संपादकीय

मोहन भागवत का संदेश

Aditya Chopra

हिन्दू धर्म भारत की संस्कृति एवं आत्मा है। हिन्दू धर्म संयम, त्याग और बलिदान का धर्म है। इसमें हमेशा दूसरे धर्मों को सम्मान देने का काम किया है। वैसे तो प्रत्येक धर्म की अपनी मान्यताएं होती हैं, किन्तु विकृत मानसिकता वाले लोगों ने हिन्दू धर्म को मध्यकाल से ही नीचा दिखाने की कोशिशें कीं। भारत पर लगातार आक्रांताओं के हमले होते रहे और बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया गया। हिन्दू धर्म उदारता और सहनशीलता पर आधारित धर्म है। हिन्दू धर्म की सहिष्णुता को कमजोर मानकर हिन्दू धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कार्य किया जाता रहा। हिन्दुओं के लाखों मंदिर तोड़े गए। हिन्दुओं से अपने ही देश में हिन्दू होने पर 'जजिया' यानि कर लगाया गया।
सम्पूर्ण प्रकृति ही ईश्वर का शरीर है। इस प्रकार सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, नदी आदि को देवत्व प्रदान कर उनकी पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म इतना उदार है कि वो वसुधैव कुटुंबकम की कल्पना करते हुए सम्पूर्ण विश्व को कुटुंब की तरह देखता है। हिन्दुत्व हिन्दुओं को किसी एक प्रकार के रीति-रिवाज से नहीं बांधता। किसी एक दर्शन को मानने के लिए बाध्य नहीं करता, किसी एक मत को अंगीकार करने के लिए विवश नहीं करता। अगर हिन्दू कट्टर होता तो अन्य धर्मों के लोग भारत में नहीं दिखते। देश बंटवारे के समय पाकिस्तान में 20 प्रतिशत से ज्यादा हिन्दू थे लेकिन आज उनकी आबादी 2 प्रतिशत भी नहीं रही। बंगलादेश में हाल ही में हुए तख्ता पलट के दौरान हिन्दुओं को​ निशाना बनाया गया। उनके धर्म स्थल तोड़े गए। इसका अर्थ यही है कि हिन्दू न तो संगठित है और न ही सशक्त।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत ने नागपुर में विजयदशमी पर्व पर आयोजित रैली को सम्बोधित करते हुए हिन्दुओं के लिए बड़ा संदेश दे दिया। संघ प्रमुख ने अपने संदेश में बहुत से विषयों को छुआ, जिन पर सियासी घमासान भी शुरू हो चुका है लेकिन एक स्टेट्समैन के तौर पर उनके सम्बोधन पर न केवल हिन्दू समाज को बल्कि सभी राजनीतिक दलों को ध्यान देना चाहिए।
बंगलादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचार को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, ''दुर्बल रहना अपराध है, हिंदू समाज को ये समझना चाहिए। व्यवस्थित और संगठित होकर ही आप किसी चीज का मुकाबला कर सकते हैं। अगर आप संगठित नहीं रहते हैं, तो आपको मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।'' देश के दुश्मनों की ओर इशारा करते हुए मोहन भागवत ने कहा, ''भारत लगातार आगे बढ़ रहा है, लेकिन जब कोई भी देश जो आगे बढ़ रहा होता है तो उसकी राह में अडंगा लगाने वाले लोग भी बहुत सारे होते हैं। इसलिए दूसरे देशों की सरकारों को कमजोर करना दुनिया में चलता रहता है। अब हमारे पड़ोस में बंगलादेश में क्या हुआ हमने देखा, उस उत्पात के कारण हिंदू समाज पर फिर से हमला हुआ। वहां कट्टरपन की मानसिकता जब तक है, तब तक वहां हिंदुओं ही नहीं बल्कि अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले का खतरा बरकरार रहेगा।''
संघ प्रमुख ने हिन्दू समाज को संगठित होने का आह्वान कर कुछ भी गलत नहीं कहा। संघ प्रमुख हमेशा जो भी कहते हैं दो टूक शब्दों में कहते हैं और समय-समय पर केन्द्र में बैठी सरकार के कान खींचने से भी परहेज नहीं करते। लोकसभा चुनावों के बाद उन्होंने मणिपुर का उल्लेख करते हुए केन्द्र सरकार को एक बड़ा संदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि मणिपुर एक साल से शांति की राह देख रहा है, इस पर प्राथमिकता से उसको विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि हजारों सालों के भेदभावपूर्ण बर्ताव ने विभाजन की खाई बनाई और गुस्सा भी पैदा किया। उन्होंने कहा कि भगवान ने सबको बनाया है। भगवान की बनाई कायनात के प्रति अपनी भावना क्या होनी चाहिए? ये सोचने का विषय है। संघ प्रमुख ने कहा कि जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है, गर्व करता है किन्तु लिप्त नहीं होता है, अहंकार नहीं करता है, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है।
इस बार के विजयदशमी संदेश में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव कराए जाने का उल्लेख कर सांकेतिक रूप से मोदी सरकार की सराहना की है। उन्होंने यह भी कहा कि देश आगे बढ़ रहा है। तकनीक के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र और अन्य सभी क्षेत्रों में भारत आगे है और समाज की समझदारी भी बढ़ी है। उन्होंने कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ रेप सहित मर्डर मामले पर भी टिप्पणी की और कहा कि इतने गम्भीर अपराध के बाद भी कुछ लोगों ने अपराधियों को बचाने के घृणित प्रयास किये। इससे पता चलता है कि अपराध राजनीति और बुराई का संयोजन हमें किस तरह भ्रष्ट कर रहा है। उन्होंने विदेशी ताकतों का भी उल्लेख किया जो भारत के लोगों की भावना को भड़का रहे हैं। विजयदशमी के दिन ही संघ की स्थापना के 99 साल पूरे हो गए हैं। संघ की स्थापना डॉक्टर हेडगेवार ने 1925 में विजयदशमी के दिन ही की थी। विपक्ष भले ही संघ प्रमुख के भाषण की आलाेचना करे लेकिन देश के हिन्दू समाज को संघ प्रमुख के संदेश पर ध्यान देना ही होगा।