संपादकीय

योगी राज का नया आगाज़

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने राज काज में केंद्र सरकार की अनावश्यक दखल नहीं चाहते, ताजा मामला राज्य के नए डीजीपी के चयन से जुड़ा है।

Trideeb Raman

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने राज काज में केंद्र सरकार की अनावश्यक दखल नहीं चाहते, ताजा मामला राज्य के नए डीजीपी के चयन से जुड़ा है। वैसे भी यूपी में पिछले 2 सालों से लोगों ने 4 अस्थायी डीजीपी को काम करते देखा है। सो, अब योगी सरकार ने खम्म ठोक कर कह दिया है कि ‘अब डीजीपी का चयन राज्य सरकार ही करेगी।’ इसके चयन समिति में हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज, यूपीएससी के एक सदस्य, यूपी लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनके कोई नामित व्यक्ति, एडिशनल चीफ सैक्रेटरी या प्रिंसिपल सैक्रेटरी, गृह विभाग के एक प्रतिनिधि और एक रिटायर्ड डीजीपी शामिल होंगे।

यूपी सरकार के इन नए नियमों के अनुसार वही पुलिस अधिकारी इस पद के योग्य होंगे जिनकी कम से कम छह महीने की नौकरी बची हो। यह भी तय हुआ है कि नए डीजीपी का कार्यकाल कम से कम 2 वर्षों का होगा। इससे पहले की व्यवस्था में मौजूदा डीजीपी के रिटायर होने के 3 महीने पहले राज्य के सबसे सीनियर अफसरों की लिस्ट यूपीएससी को भेजी जाती थी, इन अफसरों की वरिष्ठता, योग्यता, सर्विस रिकार्ड, फील्ड अनुभव व ईमानदारी को पैमाने पर रखते हुए यूपीएससी तीन अफसरों के नामों की लिस्ट अपनी ओर से राज्य सरकार को भेजता था जिसमें से ही राज्य सरकार नए डीजीपी का चुनाव करती थी।

वर्तमान में अन्य राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप ही होती है। यह पुलिस एक्ट 17 राज्यों में लागू है, पर यूपी इसको नहीं मानता। 1991 बैच के आईपीएस अफसर प्रशांत कुमार को राज्य का कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने के लिए योगी सरकार ने कम से कम 16 अधिकारियों की वरिष्ठता को दरकिनार कर दिया। शायद यह नया नियम भी प्रशांत कुमार जैसे पसंदीदा अधिकारियों को राज्य का पुलिसिया सिरमौर बनाने के लिए हो।

अपनी-अपनी टंकार

पिछले कुछ समय से तकनीकी खुफिया इकाई के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर नार्थ व साउथ ब्लॉक की खुली जंग सामने आ रही है। टैक्नीकल इंटेलिजेंस यूनिट के नए मुखिया को लेकर पिछले काफी वक्त से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार व गृह मंत्रालय में सहमति ही नहीं बन पा रही है। फिलहाल आईपीएस अरुण सिन्हा इस इकाई के प्रमुख हैं, उन्हें 6 महीने का विस्तार भी दिया गया था, पर वह अवधि भी 31 अक्तूबर 24 को समाप्त हो गई, अब एक और नया सेवा विस्तार देकर उनके कार्यकाल को इस वर्ष 31 दिसंबर तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इस पूरे मामले में पेंच यह है कि श्री सिन्हा के स्थानापन्न के लिए जो नाम भेजा जाता है, वह नाम गृह मंत्रालय की ओर से रिजेक्ट हो जाता है। जो नाम गृह मंत्रालय भेजता है उसे हरी झंडी नहीं मिलती। कहते हैं कि दो पसंदीदा अधिकारियों मनोज यादव और रश्मि रंजन स्वैन के नाम भेजे थे, उन्हें अलग-अलग कारणों से रिजेक्ट कर दिया गया। फिर गृह मंत्रालय ने अपनी ओर से अनिश दयाल सिंह का नाम भेजा जिस पर सहमति नहीं आई। फिलहाल रेस में दो नाम शामिल बताए जा रहे हैं, उसमें से एक नाम पूर्व ‘रॉ’ चीफ सामंत गोयल का है और दूसरा सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर सबोध कुमार जायसवाल का है, दरअसल निर्णायक पक्ष यह चाहता है कि इस पद की महत्ती जिम्मेदारी किसी रिटायर्ड अफसर की जगह एक सेवारत अधिकारी को सौंपी जाए।

एकाधिकारवादियों को राहुल की चुनौती

पिछले दिनों नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का हिंदी व अंग्रेजी अखबारों में एक लेख प्रकाशित हुआ, इसके छपते ही सियासी घमासान परवान चढ़ गया। अपने इस लेख में राहुल लिखते हैं कि अपनी व्यापारिक शक्ति से नहीं बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की आवाज़ एक सुनियोजित कुचक्र से कुचली थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने तब के राजा-महाराजाओं को डराया-धमकाया, जरूरत पड़ने पर उन्हें ​िरश्वत दी और तब भारत पर कब्जा कर पाने में सफल रही, जैसा कि राहुल ‘ए न्यू डील फॉर इंडियन बिजनेस’ नामक अपने लेख में लिखते हैं कि ‘भले ही उस ईस्ट इंडिया कंपनी ने 150 साल पहले अपना परिचालन बंद कर दिया हो, पर तब जो उसने भय पैदा किया था आज वह डर फिर वापिस लौट आया है।

एकाधिकारवादियों की एक नई नस्ल ने उसकी जगह ले ली है।’ जब इस बात पर खूब हंगामा मचा, खास कर भाजपा ने जब खूब हाय-तौबा मचाई तो राहुल ने कहा-मैं एक या दो या फिर गिने-चुने पांच लोगों द्वारा व्यवसाय पर वर्चस्व का विरोधी हूं। समझने वाले समझ गए थे कि राहुल का इशारा किस ओर है। जैसे ही यह एक लेख अखबारों में छपा एक बड़े केंद्रीय मंत्री का बिजनेस घरानों को फोन चला गया कि ‘वे सरकार के कार्यक्रमों की तारीफ में अच्छी बातें सोशल मीडिया पर पोस्ट करें।’

ट्रंप को भी मिल गया है उनका ‘ए’

डोनाल्ड ट्रंप के आने से बाईडन प्रशासन और सिलिकन वैली दोनों ही जगह घनघोर उथल-पुथल मची है। अमेरिका के कई बड़े बिजनेस ग्रुप जो अब तलक डेमोक्रेट्स के नीले रंग में रंगे थे, अब वे लाल-लाल होने को मचल रहे हैं। कई व्यापारिक समूहों को खुल कर कमला हैरिस के पक्ष में व ट्रंप के विरोध में बोलने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

यह भी माना जा रहा है कि जनवरी में जाते-जाते भी बाईडन सरकार यूक्रेन को एक बड़ा अनुदान देकर जाने वाली है, क्योंकि वह जानती है कि ट्रंप का रुख यूक्रेन के लिए क्या है। वहीं ट्रंप को वापिस सत्ता में लाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले एलॉन मस्क ट्रंप के नए ‘ब्लू आईड ब्वॉय’ बन कर उभरे हैं, यह भी माना जा रहा है कि ट्रंप के नए राज में मस्क का साम्राज्य दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करेगा।

यह भी माना जा रहा है मस्क को सरकारी कामकाज और फंड की कुशलता से जुड़े आयोग डीओजीई का नया मुखिया नामित किया जा सकता है। जैसा कि अमेरिका में तेजी से प्रचलित होते नए मीम में ट्रंप और मस्क की जोड़ी को प्राचीन रोम के योद्धाओं की तरह दिखाया गया है, इस मीम में दोनों को योद्धाओं की पोशाक में अमेरिका के रक्षक के तौर पर पेश किया जा रहा है। अमेरिकियों का मानना है कि देश की सुरक्षा के लिए मस्क की तकनीकी सर्वोच्चता और ट्रंप की सत्ता दोनों ही बेहद जरूरी है।

...और अंत में

अपने पिता की हत्या के 18 साल बाद उनकी बेटी व भाजपा की पूर्व सांसद पूनम महाजन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिख कर सियासी तूफान ला दिया है कि ‘उनके पिता प्रमोद महाजन की हत्या एक गहरी साजिश थी जिसकी जांच होनी चाहिए।’ अपनी ही पार्टी भाजपा में दरबदर कर दी गई पूनम महाजन का ऐन महराष्ट्र चुनाव के बीच यह बड़ा धमाका कई बड़े सवाल उठाता है। सनद रहे कि वाजपेयी व अडवानी दौर की भाजपा के एक प्रमुख सिपहसालार रहे प्रमोद महाजन की मुंबई स्थित उनके आवास पर ही 2006 में उनके भाई प्रवीण महाजन के हाथों उनकी हत्या हो गई थी। अब भाजपा के लोग ही सवाल उठा रहे हैं कि ‘18 साल तक इस मुद्दे पर चुप रहने वाली पूनम क्या सिर्फ इस वजह से यह मुद्दा उठा रही हैं कि पार्टी ने उन्हें हाशिए पर डाल दिया है? 24 के लोकसभा चुनाव में उन्हें पार्टी का टिकट भी नहीं दिया गया, ना ही संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। अगर वाकई पूनम के पास इस बात का कोई प्रूफ है तो वह इन दस्तावेजों को इसे जांच के लिए पार्टी को सौंपे।