कतर की अदालत द्वारा भारतीय सेना के 8 पूर्व नौसेना अधिकारियों को फांसी की सजा सुनाए जाने पर भारत सरकार ही नहीं पूरा राष्ट्र चिंतित है। अगस्त 2022 से कतर की जेल में बंद कैप्टन वीरेन्द्र कुमार वर्मा, कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर अमित नागपाल, कमांडर पूर्वोंदु तिवारी, कमांडर संजीव गुप्ता और नाविक रागेश के परिवार वाले काफी चिंतित हैं। कतर ने इन पर इजराइल के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया है। पिछले साल इन सभी को रिहा करने का फैसला किया गया था। इन्होंने भारत लौटने के लिए सूटकेस भी तैयार कर लिए थे लेकिन नाटकीय ढंग से इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। सजा पाने वालों में कमांडर पूर्वोंदु तिवारी भी हैं जिनको 2019 में प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने इस मामले को काफी संवेदनशीलता से लिया है और विदेश मंत्रालय हर कानूनी विकल्प अपनाने को तैयार है। आठों पूर्व नौसेना अधिकारी दाहरा ग्लोबल टैक्नोलॉजिस एंड कन्सलटैंसी में काम करते थे।
ये कंपनी सबमरीन प्रोग्राम में कतर की नौसेना के लिए काम कर रही थी। इस प्रोग्राम का मकसद रडार से बचने वाले हाईटेक इतालवी तकनीक पर आधारित सबमरीन हासिल करना था। कंपनी में 75 भारतीय नागरिक कर्मचारी थे। इनमें से अधिकांश भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी थे। मई में कंपनी ने कहा था कि वो 31 मई 2022 से कंपनी बंद करने जा रही है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कंपनी के प्रमुख खमीस अल अजामी और गिरफ्तार किए गए 8 भारतीयों के खिलाफ कुछ आरोप सामान्य हैं जबकि कुछ खास किस्म के हैं। जासूसी के आरोप में गिरफ्तार आठ कर्मचारियों को पहले ही बर्खास्त कर दिया गया और उनके वेतन का हिसाब-किताब भी कर दिया गया है। बीते मई में कतर ने कंपनी को बंद करने का आदेश दिया और इसके लगभग 70 कर्मचारियों को मई 2023 के अंत तक देश छोड़ने का निर्देश दिया।
यह कम्पनी कतर की सशस्त्र सेना को ट्रेनिंग और सर्विस मुहैया कराती थी। कम्पनी खुद को रक्षा उपकरणों को चलाने और उनकी मरम्मत और देखभाल करने का विशेषज्ञ होने का दावा करती रही है। कम्पनी एयरोस्पेस के मामले में कतर में विशेष हैसियत रखती रही है। यद्यपि कतर ने इन पर आरोपों का खुलासा नहीं किया है लेकिन मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि इन पूर्व नौसैनिकों पर अति उन्नत इतालवी पनडुब्बी को खरीदने के संबंधित कतर के खुफिया कार्यक्रम के बारे में जानकारी देने का आरोप लगाया गया है। कतर की खुफिया एजैंसी दावा करती है कि उसके पास इस कथित जासूसी के बारे में इलैक्ट्रोनिक सबूत मौजूद हैं। हैरानी की बात यह है कि इन पूर्व सैन्य अधिकारियों की नियुक्ति भारत और कतर के बीच एक समझौते के तहत की गई थी।
भारत सरकार ने कतर से इन पर दया करने और इनकी रिहाई की अपील की थी लेकिन कतर ने भारत की एक नहीं सुनी। अब सवाल उठ रहा है कि क्या कतर इजराइल-हमास जंग में भारत द्वारा इजराइल का समर्थन करने पर हम से बदला तो नहीं ले रहा। जिस तेजी और नाटकीय घटनाक्रम में यह फैसला आया है वह वास्तव में हैरान कर देने वाला है। कतर इजराइल का कट्टर विरोधी रहा है और वह पूरी दुनिया में अपने आतंकवाद समर्थक रवैये के लिए बदनाम है। कतर इस्लाम के नाम पर दुनिया के आतंकवादी समूहों को फंडिंग करता है। इनमें हमास, हिजबुल्लाह, अलकायदा, इस्लामिक स्टेट, मुस्लिम ब्रदरहुड अल नुसरा फ्रंट जैसे आतंकी समूह शामिल हैं। कतर लगातार इन आतंकी समूह को पैसा देता रहता है। इसका प्रमुख कारण इस्लामी दुनिया में खुद को सबसे बड़ा आका घोषित कराना है। कतर की सऊदी अरब के साथ पुरानी दुश्मनी है। सऊदी को इस्लामी दुनिया का सबसे ताकतवर देश माना जाता है कतर को इसी बात से चिढ़ है, इस कारण वह आतंकी समूहों को पैसे देने से भी बाज नहीं आता है।
अमेरिका समेत पूरी दुनिया जानती है कि कतर आतंकवादियों का सबसे बड़ा समर्थक है। इसके बावजूद कोई भी देश उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोलता है। इसका सबसे बड़ा कारण कतर की भौगोलिक स्थिति और उसकी जमीन के नीचे दबा अरबों-खरबों रुपये की गैस है। कतर आकार में बहुत छोटा देश है, लेकिन इसका विदेशी मुद्रा भंडार 64.56 अरब डॉलर से भी ज्यादा है। कतर के पास दुनिया का सबसे बड़ा गैस भंडार है। कतर अपने गैस को एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। कतर में अमेरिका का मिलिट्री बेस भी है। इस कारण अमेरिका चाहकर भी कतर का खुलकर विरोध नहीं कर पाता। अगर कोई देश विरोध करता भी है तो उसे अमेरिका अपनी ताकत के दम पर चुप करा देता है।
कतर और भारत के संबंध अच्छे रहे हैं। कतर की कुल 25 लाख की आबादी में से साढ़े 6 लाख भारतीय हैं। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध भी बने हुए हैं। दोनों देश कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं। भारत अपनी जरूरत की 90 फीसदी गैस कतर से आयात करता है। लेकिन इस घटनाक्रम ने दोनाें देशों के संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है। कतर का यह कदम इस ओर साफ इशारा कर रहा है कि इसके पीछे कहीं न कहीं इजराइल-हमास जंग भी है। सवाल आठ पूर्व नौसैनिकों की जिन्दगी का भी है। विदेश मंत्रालय कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहा है। केन्द्र सरकार को कतर के साथ अपने राजनयिक और राजनैतिक प्रभाव का सर्वाधिक इस्तेमाल करना होगा, ताकि पूर्व सैनिकों को जल्द से जल्द सजा के खिलाफ अपील करने का मौका मिले और उनकी रिहाई के लिए हर सम्भव प्रयास किए जा सकें। पिछले साल सितम्बर में जब भारतीय अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था तब इनके परिजनों ने सोशल मीडिया पर उनकी रिहाई के लिए अभियान चलाया था, लेकिन धीरे-धीरे इनके लिए उठने वाली आवाजें खामोश हो गई थीं। पूरे देश की नजरें इस मसले पर लगी हुई हैं। उम्मीद की जाती है कि मोदी सरकार तेजी से कदम उठाएगी। परिवारों को और देशवासियों को पूर्व नौसैनिक अधिकारियों के घर लौटने का इंतजार है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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