बेहतरीन फिल्म अभिनेत्री वहीदा रहमान को दादा साहब फाल्के अवार्ड देने की घोषणा एक ऐसी महिला का सम्मान है जिसने अपने जीवन में तरह-तरह की पाबंदियों, रुढ़िवादी विचारों और वर्जनाओं को ताेड़ कर अपना मुकाम हासिल किया। वहीदा रहमान ने ''आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है'' को फिल्मी पर्दे पर जीकर महिलाओं को अभिव्यक्ति की नई जुबां दी। यद्यपि आज सिनेमा का स्वरूप बदल गया है। फिल्मी कहानियां भी पहले दौर जैसी नहीं रहीं। ग्लैमर की चकाचौंध से प्रभावित फिल्मी संसार का कल्पना लोक बहुत विस्तार पा चुका है। लेकिन लोग आज भी वहीदा रहमान के निभाए गए किरदारों को भुला नहीं सके। वहीदा रहमान का जन्म तमिलनाडु के चेंगल पट्टू में 1938 में तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था और उन्होंने तेलुगू सिनेमा रोजुलु मरई में बाल कलाकार के तौर पर फिल्मी संसार में कदम रखा था। इस समय तक वह भरत नाट्यम की उम्दा नृत्यांगना बन चुकी थी। युवा होने पर वह भारतीय सिनेमा की मुख्यधारा में आने के लिए प्रयास करती रही। इसी दौरान उनकी मुलाकात उस दौर के प्रसिद्ध अभिनेता और निर्माता निर्देशक गुरुदत्त से हुई।
वर्ष 1956 में गुरुदत्त ने वहीदा रहमान को देव आनंद के साथ 'सी.आई.डी.' में खलनायिका की भूमिका में लिया और यह फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर सुपरहिट रही। इसके बाद वर्ष 1957 में गुरुदत्त और वहीदा रहमान की क्लासिक फिल्म 'प्यासा' रिलीज़ हुई। यह फिल्म गुरुदत्त और वहीदा के बीच प्रेम-प्रसंग को लेकर काफी चर्चा में रही। कहा जाता है कि वर्ष 1959 में रिलीज़ हुई गुरुदत्त की फिल्म 'कागज़ के फूल' उन दोनों के असफल प्रेम कथा पर आधारित थी। हालांकि बाद के वर्षों में भी वहीदा रहमान ने गुरुदत्त के साथ दो अन्य फ़िल्में की थीं। इनमें वर्ष 1960 की 'चौदहवीं का चांद' और वर्ष 1962 की 'साहिब बीबी और गुलाम' प्रमुख हैं। इसके अलावा वहीदा की गुरुदत्त के साथ दो अन्य क्लासिक फ़िल्में '12 ओ' क्लॉक' (1958) और फुल मून (1961) भी हैं।
फिल्मों में देव आनंद के साथ वहीदा रहमान की जोड़ी खूब जमी थी। दोनों ने हिंदी फिल्म जगत को पांच सुपरहिट फ़िल्में दी थीं। ये फ़िल्में हैं-सी.आई.डी., सोलहवां साल, काला बाज़ार, बात एक रात की और गाइड। इसके अलावा दोनों ने दो और फ़िल्में 'रूप की रानी चोरों का राजा' और 'प्रेम पुजारी' की थीं, परंतु दुर्भाग्यवश आलोचकों की सराहना के बावजूद बॉक्स-ऑफिस पर दोनों फ़िल्में फ्लॉप रहीं। फिल्म गाइड में वहीदा द्वारा अभिनीत चरित्र 'रोजी' और उनके अभिनय को उस ज़माने में काफी सराहा गया था। रोजी नाम की एक महिला का अपने पति को छोड़कर अपने प्रेमी के साथ प्रेम-प्रसंग, उस समय एक आम भारतीय पारंपरिक परिवार के लिए स्वीकार्य न होने के बावजूद फिल्म का सुपरहिट होना वहीदा और देव आनंद के सशक्त अभिनय का परिणाम था। उस समय वहीदा रहमान ने भी माना था कि अगर उसे फिर से 'गाइड' जैसी फिल्म में अभिनय करने का मौका मिलेगा तब भी वह संभवतः ही 'रोजी' जैसी चरित्र को निभा पाएंगी।
उन्होंने दिलीप कुमार, मनोज कुमार, सुनील दत्त, राज कपूर और धर्मेन्द्र के साथ भी फिल्में कीं आैर पर्दे पर हलचल मचाए रखी। 1974 में उस दौर के सुपर स्टार अभिनेता राजेश खन्ना के साथ आई फिल्म खामोशी ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाए रखी।
कभी-कभी आप के बोये हुए पेड़ बहुत देर तक फल देते रहते हैं। वहीदा रहमान के साथ भी यही हुआ। उनके बेहतरीन अभिनय के चलते उनकी फिल्में सुपरहिट रहीं, लेकिन नम्बर गेम में वह कभी शामिल नहीं हुईं। प्यासा में माला सिन्हा और साहब बीबी और गुलाम में मीना कुमारी के साथ होने पर उनकी सफलता बंट गई, लेकिन उनके अभिनय की तारीफ जारी रही। उन्होंने हमेशा अपनी शर्तों पर काम किया और उन्होंने अपना स्वाभिमान और आत्म सम्मान बनाए रखा। नम्बर वन का सिंहासन पाने की उनकी कभी कोई इच्छा नहीं रही। उस दौर में कई नई अभिनेत्रियां आईं, लेकिन अभिनेत्री के तौर पर वहीदा जी की रेंज उनको निरंतर प्रतिष्ठापित करती रही। ऐसा नहीं था कि उन्होंने असफलता का स्वाद नहीं चखा। उनकी राह भी इतनी सपाट नहीं थी। उस दौर में शर्मिला टैगोर, मुमताज, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी दर्शकों की कसौटी पर थीं। उम्र होने पर वहीदा जी ने अमिताभ बच्चन के साथ मां की भूमिका भी निभाई। फिल्म गाइड की रोजी, तीसरी कसम की हीरा बाई, नीलकमल की नीलकमल की भूमिका एक जीवंत दस्तावेज बन चुकी है। फिल्म उद्योग में वहीदा रहमान को बड़ा सम्मान प्राप्त है। उन्हें सम्मान दिए जाने से स्वयं दादा साहब फाल्के पुरस्कार की प्रतिष्ठा बढ़ी है। यह घोषणा भी सदाबहार अभिनेता देवानंद की जन्मशती पर की गई। यह वास्तव में एक बड़ा संयोग भी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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