सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी जिनके द्वारा सिख धर्म की नींव रखी गई, उनका जन्म ननकाणा साहिब की पवित्र धरती पर हुआ जो कि आज पाकिस्तान में है। इसी तरह से अन्य गुरु साहिबानों के इतिहास से जुड़े भी अनेक धार्मिक स्थल ऐसे हैं जो कि 1947 मंे हुए देश के बंटवारे के चलते पाकिस्तान में रह गए। तब से लेकर आज तक सिख समाज के लोग जब भी अरदास करते हैं पंथ से बिछुड़ चुके गुरुद्वारों के खुले दर्शन के लिए परमात्मा से अरदास अवश्य करते हैं। करतारपुर साहिब जहां पर गुरु नानक देव जी ने जीवन का अन्तिम समय बिताया और स्वयं खेती करके ''किरत करो'' का सन्देश मानव जाति को दिया। उस स्थान के दर्शनों की मंजूरी भारत और पाकिस्तान की सरकार के द्वारा दी गई जिसके चलते संसार भर के सिखों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की जमकर प्रशंसा भी की। हालांकि अभी भी करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं को कई तरह की समस्याएं पेश आती हैं पर फिर भी उन्हें इस बात की तसल्ली है कि वह दर्शन कर सकते हैं।
इसी प्रकार अब ननकाणा साहिब के भी दर्शनों की मांग सिख समाज द्वारा उठाई जाने लगी है। शिरोमणी अकाली दल नेता परमजीत सिंह सरना के द्वारा जल्द ही इस विषय पर भारत और पाकिस्तान की सरकारों को मांग पत्र देने की बात कही जा रही है। उनका कहना है कि सरकारों को चाहिए कि इस प्रक्रिया को ऐसा बनाया जाना चाहिए कि सिख समाज के लोग जिनके पास पासपोर्ट है वह उसे लेकर जब चाहे दर्शनों के लिए जा सकें, वीजा यां किसी अन्य तरह की कोई रोकटोक उन्हें ना हो। हाल की स्थिति में पाकिस्तान की सरकार के द्वारा साल में चार बार सिख श्रद्धालुओं के जत्थों को दर्शनों की मंजूरी दी जाती है जिसमें वैसाखी, महाराजा रणजीत सिंह की बरसी, गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी पर्व और गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व शामिल है। पिछले कुछ सालों से जब से पाकिस्तान गुरुद्वारा कमेटी के द्वारा गुरु अर्जुन देव जी का शहीदी पर्व श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा तय तारीख के हिसाब से नहीं मनाया जाता, इसलिए अब इस मौके पर सिख श्रद्धालुओं का जत्था नहीं जाता। इस बार गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के मौके पर देशभर से 5793 श्रद्धालुओं ने पासपोर्ट दिये थे जिसमें से केवल 3000 के करीब श्रद्धालुओं को ही वीजा दिया गया और कई लोग तो पूरी तैयारी के साथ सामान लेकर जब पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके वीजा को सरकार ने नामंजूर कर दिया है जिसके चलते उन्हें काफी मायूसी हुई। यहां भी पाकिस्तान सरकार की कमी है अगर उन्हें ऐसा कुछ लगता भी है कि श्रद्धालुओं को वीजा देने में दिक्कत पेश आ रही है तो उन्हें समय रहते इसकी जानकारी दी जानी चाहिए। देखा जाए तो जब भारत और पाकिस्तान की सरकारों में श्रद्धालुओं के जत्थों पर समझौता हुआ होगा उस समय सिखों की आबादी मौजूदा समय की तुलना में काफी कम होगी इसलिए सिखों की आबादी के हिसाब से श्रद्धालुओं की गिनती में भी इजाफा होना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रद्धालू गुरधामों के दर्शन कर सकें।
इकबाल सिंह लालपुरा के आवास पर प्रकाश पर्व
गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व सभी धर्म और जाति लोग मनाते हैं शायद इसलिए ही उन्हें जगत गुरु भी कहा जाता है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हैदराबाद के गुरुद्वारा साहिब में गुरुपर्व के दिन पहुंचकर माथा टेका। वहीं उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गुरु साहिब के प्रति श्रद्धा दिखाते हुए गुरुद्वारा साहिब नतमस्तक हुए। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन एवं भाजपा केंद्रीय संसदीय बोर्ड और चयन समिति सदस्य इकबाल सिंह लालपुरा के द्वारा भी अपने आवास पर प्रकाश पर्व मनाते हुए धार्मिक समारोह का आयोजन किया जिसमें सभी धर्मों से प्रमुख लोगो को बुलाया गया। इसके साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष, केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य राज्य मंत्री श्री जॉन बारला, पंजाब से राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी सहित अनेक राजनीतिक शख्सियतें भी पहुंची। इससे पहले इस तरह का कार्यक्रम सुखबीर सिंह बादल, हरसिमरत कौर बादल के द्वारा अपने आवास पर किया जाता था मगर जब से पंजाब में उनकी सरकार गई और दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी भी उनके हाथ से निकल गई तब से उनके द्वारा कार्यक्रम नहीं करवाया जाता। इकबाल सिंह लालपुरा सिखों को भाजपा के समीप लाने में एक कड़ी बनते दिखाई दे रहे हैं इसलिए शायद पिछले कुछ दिनों से सिख मसलों को वह पूरी गंभीरता से लेते हुए उनके स्थाई हल के भी प्रयास कर रहे हैं। इसका लाभ पार्टी को पंजाब में अवश्य हो सकता है। उनके पुत्र अजय सिंह लालपुरा पंजाब में रुप नगर जिला के अध्यक्ष भी हैं।
पंजाब को लेकर अभी पार्टी इसलिए भी दुविधा में दिखाई दे रही है क्योंकि पार्टी का एक वर्ग किसी भी सूरत में शिरोमणी अकाली दल से समझौता करने के मूड़ में नहीं है तो दूसरा वर्ग अभी भी चाहता है कि सिखों के वोट लेने हैं तो बिना समझौता हुए वह संभव नहीं है। अगर इकबाल सिंह लालपुरा अपनी रणनीति में कामयाब हो जाते हैं तो निश्चित तौर पर भाजपा पंजाब में बादल दल को छोड़कर अन्य अकाली दलों को साथ लेकर अपने दम पर चुनाव लड़ने का जोखिम उठा सकती है।
– सुदीप सिंह