संपादकीय

संसद में सेंधमारी और बेरोजगारी

Aakash Chopra

संसद में युवकों की सेंधमारी और संसद परिसर में एक महिला और एक अन्य युवक द्वारा नारेबाजी के मुद्दे पर समाज में दो वर्ग पैदा हो गए हैं। एक वर्ग इन युवाओं की संसद में घुसपैठ को पूरी तरह से गलत कदम मानता है और ऐसी घटना को संसद की सुरक्षा के लिए खतरनाक करार दे रहा है। दूसरा वर्ग यह कह रहा है कि इन युवाओं ने सरकार का ध्यान आकर्षित करने के​ लिए शहीद-ए-आजम भगत सिंह का अनुसरण किया है। इन युवाओं को भगत सिंह के रूप में स्वीकार करने की मानसिकता उचित प्रतीत नहीं होती। माना कि यह युवक बेरोजगारी से या आर्थिक समस्या के चलते निराश और हताश होंगे लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए संसद में ही कूद जाए या​ फिर सांसदों को आतंकित करे या बंधक बना ​लें। ऐसे तो देशभर में करोड़ों युवा बेरोजगार हैं तो क्या वे आपराधिक वारदातें करने लग जाएं। इसलिए इन युवाओं की भगत सिंह से तुलना करना शहीदों का अपमान ही है। जहां तक बेरोजगारी का सवाल है यह मुद्दा वास्तव में महत्वपूर्ण है।
किसी भी ​देश की अर्थव्यवस्था जब लगातार विस्तार पाती है तो उत्पादन बढ़ता है, कम्पनियां मैदान में आती हैं और उन्हें ज्यादा श्रम की जरूरत पड़ती है। इससे रोजगार के नए अवसर लगातार सृजित होते हैं।
दिसंबर, 2023 में बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर 8.8 फीसदी आंकी गई है। अक्तूबर में यह दो साल के उच्चतम स्तर 10.09 फीसदी पर थी। उससे पहले यह दर 7 फीसदी के करीब रही है। यह कोई सामान्य दर नहीं है। आंकड़ों का संग्रह और उनके विश्लेषण के जरिए बेरोजगारी का यह निष्कर्ष 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी' (सीएमआईई) का है।
दुनिया के बड़े देश, आर्थिक मंच और औद्योगिक संस्थान भी सीएमआईई के आंकड़ों और निष्कर्षों के आधार पर, भारत के बारे में, अपना नजरिया तय करते हैं। यदि सीएमआईई ने बेरोजगारी की दर 8.8 फीसदी आंकी है और यह स्थापना दी है कि शहरों में गरीब ज्यादा गरीब होते जा रहे हैं, गांवों में बेरोजगारी दर अधिक है, तो ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। विख्यात अर्थशास्त्री एवं भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का विश्लेषण भी यही है कि यदि भारत की विकास दर 6 फीसदी के आसपास ही बनी रही तो 2047 में भी भारत 'निम्न-मध्य वर्ग का देश' बना रहेगा, बेशक उसकी आबादी के कारण जीडीपी का विस्तार होता रहे। बहरहाल भारत में 25 साल की उम्र तक के 42 फीसदी युवा स्नातक बेरोजगार हैं। 25-29 के आयु वर्ग में यह बेरोजगारी करीब 23 फीसदी है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, जिसकी 65 फीसदी आबादी की औसत उम्र 35 साल से कम है।
भारत में रोजगार निर्माण की बात करें तो कई दीर्घकालिक मसले हैं और ये गुणवत्ता और मात्रा दोनों क्षेत्रों में हैं। एक समस्या श्रम शक्ति में महिलाओं की कम भागीदारी की भी रही है। सैद्धांतिक तौर पर देखें तो महिलाओं की भागीदारी में इजाफा उत्साहित करने वाला है लेकिन एक हालिया अध्ययन में कहा गया कि महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी दर में इजाफा मुश्किल हालात का परिणाम हो सकता है। ऐसे में सरकार के लिए नीतिगत चुनौती न केवल अधिक सार्थक रोजगार तैयार करना है बल्कि ऐसे हालात बनाने की चुनौती भी होगी जो श्रम शक्ति भागीदारी बढ़ाने में मददगार साबित हों।
देश की श्रमशक्ति के बारे में एक तथ्य उभरकर सामने आया है, वह यह है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां और देश की अग्रणी कम्पनियां कुशल श्रमिकों की तलाश में रहती हैं लेकिन उन्हें कुशल श्रमशक्ति नहीं मिल रही है। भारत के युवाओं में कौशल विकास की कमी है। कम्पनियों का कहना है कि उन्हें योग्य एवं कुशल युवा नहीं मिल रहे और अकुशल युवाओं को तैयार करने में बहुत समय लगता है। भारत के अधिकांश युवा सरकारी नौकरी पाने के इच्छुक रहते हैं। जबकि सरकारी भर्ती बहुत कम हो रही है। सरकारी नौकरी पाने की जिद्द में वह तो कोई दूसरा काम नहीं करना चाहते। बेरोजगारी का एक कारण यह भी है। 70 और 80 के दशक में न प्राइवेट नौकरियां थीं आैर न सरकारी नौकरियां। कभी-कभी वैकेंसी आती थी और उसमें भी चंद नौकरियां ही होती थीं। प्राइवेट सैक्टर था ही नहीं और कुछ बुनियादी धंधों को छोड़कर किसी दूसरे बिजनेस की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आज कंस्ट्रक्शन वर्ग, रेल, सड़क और बिल्डिंग बनाने की रफ्तार बहुत तेज है। देश का बु​नियादी ढांचा लगातार विस्तार पा रहा है। विदेशी निवेश से भी कई कम्पनियां स्थापित हो चुकी हैं। मोबाइल कम्पनियों की भरमार हो चुकी है। युवाओं को कौशल विकास की ओर ध्यान देना होगा और सरकारी नौकरियों का इंतजार करने की बजाय निजी सैक्टर में अपनी प्रतिभा दिखानी होगी। भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जो विविध नौकरी क्षेत्रों के लिए आकर्षक देश बनाती है। युवाओं को नौकरी पाने के लिए अच्छी शिक्षा के अलावा खुद को नए कौशल ​विकसित करने के लिए तैयार करना होगा। कौशल को बढ़ाने से करियर के अवसर बढ़ाने में मदद मिलती है। गुणवत्ता, पूर्ण तकनीकी, शिक्षा निश्चित रूप से कुशल युवाओं का निर्माण करेगी जो बेहतर रोजगार परक होंगे।