कुफ्र टूटा खुदा-खुदा करके। आखिरकार पाकिस्तान ने स्वीकार कर ही लिया कि 1999 के कारगिल युद्ध में उसकी सेना के जवान ही शामिल थे वरना इससे पहले तो अधिकारिक रूप से वह यही कहता घूम रहा था कि कारगिल में जेहादियों व मुजाहिदीनों की शिरकत थी और पाकिस्तानी सेना का इसमें कोई हाथ नहीं था। यही वजह थी कि 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध में मारे गये अपने जवानों के शव तक नहीं लिये थे और उनकी शिनाख्त वह उस समय मुजाहिदीनों के रूप में कर रहा था। मगर सच कभी छिपता नहीं है और वह सामने आ ही जाता है। कारगिल का सच आखिरकार पाकिस्तानी सेना के जनरल आसिम मुनीर ने उगल ही दिया और उन्होंने गत दिन रावलपिंडी में हुए एक सैनिक समारोह में कारगिल में मारे गये पाकिस्तानी जवानों को शहीद का दर्जा दिया। हालांकि इससे पहले 2010 में भी पाकिस्तानी सेना ने अपनी एक आधिकारिक वेबसाइट पर उन 350 सैनिकों के नाम डाले थे जिनकी कारगिल युद्ध में मृत्यु हुई थी। पाकिस्तान चोरों की तरह सच से भागने वाला देश जाना जाता है क्योंकि 1947 के सितम्बर महीने में भी जब इसने कश्मीर पर हमला किया था तो आगे-आगे उत्तर पश्चिम प्रान्त के कबायली ही भेजे थे। यह उस समय भी पाकिस्तानी सेना की सीधी भागीदारी से भागता रहा था परन्तु बाद में 1948 में जब इसने कश्मीर पर हमला किया तो 1949 में जाकर माना था कि इसकी सेनाएं कश्मीर में सक्रिय हैं।
वास्तव में पाकिस्तान एक आक्रमणकारी देश है जिसने भारत पर चार बार आक्रमण किया है और युद्ध की शुरूआत की है। चाहे वह 1948 के बाद का 1965 का युद्ध हो या 1971 का बंगलादेश युद्ध अथवा 1999 का कारगिल युद्ध। मगर हर बार इसने भारत के हाथों मुंह की खाई और भारतीय फौजों ने हर बार इसके छक्के छुड़ाये। 1965 के युद्ध में तो भारतीय सेनाएं लाहौर तक पहुंच गई थीं और उन्होंने इच्छोगिल नहर के पानी से कुल्ला किया था। इसी प्रकार 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो टुकड़े करते हुए बंगलादेश का निर्माण करा दिया था। मगर 1999 में कारगिल में तो पाकिस्तान चोरों की तरह भेष बदल कर घुस कर भारतीय क्षेत्र में आया था और जब इसका पता भारतीय सेनाओं को लगा तो उन्होंने इसे वापस खदेड़ा। कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेनाओं का हाथ होने का प्रमाण 2009 में भी इसकी वायुसेना के एक एयर कमांडर कैसर तुफैल ने एक लेख लिख कर दिया था जिसमें उन्होंने कारगिल युद्ध की पाकिस्तान द्वारा की गई तैयारियों का पूरा खुलासा किया था।
जनरल आसिम मुनीर की स्वीकारोक्ति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर कारगिल युद्ध में अपनी सेना का हाथ ही नहीं मानता था। कारगिल युद्ध भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की बहुचर्चित लाहौर बस यात्रा के बाद हुआ था। जब स्व. वाजपेयी पहुंचे थे तो पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ ने उनसे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। मगर वाजपेयी के लाहौर से लौटने के कुछ समय बाद ही मई के महीने में कारगिल में युद्ध के बादल छा गये थे। भारत ने तब कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानियों को भगाने के लिए भारी शहादत दी थी। तब पाकिस्तान ने कहा था कि कारगिल की चोटियों पर चढ़ने वाले उसके सैनिक नहीं हैं बल्कि जेहादी मुजाहिदीन हैं। इस वर्ष 26 जुलाई को ही भारत ने कारगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाई है जिसमें भारतीय सेना के 26 युवा वीर रणबांकुरे अफसर शहीद हुए थे और 66 गंभीर रूप से घायल हो गये थे।
भारतीय सेना के कुल 523 जवान कारगिल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस युद्ध की एक और विशेष बात यह थी कि इसमें विवादित बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल हुआ था। जिनसे निकले हुए गोलों से पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के छक्के छूट गये थे। विगत वर्ष कारगिल युद्ध की बरसी पर ही रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि 26 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध जीतने के बावजूद भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन नहीं किया था क्योंकि हम एक शान्ति प्रिय देश हैं और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करते हैं। परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम कभी भारत-पाक नियन्त्रण रेखा को पार नहीं कर सकते हैं। यदि भविष्य में इसकी आवश्यकता पड़ी तो भारत इससे पीछे नहीं हटेगा क्योंकि आत्म सुरक्षा हर शान्ति प्रिय देश का अधिकार होता है। लेकिन वाजपेयी सरकार के दौरान जब कारगिल युद्ध हुआ था तो इसके समाप्त हो जाने के बाद भारत में घरेलू राजनीति गर्मा गई थी और तत्कालीन रक्षामन्त्री स्व. जार्ज फर्नांडीज को इसका निशाना बनना पड़ा था। कारगिल में घुसपैठ की जानकारी देर से मिलने के कारणों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की गई थी जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एेसा गुप्तचर सूचना के असफलता की वजह से हुआ।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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