संपादकीय

भारतीय नौसेेना का दम

Aditya Chopra

पिछले कुछ महीनों से समुद्री लुटेरों ने लाल सागर और अदन की खाड़ी में एक के बाद एक वारदातें की हैं। हमास समर्थक हूती लुटेरे ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं। यह इतने खतरनाक हो गए हैं कि लम्बी दूरी के ड्रोन द्वारा व्यापारिक जहाजों को निशाना बनाया जाने लगा है। अरब सागर लुटेरों के लिए सॉफ्ट टारगेट बन गया है। हूती लुटेरों ने अमेरिकी जहाजों पर हमला करने की धमकी भी दे रखी है। जहाजों पर हमलों की घटनाओं के बाद भारतीय नौसेना ने अमेरिकी नौसेना के साथ मिलकर अरब सागर में अपनी तैनाती बढ़ा दी है। भारतीय सेना ने अपने फ्रंट लाइन विध्वंस, फ्रिगेट और गश्ती विमानों ने खतरों से निपटने के लिए अपनी गति को बढ़ा दिया है। जल, नभ हो या जमीन भारतीय नौसेना सभी जगह दुश्मनों पर भारी पड़ रही है। भारतीय नौसेना ने सोमालिया के पास हाइजैक किए गए लाइबेरिया का झंडा लगे जहाज को बचा लिया है और एम वी लीला नॉरफॉक जहाज पर सवार 15 भारतीयों समेत चालक दल के 21 सदस्यों को बचा लिया। समुद्री लुटेरे भाग खड़े हुए। इस साहसिक ऑपरेशन को अंजाम दिया भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो ने। इससे पहले 14 दिसम्बर को भी भारतीय नौसेना ने एम वी रूएन को समुद्री डाकुओं से बचाया था। जब समुद्री लुटेेरों ने हमला किया था तब वह जहाज सोमालिया तट के पास था। समुद्र में तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच भारतीय नौसेना को इसलिए सक्रिय होना पड़ा है क्योंकि व्यापार का बड़ा हिस्सा इसी समुद्री रूट से होता है। अगर समुद्र में मालवाहक जहाज सुरक्षित नहीं तो इससे अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
भारत का स्वेज नहर और लाल सागर मार्ग से लगभग 200 अरब डॉलर का समुद्री व्यापार होता है। शिपिंग में कई सप्ताह की देरी से आपूर्ति शृंखला जटिल हो जाएगी और कीमतें बढ़ जाएंगी। संकट जितना लंबा खिंचता है, समस्याएं उतनी ही विकराल हो सकती हैं। हूती विद्रोहियों के हमलों से हाल के दिनों में ऊर्जा की कीमतें बढ़ी हैं क्योंकि लाल सागर मार्ग तेल और प्राकृतिक गैस व्यापार के लिए भी आवश्यक है। भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात भी स्वेज नहर के माध्यम से होता है। यह स्पष्ट नहीं है कि लंबे समय तक चलने वाले संकट के कारण कीमतें और बढ़ेंगी या नहीं। रूस और अमेरिका से नॉन-कुकिंग कोयला जैसे अन्य आयात भी बाधित हो सकते हैं।
हूती विद्रोही इजराइल के सख्त खिलाफ हैं और वह इजराइल का मुकाबला करके मध्यपूर्व में फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति की लहर चलाना चाहते हैं। उन्होंेने इजराइल और अमेरिकी जहाजों को निशाना बनाने की धमकी दे रखी है। ईरान हूती विद्रोिहयों को हर तरह से मदद दे रहा है। माैजूदा हालातों ने शिपिंग कम्पनियों को डराकर रख दिया है। भारत खुले एवं स्वतंत्र समुद्री मार्ग का समर्थन करता है। भारतीय नौसेना लगातार अपना दम दिखा रही है और एक के बाद एक मालवाहक जहाजों को बचा रही है। भारतीय नौसेना की एक स्पैशल फोर्स यूनिट है। मूल रूप से मार्कोस को भारतीय समुद्री विशेष बल कहा जाता था। इसका अाधिकारिक नाम मरीन कमांडो फोर्स है। बाद में इसका शॉर्ट नेम मार्कोस रखा गया।
स्पेशल फोर्स यूनिट मार्कोस की स्थापना फरवरी 1987 में हुई थी। मार्कोस सभी प्रकार के वातावरण में काम करने में सक्षम हैं। समुद्र में, हवा में और जमीन पर। ये सभी जगह दुश्मन के लिए घातक साबित होते हैं। इस यूनिट ने धीरे-धीरे अनुभव और व्यावसायिकता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा हासिल कर ली है। मार्कोस नियमित रूप से झेलम नदी और वूलर झील में ऑपरेट करते हैं। ये झील 65 वर्ग किलोमीटर में फैली है। इस मीठे पानी की झील के ज़रिए मार्कोस जम्मू और कश्मीर में विशेष समुद्री और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाते हैं। कुछ मार्कोस इकाइयां सशस्त्र बल विशेष अभियान प्रभाग का एक हिस्सा हैं।
1955 में भारतीय सेना ने ब्रिटिश स्पेशल बोट सर्विस की सहायता से कोचीन में एक डाइविंग स्कूल की स्थापना की और विस्फोटक निपटान, निकासी और साल्वेज डाइविंग जैसे लड़ाकू गोताखोर कौशल सिखाना शुरू किया था लेकिन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लड़ाकू गोताखोर उम्मीद के मुताबिक नतीजे देने में नाकाम रहे। क्योंकि उन्हें ऐसे मिशन के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया था। लड़ाकू गोताखोरों ने बंगलादेश के विद्रोहियों को पानी के भीतर विध्वंस प्रशिक्षण भी दिया था, जिन्हें युद्ध के दौरान मिशन पर भेजा गया था लेकिन पाकिस्तानी सेना को उनसे कोई खास नुक्सान नहीं हुआ।
बाद में लगातार अभ्यासों के चलते यह बल दक्ष होता गया और अब यह बल समुद्र में अभियान चलाने, छापे मारने, टोह लेने और आतंकवाद रोधी अभियानों को अंजाम देने में सक्षम बन चुका है। मार्कोस कमांडोज को भारतीय नौसेना से तब चुना जाता है जब वे 20 से 25 वर्ष की उम्र के होते हैं और उन्हें कड़ी चयन प्रक्रिया और प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। मार्कोस की ट्रेनिंग अब कई जगह दी जाती है और अधिकांश ट्रेनिंग आईएनएस अभिमन्यू पर दी जाती है। भारतीय नौसेना की ताकत अब इतनी बढ़ चुकी है कि वह समन्दर में किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है।