संपादकीय

हरियाणा में कोटे में कोटा

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की तीसरी बार सरकार बनते ही उसने ताबड़तोड़ फैसले लेने शुरू कर दिए हैं।

Aditya Chopra

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की तीसरी बार सरकार बनते ही उसने ताबड़तोड़ फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। दूसरी बार मुख्यमंत्री बने नायाब सिंह सैनी कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुसरण करते हुए आरक्षण में कोटे में कोटा के फैसले को लागू कर दिया है। हरियाणा सरकार ने जनहित में कई फैसले लिए जिसमें सरकारी अस्पतालों में किडनी रोगियों को फ्री डायलसिस की सुविधा देने की घोषणा की गई। मुख्यमंत्री ने फसलों की खरीद की जानकारी भी दी लेकिन सबसे अधिक चर्चा कोटे में कोटा की हो रही है। ऐसा करने वाला हरियाणा पहला राज्य बन गया है। आरक्षण के लाभ के बावजूद वंचित रह गई अनुसूचित जातियों के लिए अलग से कोटा लगाकर अब उन्हें आरक्षण दिया जा सकेगा। राज्य में अनुसूचित जातियों में आरक्षण का दो वर्गों में बंटवारा किया जाएगा। यह वर्ग वंचित अनुसूचित जाति और अन्य अनुसूचित जाति के होंगे। अनुसूचित जातियों के लिए 20 प्रतिशत कोटा तय है, इसमें से 10 प्रतिशत आरक्षण वंचित अनुसूचित जाति वर्ग में चिन्हित जातियों को मिलेगा जबकि शेष 10 फीसदी आरक्षण का लाभ अन्य अनुसूचित जातियों के लिए तय किया जाएगा। आरक्षण का मुद्दा देशभर में काफी उलझा हुआ है। एक वर्ग आरक्षण के पक्ष में है तो दूसरा इसके विरोध में है। आरक्षण ऐसा अमृत का प्याला बन चुका है जिसे हर कोई छू लेना चाहता है। आरक्षण के मसले पर राजनीति हमेशा से ही प्रभावित होती रही है। सभी बड़े दल आरक्षण के मसले पर उलझे पड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट में लम्बे समय से नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी-एसटी वर्ग को सब कैटेगरी में आरक्षण दिए जाने की मांग का मामला लम्बित चल रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाते हुए 2004 में दिए गए अपने पुराने फैसले को पलट दिया।

चूंकि इससे पहले 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में फैसला दिया था कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं। जबकि उस फैसले के खिलाफ जाने वाली पंजाब सरकार का तर्क था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के तहत यह स्वीकार्य था, जिसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति दी थी। पंजाब सरकार ने मांग रखी थी कि अनुसूचित जाति के भीतर भी सब कैटेगरी की अनुमति दी जानी चाहिए।

संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है। यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके। राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होंगी। हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए। कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100 प्रतिशत कोटा नहीं दिया जा सकता है। इसके अलावा, एससी में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए। यानी आरक्षण के मसले पर राज्य सरकारें सिर्फ जरूरतमंदों की मदद के लिए कानून बना सकती हैं ना कि राजनीतिक लाभ के लिए किसी तरह की मनमानी कर सकती हैं और ना भेदभावपूर्ण फैसला ले सकती हैं।

फैसले में जस्टिस विक्रम नाथ ने महत्वपूर्ण बात यह कही कि क्रीमी लेयर का सिद्धांत अनुसूचित जातियों पर भी उसी तरह लागू होता है जैसे यह ओबीसी पर लागू होता है। एससी-एसटी वर्ग के सिर्फ कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं। ऐसी कई श्रे​णियां हैं जिन्होंने सदियों से उत्पीड़न झेला है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर भी बंटा हुआ दिखा। दक्षिण भारत ने इस फैसले का स्वागत किया, हिंदी पट्टी के राज्यों में इस फैसले का विरोध भी हुआ। हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कर दिया है लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है ​​कि राज्य सरकारें किस जाति को खुश करें और किसे नाराज। हरियाणा सरकार के फैसले पर बसपा प्रमुख मायावती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि कोटे के भीतर कोटा की नई व्यवस्था लागू करने का फैसला दलितों को फिर से बांटने और उन्हें आपस में ही लड़ाते रहने का षड्यंत्र है और यह घोर आक्षण विरोधी फैसला है। ऐसी ही प्रतिक्रियाएं पिछड़ों, दलितों की राजनीति करने वाले दलों की भी आनी स्वाभाविक हैं। जिन दलों ने महादलित राजनीति का रास्ता अपनाया है उनके ​लिए यह सियासी मास्टर स्ट्रोक है। हरियाणा की नायाब सिंह सैनी सरकार को सब कैटेगरी बनाने के लिए डेटा तैयार करना होगा और यह काम बहुत ही सतर्कतापूर्ण और निष्पक्ष ढंग से करना होगा ताकि यह साबित किया जा सके कि जिस जाति को सब कैटेगरी में शामिल किया जा रहा है वह इसकी पात्र है। अब तक वंचित रही जातियों को आरक्षण का लाभ ​मिल जाए यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com