क्योंकि उसमें आजाद भारत की परिकल्पना की गई थी। इसी प्रकार आजादी के बाद जब समाजवादी पार्टी की स्थापना की गई तो उसका भी घोषणा पत्र लिखा गया और बाद के वर्षों में जब इस पार्टी का संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में विभाजन हुआ तो उन्होंने भी अपने-अपने घोषणा पत्र लिखें परंतु अभी तक 17 बार लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं और आसान चुनाव 18वीं लोकसभा के लिए होंगे। प्रत्येक लोकसभा चुनाव के लिए इसमें भाग लेने वाले दल अपने-अपने घोषणा पत्र जारी करते हैं। इन घोषणा पत्रों की विशेषता यह होती है कि अगले 5 वर्षों के लिए भारत या किसी राज्य का विकास किस प्रकार से होगा और इसके लोगों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए विशिष्ट राजनीतिक दल क्या उपाय करेगा और कौन सी नीतियां होंगी, इनका विवरण होता है।
कांग्रेस का चुनाव घोषणा पत्र आगामी 5 अप्रैल को जयपुर में जारी किया जाएगा। इस घोषणा पत्र में पार्टी अपनी तरफ से आम जनता के विकास और राष्ट्र के विकास की रूपरेखा प्रस्तुत कर सकती है। इसी प्रकार केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह करेंगे। राजनाथ सिंह भारतीय जनता पार्टी के विचारशील नेताओं में से एक समझ जाते हैं। वह मूल रूप से भारतीय जनसंघ से जुड़े रहे हैं और इसकी कार्य प्रणाली से वह इसकी विचारधारा से भलीभांति परिचित माने जाते हैं।
भाजपा के घोषणा पत्र में हमें यह देखना होगा कि वह व्यक्तिगत स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक समाज में देश का विकास किन नीतियों के तहत करना चाहती है। इस बारे में भारतीय संविधान को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए जो कि एक धर्मनिरपेक्षतावादी और समाजवादी नीतियों पर आधारित है। भारतीय संविधान के मूल में मानवतावाद है। पूरा संविधान मानवतावाद को आधार बनाकर के ही हमारे संविधान निर्माता ने लिखा है। अतः जो भी राजनीतिक पार्टी अपना चुनाव घोषणा पत्र लाती है उसके केंद्र में मानवतावाद का होना आवश्यक है। इसी प्रकार हम कांग्रेस के घोषणा पत्र को भी पढ़ेंगे जो कि आगामी 5 अप्रैल को जारी किया जाएगा। पार्टी के घोषणा पत्र की जो समिति बनी थी उसके प्रमुख पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री चिदंबरम थे। यह हमें स्वीकार करना चाहिए कि भारत में समाजवादी नीतियां बहुत हल्की हुई हैं क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था की नीतियां अब बाजार मूलक बन चुकी हैं। चाहे कांग्रेस पार्टी हो अथवा भाजपा दोनों ने ही इन नीतियों का सरकार में रहते अनुसरण किया है बल्कि हकीकत तो यह है कि मूल रूप से बाजार मूलक नीति भारतीय जनसंघ के 1951 में लिखे गए घोषणा पत्र का अंग है जिसे 1991 में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने सत्ता में रहते हुए स्वर्गीय पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में लागू किया। अतः इस मोर्चे पर कांग्रेस और भाजपा में हम ज्यादा अंतर नहीं कर सकते अंतर सिर्फ उन्हें लागू करने के तरीकों में हो सकता है।
भारतीय जनता पार्टी ने जो अपनी घोषणा पत्र समिति गठित की है उसमें पार्टी के 27 वरिष्ठ सदस्यों को रखा है जिनमें कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। इसी से अनुमान लगता है कि यह कवायद बहुत गंभीर कवायद होती है क्योंकि घोषणा पत्र किसी भी राजनीतिक दल का आईना होता है। घोषणा पत्र को पढ़कर सामान्य नागरिक यह समझ सकता है कि वह जिस पार्टी को वोट देने का मन बना रहा है उसकी नीतियों से उसकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति कैसी होगी परंतु शुरू-शुरू में स्वतंत्र भारत में घोषणा पत्रों को एक औपचारिकता भी माना गया था बल्कि हद तो यह हुई कि 90 के दशक में पैदा हुई बहुजन समाज पार्टी ने कभी चुनाव घोषणा पत्र जारी करने का प्रयास नहीं किया और हमेशा कहा कि घोषणा पत्रों को कोई मतदाता नहीं पढ़ता है। यह बहुजन समाज पार्टी की गफलत हो सकती है क्योंकि आज हम देख रहे हैं कि बहुजन समाज पार्टी रसातल की ओर जा रही है जबकि भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस तथा अन्य दल जो पूरी निष्ठा के साथ चुनाव घोषणा पत्र जारी करते रहे हैं वे राजनीति में प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं।