संपादकीय

कांवड़िये और दुकानों पर नाम

Aditya Chopra

भारत पूरी दुनिया का ऐसा अनूठा देश है जिसके हर हिस्से में हिन्दू-मुसलमान सदियों से प्रेम व भाईचारे के साथ रहते हैं और दोनों का एक-दूसरे के बिना गुजारा भी नहीं है। क्योंकि कारोबार से लेकर सामाजिक संरचना तक में दोनों की मिलीजुली भूमिका इस प्रकार है कि इंसानियत सर्वोपरि होकर दोनों के बीच के अन्तर्सम्बन्धों को निर्देिशत करती है। यह सनद रहना चाहिए कि स्वतन्त्रता के बाद जब भी इन दोनों सम्प्रदायों के लोगों के बीच खाई खोदने की कोशिश हुई तो भारत की न्यायपालिका ने खड़े होकर इस देश को मजहब के नाम पर विभाजित करने वाले षड्यन्त्रों का पर्दाफाश किया। कोई भी मुल्क उसमें रहने वाले लोगों से बनता है और भारत का संविधान कहता है किसी भी धर्म को मानने वाला कोई भी व्यक्ति भारत का सम्मानित नागरिक है। उसके साथ धर्म के आधार पर राजसत्ता भेदभाव नहीं कर सकती।
राज्य का यह पहला कर्त्तव्य होता है कि वह देश को मजबूत बनाने के लिए हर कीमत पर सामाजिक सौहार्द का वातावरण बनाये। मगर क्या सितम हुआ कि सावन में हरिद्वार से कांवड़ भर कर लाने वाले कांवड़ियों के यात्रा मार्ग पर आने वाले सभी खाने-पीने के ढाबों व दुकानों तथा फल आदि बेचने वाले रेहड़ी वालों को उत्तर प्रदेश शासन ने आदेश दिया कि वे अपनी दुकानों, ढाबों व रेहडि़यों पर अपना नाम लिखे। आखिरकार ऐसे आदेश का मन्तव्य क्या हो सकता है। जाहिर है कि ऐसे आदेश से कांवड़ियों को यह पता लगेगा कि कौन दुकानदार या ढाबा मालिक अथवा फलों की रेहड़ी लगाने वाला हिन्दू है या मुसलमान। क्या व्यापार या तिजारत का कोई धर्म होता है? पहले यह आदेश मुजफ्फरनगर की पुलिस ने ही जारी किया था उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आदेश को विस्तार देते हुए पूरे कांवड़िया मार्ग पर लागू कर दिया और देखा-देखी उत्तराखंड ने भी इसकी नकल कर ली। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश पर अन्तरिम रोक लगाते हुए दोनों राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी करके कहा है कि पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह दुकानदारों को अपनी दुकान या रेहड़ी के बाहर मालिक का नाम लिखने के लिए कहे।
इससे स्पष्ट है कि ऐसा आदेश संवैधानिक नहीं हो सकता क्योंकि इससे समाज में बंटवारा होता है। सरकारों का संवैधानिक दायित्व सभी धर्मों के लोगों के बीच भाईचारा स्थापित करने का होता है न कि उसे बांटने का। क्या पुलिस को मालूम है कि मुजफ्फरनगर जिले समेत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ कौन बनाता है। अधिसंख्य कोल्हू मुसलमान भाइयों के ही होते हैं और उन पर गुड़ बनाने का काम अधिकतर दलितों की रैदासी जाति के लोग ही करते हैं। उन्हें इस काम में महारथ हासिल होती है। क्या यह सत्य नहीं है कि मुसलमान नागरिक हिन्दुओं के हर मेले-ठेले में आधारभूत सेवाएं देते हैं। यहां तक कि हिन्दुओं की पवित्र अमरनाथ यात्रा का प्रबन्धन कश्मीरी मुसलमान ही करते हैं। भारत तो वह देश है जिसमें मोहर्रम के ताजियों का जुलूस हिन्दुओं की एक जाति हुसैनी ब्राह्मण भी निकालती है। पंजाब में तो यह परंपरा थी कि मोहर्रम के जुलूस के मौकों पर हिन्दू नागरिक शर्बत पिलाने की छालें तक लगाते थे। मगर कांवड़ यात्रा के दौरान हिन्दू-मुसलमानों की दुकानें चिन्हित करने से क्या लाभ होगा। लाभ उन लोगों को जरूर होगा जो हिन्दू-मुसलमान भाईचारे के दुश्मन हैं। कांवड़ियों के मन में ऐसी हरकतों से मोहब्बत की जगह नफरत का बीज ही रुपेगा और साम्प्रदायिकता को हवा मिलेगी। वरना इन इलाकों में लोग जैसे पहले कारोबार करते थे वैसे ही करते रहते तो पुलिस को क्या ऐतराज था।
क्या कोई बतायेगा कि धरती का धर्म क्या होता है जिसे हिन्दू व मुसलमान दोनों ही वर्ग के किसान जोत कर अनाज व अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन करते हैं। क्या कोई व्यक्ति बता सकता है कि वह जिस गेहूं की रोटी खा रहा है उसका उत्पादन हिन्दू ने किया या मुसलमान ने। ऐसा ही फल व सब्जियों के बारे में भी है। हिन्दुओं के भगवान शंकर तो औघड़ दानी हैं। जब उनके शिवालयों के भवनों का निर्माण कोई मुस्लिम मिस्त्री करता है तो क्या हिन्दुओं के लिए वह मन्दिर नहीं रहता।
जहां तक खाने-पीने का सवाल है तो ढाबों पर साफ लिखा होना चाहिए कि उनमें शाकाहारी भोजन मिलता है अथवा मांसाहारी। किसी हिन्दू का ढाबा यदि मांसाहारी है तो क्या वह अपने धर्म से पतित हो जायेगा? इसी प्रकार यदि कोई मुसलमान शाकाहारी ढाबा चलाता है तो क्या वह गैर इस्लामी हो जायेगा। हर नागरिक को छूट है कि वह जैसा भोजन खाना चाहे वैसा खाये और जिसकी दुकान से सामान खरीदना चाहे उससे खरीदे। इसमें राज्य की भूमिका कहां है? भारत हर धर्म के लोगों से मिल कर बना है। भारत में 2014 में मनमोहन सरकार के जमाने में रेहड़ी-पटरी वालों के लिए एक कानून बना था। उसकी जरा धूल तो छांट लीजिये सब साफ हो जायेगा। रेहड़ी या ठेले पर हिन्दू-मुसलमान मालिक की तख्ती लगा कर फल बेचने से क्या सब्जी व फल जैसी चीज भी हिन्दू-मुसलमान हो सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा कर पूरी दुनिया को सन्देश दिया है कि भारत ऐसी सभ्यता को मानने वाला देश है जिसकी तासीर इंसानियत है। जिसके संविधान के मूल ढांचे में ही धर्म निरपेक्षता समाहित है।