राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को कहा कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में अदालती फैसलों में देरी से आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है। साथ ही उन्होंने अदालतों में स्थगन की संस्कृति में बदलाव का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा कि लम्बित मामले न्यायपालिका के समक्ष एक बड़ी चुनौती हैं और उन्होंने यह भी कहा कि जब बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में अदालती फैसले एक पीढ़ी बीत जाने के बाद आते हैं तो आम आदमी को लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता का अभाव है, इसलिए लम्बित मामलों में निपटारे के लिए एक विशेष लोक अदालत जैसे कार्यक्रम अधिक बार आयोजित किए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी अफसोस जताया िक कुछ मामलों में साधन सम्पन्न लोग अपराध करने के बाद बैखोफ खुलेआम घूमते रहते हैं और गरीब लोग अदालत में जाने से डरते हैं। राष्ट्रपति के अनुसार ऐसे लोग अन्याय को चुपचाप सहते हैं।
मैं पहले भी लिख चुुकी हूं कि मैं राष्ट्रपति मुर्मू की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं, क्योंकि वह जमीन से जुड़ी महिला हैं। हर आम आदमी का दर्द समझती और जानती हैं, वो हर अवस्था से स्वयं गुजर चुकी हैं।
सच में उनकी िचंता करना वाजिब है। एक महिला होने के नाते एक महिला का दर्द भी समझती हैं। कोलकाता रेप, मर्डर केस के बाद शायद ही कोई स्त्री होगी जिसका खून न खोला हो। मैं तो सो भी नहीं पा रही थी यह सोच कर कि एक पीढ़ी-लिखी डॉक्टर जाे मेहनत से डॉक्टर बनी, उसके माता-पिता ने उसको किस मेहनत से डॉक्टर बनाया होगा और जब एक पिता ने अपनी बेटी की नंगी लाश देखी होगी वो भी बुुरी हालत में तो उसका क्या हाल होगा। उसका दुःख-दर्द हम सभी समझते हैं आैर मेरा तो खून खोलता है। मैं हर बार लिखती हूं कि ऐसे लोगों को सख्त से सख्त सजा या चौराहे पर खड़ा करके लोगों के सामने फांसी होनी चाहिए ताकि भविष्य में इस बारे में कोई सोचे भी नहीं। मैंने पीएम को भी पत्र लिखा है। मेरी अपनी राय तो यह है कि कोई भी बलात्कारी को उम्रकैद और अगर महिला बलात्कार के बाद मर जाए तो उसे सबके सामने फांसी देनी चाहिए। आगे न्यायपािलका देखे। जब तक यह नहीं होगा तब तक ऐसा जघन्य अपराध नहीं रुकेगा। इंसाफ आैर डर अवश्य होना चाहिए और इंसाफ देर से मिले तो कोई फायदा नहीं।
बंगाल की मुख्यमंत्री ने रैपिस्ड को फांसी दिए जाने का प्रावधान वाला बिल तो पास करवा लिया परन्तु अभी तक कोलकाता डाॅक्टर केस में हत्या करने वालों को फांसी क्यों नहीं हुई। क्या यह बिल लोगों को शांत करने के लिए लाया गया। अगर सच में लाया गया है तो फांसी होनी चाहिए, एक मिसाल कायम हो जाएगी। मैं तो कहती हूं कि राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रावधान पास होना चाहिए। जब एक-दो को फांसी होगी तो ऐसे नीच सोच वाले और ऐसे कुकर्म करने वाले व्यक्तियों की अक्ल ठिकाने आएगी।
मेरा इतना खून खोलता है कि अगर मेरे हाथ में कोई ऐसा जादू हो जाए या कानून मेरे हाथ में आ जाए तो मैं ऐसा डर, भय पैदा कर दूं कि ऐसे व्यक्तियों के सोचने से पहले वह कांप जाए।
यही नहीं हमारे प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने कहा है कि केवल 6.7 प्रतिशत अदालतों का बुनियादी दावा महिलाओं के अनुकूल है, इसलिए यह अवश्यक है कि ऐसी स्थिति को बदलने की जरूरत है।
यही नहीं हर मां को अपने बेटों और बेटियों को भी शिक्षा देनी होगी और कुछ ऐसा भी प्रावधान हो जो नेट, सोशल मीडिया पर अश्लील चीजाें पर भी प्रतिबंध होना चाहिए। समाज के लोगों की मानसिकता स्वच्छ, तुच्छ होनी चाहिए। आज छोटे-छोटे बच्चों के साथ ऐसी गंदी हरकतें, घटनाएं हो रही हैं। इसके लिए जरूरी है बारीकी से हर उन अश्लील चीजों को, वीडियो को रोकना होगा जो मानसिकता खराब करें। हर यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप बंद होने चाहिए जहां यह सब उपलब्ध हैं।
हर कौने-कौने में इस जघन्य अपराधों को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। सुरक्षा जरूरी है नहीं तो महिला सशक्तिकरण का कोई फायदा नहीं। ऐसा ही होना है तो महिलाएं घूंघट डालकर घर पर ही बैठ जाए और सुरिक्षत रहे। क्या यह सब चाहते हैं, हरगिज नहीं, तो आगे सभी मिलकर ऐसे जघन्य अपराध को रोकें। हर कोई देश का सिपाही बन जाए, बहनों का भाई, बेटियों का रखवाला बन जाए।