संपादकीय

नरगिस को नोबल शांति पुरस्कार

Aditya Chopra

शिया बहुल ईरान की जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को इस वर्ष का नोबल शांति पुरस्कार दिया जाना न सिर्फ महिलाओं के लिए बल्कि हर एक के मानवाधिकार के लिए आवाज बुलंद करता नजर आ रहा है। यह पुरस्कार सत्य और जिम्मेदारी के प्रति नरगिस मोहम्मदी के प्रति समर्पण का सम्मान है। नरगिस मोहम्मदी ने पत्रकार के तौर पर ईरानी महिलाओं के साथ हर पीड़ा को झेला है और उन्हें प्रतिष्ठित नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा जाना इस बात का संकल्प है कि उनकी आवाज दुनिया में तब तक गूंजती रहेगी जब तक ईरान में महिलाएं सुरक्षित और स्वतंत्र न हो जाएं। इस समय नरगिस मोहम्मदी का पता है जेल। सजा की अवधि है 31 वर्ष और उनके शरीर पर हैं 150 कोड़ों के निशान। नरगिस ने ईरान में महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए भारी कीमत चुकाई है। 2022 में 22 साल की कुर्द लड़की महसा अमीनी की हिजाब न पहनने पर पुलिस द्वारा दी गई यातना से मौत हो गई थी। उसकी मौत के बाद पूरे ईरान में जबरदस्त प्रदर्शन हुए थे। हालांकि हिजाब के खिलाफ क्रांति मध्यम भले ही पड़ गई है, पर अभी खत्म नहीं हुई है। नरगिस मोहम्मदी ने ही सबसे पहले महसा अमीनी की मौत की खबर ब्रेक की थी। उन्होंने हिजाब के​ खिलाफ लगातार अपनी कलम के माध्यम से आवाज बुलंद की। ​जिसके कारण महिलाओं के नेतृत्व वाली ऐतिहासिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ। महिलाओं के आक्रोश से ईरान की सत्ता भी कांप उठी थी।
नरगिस ईरान की सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों पर किए गए अत्यचारों के बीच भी अपने आंदोलन से नहीं भटकीं। इस आंदोलन में मारे जाने वाले आम नागरिकों की संख्या 500 को पार कर चुकी है। घायलों की संख्या भी हजारों में है। ईरान की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां तक चलाईं। हिजाब विरोधी इन प्रदर्शनों को बंद कराने के लिए पुलिस अभी तक 20 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। हिजाब विरोध और महिलाओं के अधिकारों की मांग करते हुए प्रदर्शनकारियों ने मोहम्मदी की इस लड़ाई को आगे बढ़कर अपना समर्थन दिया। इतना ही नहीं, पुलिस ने नरगिस मोहम्मदी पर बहुत से अन्य आरोप भी मढ़े हैं। उन पर सरकार विरोधी दुष्प्रचार फैलाने का आरोप है। नरगिस 'डिफेंडर ऑफ ह्यूमन राइट सेंटर' की उपाध्यक्ष हैं। इस गैर सरकारी संगठन को उन शिरिन एबादी ने गठित किया था जिन्हें 2003 का नोबल शांति पुरस्कार मिला था। नरगिस भी उनकी ही तरह महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों और उनके प्रति होने वाले भेदभावपूर्ण बर्ताव के विरुद्ध भी मुखर रही हैं।
ईरान में महिलाएं 1979 से पहले अपने बालों में हवाओं को महसूस कर रही थीं। शाह मोहम्मद रजा पैहलवी के शासन में महिलाओं को मर्जी के कपड़े पहनने की आजादी थी। वह फुटबॉल मैच देख सकती थीं। कभी स्लिम सूट में बोल्ड नजर आने वाली महिलाएं आज घुटघुट कर जीवन बिता रही हैं। बिकनी से बुर्के तक आई महिलाएं खुली हवाओं के लिए अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं, जिन्हें संस्कार सिखाने के नाम पर मोरेलिटी पुलिस जबरन गिरफ्तार कर बेदर्दी से पीटती है। महिलाओं को ढीला ​हिजाब पहनने के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। महिलाओं पर अनेक पाबंदियां लागू की गई हैं। यद्यपि शासक तानाशाह थे लेकिन उनके राज में समाज में काफी खुलापन था। तब अर्थव्यवस्था भी फलफूल रही थी।
1979 में ताकतवर मजहबी समूह ने शाह और उनके सुधारों को चुनौती दी और ऐसी क्रांति हुई कि शाह की सत्ता हिल गई। शाह ईरान से बाहर भाग गए। तब मजहबी लोगों ने सत्ता सम्भाली और कट्टरपंथी विचारों को लागू कर ​िदया। नए शासन तंत्र के सुप्रीम लीडर थे आयातुल्लाह खुमैनी। वो ताउम्र के लिए ईरान के राजनीतिक और धार्मिक नेता चुने गए। उसके बाद से ही आज तक महिलाओं की स्थिति बदत्तर हो गई। जिस कानून के तहत महिलाओं को शादी, तलाक और विरासत के समान अधिकार हासिल थे, उसे रद्द कर दिया गया। महिलाएं क्या पहनेंगी उनके परिधान भी तय किये गए। महिलाओं की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया और इस्लामिक सिस्टम की सुरक्षा के लिए आईआरजीसी का गठन किया गया। धार्मिक कोर्ट स्थापित किए गए और शरिया कानून का सख्ती से पालन कराया जाने लगा। ईरान में महिलाओं पर नजर रखने के लिए वर्ष 2005 में मोरेलिटी पुलिस या गश्त-ए-इरशाद का गठन किया गया था। तब से पुलिस अक्सर सड़कों पर महिलाओं को खींचती मिल जाती है। पुलिस बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं को हिजाब न पहनने के लिए गिरफ्तार करती है, जिसमें अनेक को जान भी गंवानी पड़ी है। कई बार ऐसा होता है जब एक त्रास्द मौत देश को हिला कर रख देती है। जिसमें पहले से ही शिकायतें और गुस्सा भरा होता है। ऐसी ही मौत महसा अमीनी की थी। नरगिस मोहम्मदी ने लगातार लेखन कर ईरान और दुनियाभर में महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज बुलंद की, जिसके चलते उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ रही है। नोबल शांति पुरस्कार से दुनिया भर का ध्यान ईरान की महिलाओं की स्थिति की ओर गया है। भविष्य में एक और क्रांति की जरूरत है। इसके लिए दुनिया भर की महिलाओं को एक साथ आना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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