संपादकीय

रूस में फिर पुतिन राज

Aditya Chopra

कुछ के लिए महानायक, कुछ के लिए खलनायक, कुछ के लिए क्रूर शासक और तानाशाह और कुछ के लिए निरंकुश हत्यारा। आप ब्लादिमीर पुतिन को कुछ भी कह सकते हैं लेकिन पुतिन ने विश्व राजनीति और रूसी इतिहास पर एक ऐसी छाप छोड़ी है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता। यद्यपि रूस की जनता भी उन्हें कुख्यात तानाशाह के तौर पर देखती है लेकिन वह इतने विख्यात हैं कि उन्हें रूस की जनता नजरअंदाज नहीं कर सकती। रूस की खुफिया एजैंसी केजीवी के एजेंट के तौर पर उनकी कई कहानियां चर्चित हैं लेकिन क्रेमलिन पर कब्जा करने और उनके कठोर शासन की कहानी खुली किताब है। एक जासूस दुनिया का रूस का सबसे ताकतवर व्यक्ति कैसे बन गया यह जानने की जिज्ञासा हर किसी में है। पुतिन पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति बन गए हैं। उन्हें 88 प्रतिशत वोट हासिल हुए हैं। पुतिन 2030 तक राष्ट्रपति रहेंगे। इस तरह उन्होंने सत्ता पर काबिज रहने के मामले में जोसिफ स्टालिन का रिकार्ड तोड़ दिया है। रूस की सत्ता में पुतिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के रूप में 1999 से ही कायम हैं। नोरिस चिल्सतिन ने स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्हें सत्ता सौंपी थी तब से वह कोई चुनाव नहीं हारे। इस बार के चुनाव कई मायनों में खास रहे क्यो​ंकि यह चुुनाव ऐसे वक्त में हुए जब रूस और यूक्रेन की जंग जारी है और पुतिन के सामने दमदार विपक्ष भी नहीं था। जंग में नुक्सान सहने के बावजूद पुतिन युद्ध रोकने के इच्छुक दिखाई नहीं देते। इसके बावजूद उनका वोट प्रतिशत पहले के मुकाबले बढ़ा ही है।
साल 2000 में पुतिन पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे, तब उन्हें 54 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद 2004 में उन्हें 72 प्रतिशत और 2012 में 65 प्रतिशत वोट मिले थे। 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में पुतिन ने 77 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।
न्यूज एजैंसी के मुताबिक, 71 साल के पुतिन की छवि रूस में एक सख्त नेता की है और उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह यही है। यूक्रेन से जंग के बीच पुतिन पर वार क्राइम के आरोप लगे हों, लेकिन रूस की एक बड़ी आबादी को उनका समर्थन हासिल है। रूसी मानते हैं कि पुतिन ही हैं जो अमेरिका-यूरोप जैसे पश्चिमी देशों को सख्ती से जवाब दे सकते हैं। फरवरी में एक सर्वे हुआ था जिसमें 75 फीसदी रूसियों ने पुतिन को ही वोट देने की बात कही थी। रूस में अभी वाकई में कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो पुतिन को टक्कर दे सके। पुतिन का विरोध करने वाले नेताओं की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई या फिर अज्ञातवास पर हैं। पिछले महीने ही पुतिन के कट्टर विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी की आर्कटिक जेल में मौत हो गई थी कि नवलनी ही पुतिन को टक्कर दे सकते थे।
नवलनी के अलावा प्राइवेट आर्मी के चीफ येवगेनी प्रिगोझिन को भी पुतिन का बड़ा प्रतिद्वंद्वी माना जाता था लेकिन कुछ दिनों पहले एक विमान हादसे में प्रिगो​झिन की भी मौत हो गई। इन दोनों के अलावा पुतिन के एक और विरोधी उभर रहे थे जिनका नाम बोरिस नादेझदीन है, लेकिन चुनाव आयोग ने उन्हें चुनाव में खड़ा होने से ही रोक दिया।
जो तीन उम्मीदवार उनके सामने बचे थे वो भी डमी ही थे। जिस तरह से पिछले दो दशक में उन्होंने विपक्ष को लगभग खत्म करके रख दिया वह ऐसा ही था जैसा किसी जमाने में जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने अपनाया था। रूस में कोई व्यक्ति लगातार दो बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता था लेकिन 2008 में पुतिन प्रधानमंत्री बन गए और संविधान संशोधन करवाकर तीसरी बार राष्ट्रपति बन गए। 2020 में उन्होंने संविधान में संशोधन कर 2036 तक राष्ट्रपति बने रहने की ताकत हासिल कर ली। अब सवाल यह है कि रूस की जनता आखिर उन्हें इतना पसंद क्यों करती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने तमाम चुनौतियों के बावजूद रूस को शाक्तिशाली बनाया तमाम अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूस को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया। उनके शाक्तिशाली बनने के पीछे पुतिन का राष्ट्रवाद भी है। यूक्रेन के खिलाफ जंग पुतिन के लिए सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा हासिल करने की नहीं है बल्कि पुतिन इसे अपनी पहचान से जोड़ते हैं। पिछले दो साल में यूक्रेन के कई शहरों को श्मशान बनाने के बाद भी पुतिन रुकने वाले नहीं हैं। दूसरी ओर पुतिन देश की जनता को रूस का भविष्य संवारने और आर्थिक ताकत को मजबूत बनाने का वादा भी कर रहे हैं। उनकी छवि एक आयरन मैन की बन गई है। जीत के बाद भी उन्होंने अमेरिका और नाटो देशों को परमाणु हमले की धमकी देकर बता दिया है कि यूक्रेन से बारूदी विनाश थमेगा नहीं। पुतिन की जीत से अमेरिका और नाटो देश डरे हुए हैं। क्योंकि पुतिन क्या करने वाले हैं इसका अंदाजा किसी को नहीं है। बेखौफ व्यक्तित्व ने ही पुतिन को देश की जनता की नजरों में महानायक बना दिया।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com