Politics' in summer and 'summer' in politics: आजकल दो ही चीजों की सबसे ज्यादा चर्चा है। चुनावों के चलते हर तरफ राजनीति की चर्चा है और इसी सियासत को लेकर कौन जीतेगा, कौन हारेगा? को लेकर आपसी तलखियां भी बढ़ रही हैं लेकिन चुनावों के इस बेहद लंबे सात चरणों के दौर में भीषण गर्मी की भी चर्चा चल रही है और हमने अपने जीवन में पहली बार यह देखा कि तापमान 50 डिग्री पार कर गया। वहीं राजनीतिक दलों के अनेक नेताओं ने एक-दूसरे के बारे में क्या कुछ नहीं कहा? यानि कि राजनीति में गर्मी बनी रही और उधर चुनाव के मौसम में प्रकृति की तरफ से सूर्य देव ने अपने तेवर बढ़ाकर पूरे भारत को ही गर्मी में झुलसाए रखा। इसलिए इन चुनावों से किसी भी आम और खास के साथ-साथ राजनेताओं को भी बहुत कुछ सीखना चाहिए। फिर भी चुनाव आयोग से अर्जी तो लगाई जा ही सकती है कि भले ही चुनाव कराना संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था है और पांच साल के बाद ऐसा करना जरूरी है तो भी कम से कम अप्रैल-मई के महीने से बचा जाए तो ज्यादा अच्छा है।
एक सकारात्मकता जरूर होनी चाहिए। प्रकृति के मामले में हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन सरकार के मामले में बहुत कुछ अनुरोध कर सकते हैं। वहीं नेताओं को भी पब्लिक तो कुछ नहीं समझा सकती क्योंकि पब्लिक तो एक ही दिन जिस दिन वोटिंग होती है उस दिन समझाती है और बाकी पांच साल तो फिर नेताजी के ही होते हैं। इसे ही लेकर राजनीतिक पार्टियों में पूरे चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप चले हैं। एक-दूसरे पर काम न करने के आरोप और वहीं खुद सरकार में आने के तरह-तरह के दावे किए गए। व्यक्तिगत रूप से हर पार्टी की ओर से बड़े ही नेता सामने आए जिन्होंने भाषा की गरिमा की परवाह न करते हुए असभ्य शब्दों का प्रयोग किया। कुल मिलाकर ऐसा कहकर गर्मी के मौसम में इन लोगों ने चुनावी गर्मी को और झुलसा दिया। सकारात्मकता यह कहती है कि राजनीति में भी हम आदर्श स्थापित कर सकते हैं। हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। लोग आज भी आदर्शवान नेताओं को याद रखते हैं। अगर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की बातचीत की जाए तो सुशासन की नींव श्रीराम ने ही रखी थी। आज भी भारत में सुशासन की बात भगवान श्रीराम के आदर्शों को सामने रखकर ही की जाती है हमने देखा कि कितने ही स्थानों पर, कितनी ही जाति-पाति के लोग, कितने ही मामलों में नेताओं को कोसते नजर आए। हम ऐसे उदाहरण स्थापित कर सकते हैं कि लोग हमारे नाम पर नहीं हमारे काम पर मोहर लगाएं। आज की तारीख में तरह-तरह के घोषणापत्र जनता के सामने लाए गए। एक तरफ तो मुफ्तखोरी की बातें करके जनता को सुविधाएं देने के वायदे किए जाते हैं और दूसरी तरफ मुफ्तखोरी का विरोध भी किया जाता है। सबकी अपनी-अपनी नजर और अपना-अपना नजरिया है।
मैं एक बात स्पष्ट कहना चाहूंगी कि अगर चुनावों का बारीकी से अध्ययन किया जाए, चुनावों के बारे में देश के मतदाताओं में वृद्धों, पुरुषों, महिलाओं और यूथ के बारे में चर्चा की जाए तो मैं यही कहूंगी कि वोट का अधिकार हर कोई इस्तेमाल नहीं कर रहा। यद्यपि चुनाव आयोग ने वोटिंग अर्थात मतदान को एक पर्व कहा और लोगों को मतदान के लिए प्रेरित किया परंतु फिर भी यह आंकड़ा 60 से 65 प्रतिशत ही पहुंच पाया। दूसरे शब्दों में मैं यह स्पष्ट कह सकती हूँ कि 35 प्रतिशत से अधिक लोगों ने अपने आपको मतदान से दूर रखा। यह प्रश्न भी चिंतनीय है। अगर हम दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक ताकत हैं, हम सचमुच नेताओं का भाग्य संवारने वाले जनार्दन हैं तो फिर हमें मतदान करने के लिए जरूर आगे बढ़ना चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि राजनीतिक पार्टियों को यूथ और महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा अपने साथ जोड़ना चाहिए। जो देश में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण की बात राजनीति से जोड़कर की जा रही हो तो सब कुछ टिकट के मामले में दिखाई भी दिया जाना चाहिए। फिर भी चुनावों में गर्मी और गर्मी में राजनीति चलती रही। एक मामले में नेता शामिल हैं तो प्रकृति के मामले में हमारा कोई वश नहीं लेकिन सब कुछ मर्यादा में रहना चाहिए। राजनीति और राजनीतिज्ञों की नीयत और नीति के चलते भारत का भविष्य अच्छा होगा, हमें इसका एक आदर्श स्थापित करना होगा। यही भारत के लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत होगी।
अभी तक जितने चुनाव देखे हैं ऐसा चुनाव कभी नहीं देखा खूब जोश एक्साइटिंग चौंकाने वाला सबसे अधिक हर देश के नागरिक के चेहरे पर कांफिडेंस कि उनकी एक-एक वोट कीमती है और वो ही डिसाइड करेंगे कौन बनेगा? वाह क्या लोकतंत्र है जिसमें देश का हर व्यक्ति हिस्सा ले रहा। वोट लेने वाला वोट देने वाला, इंटरव्यू लेने वाला इंटरव्यू देने वाला प्रिंट, डिजीटल, सोशल मीडिया, व्हाट्सप अलर्ट सब नेता उठते-बैठते सोते-जागते हाथ जोड़ते नजर आते हैं। बड़े-बड़े वायदे करते हैं। हर एक के दरवाजे पर दस्तक देते हैं फिर पांच साल तक जनता को उन्हें ढूंढना पड़ता है। इस बार तो बिल्कुल समझ नहीं आ रहा कड़ा मुकाबला है किसकी हार होगी किसकी जीत परंतु यह तो तय है कि विपक्ष खड़ा हो चुका है, यह लोकतंत्र की मजबूत निशानी है।
आज वोट डालने का समापन हो चुका, सभी प्रत्याशी पूजा-पाठ कर रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री कन्याकुमारी ऐतिहासिक स्थान पर ध्यान लगा रहे हैं। अमित शाह जी अपनी पत्नी के साथ तिरुपति बाला जी मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे हैं। प्रियंका गांधी ने हिमाचल के शिमला में जाखू मंदिर में दर्शन कर पूजन किया। चिराग पासवान हनुमान गढ़ी, मोहन यादव ने अमृतसर स्वर्ण मंदिर में माथा टेका। अब 4 जून का सबको इंतजार है किसकी जीत होगी किसकी हार यह लोकतंत्र की अावाज होगी।