हर साल उत्तर भारत में और विशेष रूप में दिल्ली-पंजाब-हरियाणा में जहरीली हवा के बारे में अर्थात प्रदूषण को लेकर लंबे-चौड़े उपाय किये जाते हैं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार बहुत कुछ किया जा रहा है। प्रदूषण फैलने के बड़े कारणों में पराली का जलाया जाना और वाहनों की संख्या में वृद्धि बताया जाता है। कभी ज्यादा डीजल फूंके जाने को लेकर दोष दिया जाता रहा है। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि सरकार और प्रशासन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कागजों से लेकर जमीन तक हर उपाय करके हार चुके हैं लेकिन प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। दिवाली की रात अर्थात 31 अक्तूबर की शाम से लेकर रात तक दिल्ली में लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े। यह तब है जब दिल्ली सरकार ने पटाखों की बिक्री और इनके चलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। पटाखे चलाने वाले को सजा मिलेगी इसे लेकर जागरूकता अभियान भी चलाये गये लेकिन दिवाली की रात जब पटाखे चले और एयर क्वालिटी इंडेक्स अर्थात एक्यूआई इस अवधि के दौरान 900 पार कर गया तो अंदाजा लगाइये किस हद तक पटाखे चले होंगे।
मैं स्पष्ट तौर पर चुनौती के साथ कह सकती हूं कि हर किसी को प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर लड़ाई शुरू करनी होगी। बुरा न मानना शुरुआत तो घर से ही करनी होगी। किसी बुराई को अगर खत्म करना है तो शुरुआत घर से ही करनी होगी। पूरी दिल्ली ने सारी रात पटाखे चलाये गये हैं। दिल्ली बड़ी बेदर्द है। एक-दूसरे के दर्द से किसी को कोई चिंता नहीं। 250 एक्यूआई पार करने के बाद सब कुछ खराब और बहुत खराब हो जाता है लेकिन कल्पना करो कि दिल्ली में पटाखे चलाये जाने के वक्त दिवाली की रात यह लेवल 900 पार कर गया था। हमें एक-दूसरे के दु:ख-तकलीफ के बारे में और जिंदगी के लिए किसी की सांसें केवल पटाखे चलाकर नहीं छीनी। लेकिन, कड़वी बात सच्ची होती है। जब पटाखे चलाये गये होंगे तो क्या यह दूसरों की सांसे छीनने की कोशिश नहीं थी। अब आपको कुछ आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल दिवाली के दिन एक्यूआई 186 था और अगले दिन यह 359 पार कर गया। इस वर्ष की दिवाली से क्या कोई सबक लिया जा सकेगा। दिल्ली वालों को खुद ही समझना और संभलना पड़ेगा। अगर इंसानियत कोई चीज है तो हमें समझना भी पड़ेगा और संभालना भी पड़ेगा। सोशल मीडिया पर दिल्ली वालों की बेदर्दी को लेकर जिस तरह से चीजें वायरल हो रही हैं वो रोंगटे खड़े कर देती हैं। पुलिस के लोग इन चित्रों में लोगों को पटाखों से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं लेकिन लोग फिर भी पटाखे चलाते गये।
भगवान की बड़ी कृपा रही कि अभी धुंध पड़नी शुरू नहीं हुई और दिवाली से अगले दिन हवा चल पड़ी जिससे प्रदूषण छट गया लेकिन 350 का आंकड़ा पार कर जाना भी और वह भी अगले दिन तक बने रहना बहुत चिंताजनक है। भगवान से हाथ जोड़कर विनती है कि दिल्ली वालों को सद्बुद्धि दें जो दिवाली का जश्न केवल पटाखे चलाकर ही मनाते हैं। हर साल पूरे उत्तर भारत में विशेष रूप से दिल्ली में दशहरे से लेकर दिसंबर तक धुंध की मोटी चादर आसमान पर छा जाती है लेकिन अभी धुंध पड़नी शुरू नहीं हुई पर दम घोंटू हवा चल रही है। अगर इस पर नियंत्रण ना किया गया तो फिर परिणाम बहुत ही गंभीर होंगे। अब सरकारों को दोष नहीं दिया जा सकता। लोगोंं को खुद अपने ऊपर नियंत्रण रखना पड़ेगा।
कब तक एक-दूसरे को दोष देते रहोगे। अब तो हालत यह है कि जांच इस चीज को लेकर होनी चाहिए कि पटाखे क्यों बनाये जाते हैं। कहने वाले ने कहा है कसाई भी बकरा तब काटता है जब लोग उसे खाना पसंद करते हैं। मेरी जानकारी के अनुसार पटाखा फैक्ट्रियां चलाने वाले लाइसेंस नहीं लेते और वहां भी विस्फोट के कई हादसे होते रहते हैं। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में दिल्ली की आबो-हवा बुरी तरह से बिगड़ी हुई है। अमरीका, कनाडा, रूस और फ्रांस में एक्यूआई महज 2 से लेकर 5 तक होता है जबकि हमारे यहां 300-400 का लेवल आम बात है। आखिरकार अब साबित हो गया है कि दिल्ली की हवा को जहरीली बनाने के लिए वह लोग जिम्मेवार हैं जो पटाखे चलाते हैं। हालात और सबूत सबके सामने हैं। उपाय जरूरी है, नियंत्रण उससे ज्यादा जरूरी है और इच्छा शक्ति परम आवश्यक है। भगवान से भी दिल्ली को बचाने की प्रार्थना तभी कर सकते हैं जब हम खुद सुधरेंगे। आओ प्रदूषण के खात्मे के लिए कभी भी वह काम न करने की शपथ लें जो हवाओं को खराब करती है।