संपादकीय

ओपन बुक एग्जाम

Aditya Chopra

पहले शिक्षा नीति में बदलाव फिर किताबों के पाठ्यक्रम में बदलाव किए गए। समय के साथ-साथ शिक्षा के ढांचे में भी बोर्ड (सीबीएसई) ने 10वीं और 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए ओपन बुक एग्जाम के नए पैटर्न को स्वीकार कर लिया है। इसका पायलट रन जल्द ही आयोजित किया जाएगा। अगर प्रस्तावों के अनुरूप सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस वर्ष नवम्बर-दिसम्बर में कुछ चुनिंदा स्कूलों में पायलट प्रोग्राम के तहत आयोजन किया जा सकता है। ओपन बुक एग्जाम का कॉन्सेप्ट कोई नया नहीं है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय सहित कई शिक्षण संस्थानों में इस तरह के प्रयोग पहले ही किए जा चुके हैं। इसमें परीक्षार्थियों को यह स्वतंत्रता होती है कि वह अपने साथ जो भी सहायक सामग्री, निर्धारित पाठ्य पुस्तकें लेकर जा सकते हैं और दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखने में उनकी मदद ले सकते हैं। जब भी एग्जाम आते हैं तो नकल रोकने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षार्थियों की कड़ी जांच होती है। ​फिर भी नकल को शत्-प्रतिशत रोका नहीं जा सका है। क्योंकि नकल माफिया नए-नए तरीके ढूंढ लेता है। अब तो प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र भी लगातार लीक हो रहे हैं। यद्यपि भारत
बुनियादी ढांचे की कमी के दौर से काफी आगे निकल चुका है।
भारत के पास अब आईटी की ताकत है, इसलिए जरूरी है कि पुरानी सोच और परम्परागत ढांचे से बाहर निकला जाए और नई व्यवस्था को लागू किया जाए। जब भी कोई नए प्रयोग किए जाते हैं तो कई तरह की प्रतिक्रियाएं, आशंकाएं और अफवाहें सामने आती हैं तथा अच्छे और बुरे परिणामों को लेकर बहस शुरू हो जाती है। ओपन बुक एग्जाम को लेकर भी शिक्षाविदों से लेकर समाजशास्त्रियों और अभिभावकों तक चर्चा शुरू हो चुकी है कि ओपन बुक एग्जाम कितना कारगर होगा और कितना नहीं। इस कार्यक्रम के तहत अंग्रेजी, मैथ्स, साइंस और बॉयोलोजी जैसे विषयों की परीक्षा ली जाएगी और यह नोट किया जाएगा कि नए तरीके के लिए जा रहे एग्जाम के दौरान प्रश्नपत्र को हल करने में छात्रों को कितना समय लगता है। छात्रों समेत सभी हित धारकों से फीड बैक भी लिया जाएगा।
आमतौर पर माना जाता है कि इस समय आयोजित होने वाले क्लोज्ड-बुक एग्जाम के मुकाबले ओपन-बुक एग्जाम आसान होंगे, लेकिन सीबीएसई ने इस मिथक को नकार दिया है। सीबीएसई ने स्पष्ट किया है कि यह भी उतना ही मुश्किल होगा। इस एग्जाम के लिए छात्रों को केवल किताब में दिए कंटेंट को रट्टा मारकर याद रखने पर निर्भर रहने के बजाय उसमें दी गई अवधारणाओं, एनालिसिस और कॉन्सेप्ट्स को समझने और उसे पेश करने की योग्यता दिखानी होगी। ओपन-बुक एग्जाम में पूरा फोकस बच्चों की वैचारिक क्षमता, अहम विश्लेषण और प्रॉबलम्स को सॉल्व करने की क्षमता का उच्चतम स्तर आंकने पर होगा। सीबीएसई ने स्पष्ट किया है कि ओपन बुक एक्जाम का इरादा छात्रों में रचनात्मक और विश्लेषण की क्षमता को और ज्यादा बढ़ाने वाली उच्च स्तरीय शिक्षा देने पर है।
2014 में सीबीएसई ने स्कूली बच्चों के ओपन टैक्स्ट वेस्ड शुरू किया था लेकिन 2017-18 में यह प्रयोग बंद कर दिया गया क्योंकि यह छात्रों में आलोचनात्मक दृष्टि पैदा करने में सफल नहीं हुआ था। ओपन बुक एग्जाम को लेकर देशभर में कई शोध किए गए। शोध का यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण है कि ओपन बुक एग्जाम छात्रों में तनाव घटाने में मदद करता है और वे पारम्परिक परीक्षा की तुलना में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। परीक्षाओं से पहले बढ़ते तनाव के चलते छात्रों के आत्महत्याओं की खबरें आती रहती हैं। कई शोधों का यह निष्कर्ष भी है कि इससे छात्रों में पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री के बारे में नया दृष्टिकोण तैयार होगा। उन्हें रट्टा लगाने से छुटकारा मिलेगा। इससे परीक्षा में नकल करने और अन्य गलत हथकंडे अपनाने के मामले कम हो जाएंगे। ओपन बुक एग्जाम क्रिटीकल थिंकिंग और प्रॉबलम सोल्विंग स्किल को बढ़ावा देते हैं। यह अप्रोच विषय की गहरी समझ को प्रोत्साहित करती है और छात्रों की वास्तविक दुनिया की स्थितियों में गम्भीर रूप से सोचने की क्षमता को बढ़ाते हैं। अगर छात्रों को ज्ञान होगा तो वह सवालों का जवाब देने में किताबों का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर पाएंगे। अगर उसे ज्ञान ही नहीं है तो वह किताबें ले जाकर भी सही ढंग से पेपर नहीं दे पाएगा। छात्रों को सूचना संसाधनों का सही ढंग से इस्तेमाल करना आना भी जरूरी है। जो आज के डि​जिटल युग में एक महत्वपूर्ण कौशल है।
इस सिस्टम की चुनौतियां भी बहुत हैं। आलोचकों का कहना है कि अगर छात्रों ने किताबें देखकर ही उत्तर देने हैं तो उनकी क्रिटिकल थिंकिंग स्किल ही खत्म हो सकती है। देश में अच्छी किताबों, नोट्स या ऑनलाइन कंटेंट जैसे संसाधनों तक आर्थिक रूप से सम्पन्न परिवारों के बच्चों की पहुंच तो हो सकती है लेकिन गरीब परिवारों के बच्चों की पहुंच इन तक नहीं हो सकती। जरूरी नहीं है कि परीक्षा देते समय हर छात्र नैतिक मानकों का पालन करे। एक सबसे बड़ी चुनौती यह है कि प्रश्न पत्र तैयार करने वालों में क्षमता की कमी है। 10वीं और 12वीं के छात्र-छात्राओं की संख्या लाखों में होती है। पूरे देश में एक जैसे रेफ्रेंस मैटीरियल उपलब्ध कराना बहुत मुश्किल है। फिलहाल इस विषय पर मंथन जारी है। फिर भी नई व्यवस्था को लागू करने के लिए प्रयोग करने में कोई बुराई नहीं। समय के साथ-साथ परिवर्तन संसार का नियम है। कम से कम यह ट्यूशन सैंटरों के जाल और कुंजी प्रणाली से मुक्ति तो दिला ही सकता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com