संपादकीय

अब बंगाल को बांटने की तैयारी

Shera Rajput

'तू कैसा नाखुदा है जालिम जो कश्तियां डुबोने का शौक रखता है
पर भूल मत कि ऊपर एक खुदा है
जो बचाने का शौक रखता है'

पिछले सप्ताह जब बंगाल भाजपा प्रमुख व केंद्रीय ​िशक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार की अगुवाई में पश्चिम बंगाल से विजयी रहे दर्जनभर भाजपा सांसद प्रधानमंत्री मोदी से मिले तो मजूमदार ने एक दूर की कौड़ी खेलते हुए पीएम के समक्ष अपना एक 'प्रेजेंटेशन' पेश किया, सूत्रों की मानें तो यह 'प्रेजेंटेशन' पूरी तरह से पश्चिम बंगाल विभाजन के नए आइडिया पर केंद्रित था। इस प्रस्तुतिकरण में बताया गया था कि अगर पश्चिम बंगाल से नार्थ बंगाल को अलग कर उसे एक केंद्र शासित राज्य का दर्जा दे दिया जाए और इस नवगठित राज्य को उत्तर पूर्वी राज्यों का ही एक हिस्सा मान लिया जाए तो फिर बंगाल में तृणमूल व उसकी नेत्री ममता बनर्जी की धमक को कम किया जा सकता है।
आपको याद दिला दें कि नार्थ बंगाल हमेशा से संघ का गढ़ रहा है, संघ ने यहां जमीनी स्तर पर अपनी जड़ें जमा रखी हैं। 2024 के आम चुनाव में भी जब बंगाल में भाजपा की सीटें 18 से घट कर मात्र 12 रह गई तब भी नार्थ बंगाल में भगवा पार्टी का जलवा बरकरार रहा, भाजपा ने यहां की कुल 8 में से 6 सीटें जीत ली थीं। यदि भाजपा नार्थ बंगाल को वेस्ट बंगाल से अलग करवाने में कामयाब हो जाती है तो इससे दक्षिण बंगाल के 'रार आंदोलन' को भी नई हवा मिलेगी। वैसे भी भाजपा शुरू से ममता पर यह आरोप लगाती आई है कि 'उन्होंने हमेशा नार्थ बंगाल के साथ एक सौतेला रवैया अपनाया है, विकास कार्यों में भी इसके साथ भेदभाव किया है,' पर बंगाल भाजपा के एक अन्य प्रमुख नेता शुभेंदु अधिकारी बंगाल बंटवारे के खिलाफ बताए जाते हैं, उनका कहीं शिद्दत से मानना है कि राज्य की बंगाली जनता इस बंटवारे के लिए कभी तैयार नहीं होगी और यह एक तरह से बर्रे के छत्ते में हाथ डालने जैसा होगा।
1905 में बंगाली समाज ऐसा ही एक बंटवारा पहले भी देख चुका है और बंगभंग आंदोलन की उग्रता ने अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए कहीं न कहीं मजबूर भी किया था। यह और बात है कि बंगाल की भगवा राजनीति में सुकांत व शुभेंदु दोनों एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते, चुनांचे सुकांत की इस पहल का अधिकारी को वैसे भी विरोध करना था। उड़ती चिड़िया के पंख गिनने में माहिर ममता ने भाजपा की इस संभावित चाल की पड़ताल पहले कर ली है और उन्होंने अपने अंदाज में अभी से शोर मचाना शुरू कर दिया है, ममता भाजपा को अलगाववादी करार देते हुए अपने निजी राजनैतिक लाभ के लिए उस पर पश्चिम बंगाल को बांटने का आरोप लगा रही है, आने वाले दिनों में यह मामला और भी तूल पकड़ सकता है।
क्या गुजरात का 'सर्जिकल स्ट्राइक' अब यूपी में दुहराया जाएगा?
भाजपा शीर्ष अपने लाख प्रयासों के बावजूद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नाथने में कामयाब नहीं हो पा रहा है। योगी हैं जो इन तमाम विसंगतियों से ऊपर उठ कर अपने लिए कट्टर हिंदुत्व का एक नया 'नैरेटिव' गढ़ने में लगे हैं। वे एक रबर स्टैंप सीएम की तरह आलाकमान के समक्ष नतमस्तक होने को कतई तैयार नहीं दिखते। सो, भाजपा शीर्ष से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि यूपी की 10 सीटों पर उपचुनाव संपन्न होने के बाद योगी को नापने की नई कवायद हो सकती है। यह कवायद ठीक वैसी ही होगी जैसा सर्जिकल स्ट्राइक भाजपा शीर्ष ने गुजरात में किया था। जब एक झटके में वहां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष समेत तमाम पदाधिकारियों ने और राज्य मंत्रिमंडल ने अपना इस्तीफा दे दिया था, तब राज्य के तत्कालीन भगवा मुख्यमंत्री को भी मजबूर होकर अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। मुमकिन है यही प्रयोग उपचुनावों की समाप्ति के बाद यूपी में भी दुहराया जाए, वैसे में बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी।
यूपी में भाजपा शीर्ष सपा के पीडीए की काट ढूंढ रहा है, भाजपा की रणनीति यूपी में किसी ओबीसी या फिर दलित चेहरे को यहां का नया सीएम बनाने की है। भाजपा शीर्ष इस मसले पर अभी से संघ से गुफ्तगु करने में लगा है ताकि संघ खुल कर योगी के समर्थन में सामने न आ सके।
कमोबेश यह तस्वीर वाजपेयी के जमाने की लग रही है, जब वाजपेयी दिल्ली में भाजपा के उदारवादी चेहरे के साथ पीएम की कुर्सी पर विराजमान थे। योगी अपने को इसी कट्टर हिंदुत्व की प्रयोगशाला में तपा रहे हैं।
संघ से रिश्ते सुधारना चाहता है भाजपा शीर्ष
चुनाव के अधबीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के इंडियन एक्सप्रेस अखबार को दिए उस इंटरव्यू को अब भाजपा शीर्ष बिसरा देने की चाहत रखता है, जिसमें नड्डा ने बेहद सुनियोजित तरीके से खम्म ठोक कर कह दिया था कि 'अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं रह गई है।' आने वाले हरियाणा, महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा को संघ के समर्थक की बेहद दरकार आन पड़ी है, भाजपा शीर्ष को लग रहा है कि इन राज्यों के चुनावों में संघ की अति सक्रियता के बगैर उनकी नैया वहां पार नहीं होने वाली। सो, सुलह- सफाई का रास्ता भाजपा शीर्ष ने ही निकाला है, पिछले दिनों मोदी 3-0 सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने वाले पुराने अध्यादेश को रद्द कर दिया है। पर संघ इस बात से कोई खास उत्साहित नहीं दिखता।
संघ से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि संघ की ओर से मोदी सरकार से ऐसी कोई मांग की ही नहीं गई थी और अगर केंद्र सरकार को यह अध्यादेश रद्द ही करना था तो पिछले दस सालों से जब से वह सत्ता में थी ऐसा कदम पहले क्यों नहीं उठाया गया? एक ओर जहां भाजपा व संघ एक-दूसरे के प्रति अपने रुख में अब किंचित नरमी दिखा रहे हैं, वहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत की भाजपा को लेकर स्थितप्रज्ञता जस की तस बनी हुई है। उन्हें जब भी मौका मिलता है वह हमला बोलने से नहीं चूकते। वैसे भी देखा जाए तो संघ के शीर्ष पदाधिकारियों में दत्तात्रेय होसाबोले, सुरेश सोनी व अरुण कुमार को छोड़ कर शेेेेेष अन्य भागवत की लाइन का ही समर्थन करते हैं।
सुरेश सोनी​ शिवराज सिंह चौहान के भी बेहद करीबियों में शुमार होते हैं, माना जाता है कि शिवराज को केंद्र में अहम मंत्री पद दिलवाने में सोनी की एक महती भूमिका रही है। भाजपा इस वक्त तहसील, ग्राम पंचायत से लेकर हर बूथ तक यह संदेश पहुंचाने में व्यस्त है कि 'संघ व भाजपा के दरम्यान कोई तल्खी नहीं है दोनों साथ-साथ हैं, एक सिक्के के दो पहलू हैं।'
माना जाता है कि भाजपा के नए कार्यकारी अध्यक्ष को लेकर दिल्ली के पास जो नाम भेजे गए हैं उनमें से एक नाम देवेंद्र फड़णवीस का भी है, जिन्हें संघ का बेहद करीबी माना जाता है, पर फिलवक्त तो संघ की भंगिमाओं से ऐसा लगता है कि उसकी इन बातों में कोई रुचि नहीं कि भाजपा किसे अपना नया सिरमौर चुनती है।
चीन को लेकर उदार
ऐसे कौन से प्रभावशाली केंद्रीय मंत्री व प्रमुख कंसलटेंट हैं जो चीन से सीधे निवेश की वकालत कर रहे हैं? पिछले दिनों केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का एक बयान सामने आया जिसमें उन्होंने कहा कि 'भारत की चीन से एफडीआई पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की कोई योजना नहीं है।' सनद रहे कि वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरम ने बजट पूर्व आर्थिक समीक्षा में चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई बढ़ाने की वकालत की थी। सो, यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि सरकार के किन प्रभावशाली मंत्रियों व मंत्रालयों के सलाहकारों की ओर से चीन से एफडीआई बढ़ाने की इतनी वकालत की गई? इतने अहम सुझाव आए? वैसे भी देश के कई प्रमुख मंत्रालयों में कुछ कंसलटेंट या सलाहकार चीन के प्रति अपने नरम व लचीले रवैये के लिए जाने जाते हैं।
…और अंत में
आखिरकार इतने दिनों तक दिल्ली स्थित पूसा कृषि विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में अपने दिन काटने वाले मोदी सरकार के एक अहम मंत्री शिवराज सिंह चौहान को नई दिल्ली के 12 सफदरजंग रोड में अपना नया आशियाना मिल गया है। यह वही बंगला है जिनमें पहले पंचायती राज्य मंत्री कपिल मोरेश्वर पाटिल रहा करते थे, पाटिल इस दफे महाराष्ट्र से अपना लोकसभा चुनाव हार गए तो उनसे यह बंगला खाली करवाया गया है। पाटिल से पहले इस बंगले में हरसिमरत कौर बादल व रामदास अठावले भी रह चुके हैं।

– त्रिदिब रमण